श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी उर्फ जीवन जी

छाॅगुर त्रिपाठी
-छाॅगुर त्रिपाठी का एक नाम जीवन जी भी था।
-इनकी रचनाओं को ब्रिटिश हुकूमत ने जब्त कर इन्हें नजरबन्द कर दिया था।  

  श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी उर्फ जीवन जी का जन्म गौरा जयनगर, बरहज जिला देवरिया में 11 जनवरी सन् 1891 में एक संस्कारित सनातनी ब्राहमण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री कृष्ण तिवारी था। श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी हिन्दी खड़ी बोली और भोजपुरी के सशक्त कवि थे। इनकी कविताओं से राष्ट्रीय जागरण तथा समाज सुधार के क्षेत्र में बहुत बड़ा कार्य हुआ है। स्वतन्त्रता संग्राम को गति देने की दिशा में श्री पण्डित छाँगुर त्रिपाठी जी का अप्रतिम योगदान रहा है। इनके उग्र राष्ट्रीयता का इसी से परिचय मिल जाता है कि इनके द्वारा प्रणीत सुदेशिया नाटक, स्वराज आल्हा, भूकम्प आल्हा, वीर सुभाष चन्द्र बोष आल्हा नामक कृतियाॅ ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी थीं। इतना ही नही, इसे लिखने का खामियाजा इन्हें भुगतना पड़ा और ये अंग्रेजों द्वारा फैजाबाद जेल में नजरबन्द रहना पड़ा था। इनकी कृतियों में हृदयानन्द गीतावली का नाम विशेष रूप से चर्चित है। इनकी हास्य-व्यंग्य से सम्बन्धित भोजपुरी भाषा की तमाम कृतियाॅ अबतक अप्रकाशित हैं। जब ये फैजाबाद जेल में नजरबन्द थे तो उस जेल में सब चक्की चलाते हुए इनकी रचनाओं को सस्वर गाते थे। जिनकी कुछ पंक्तियाॅ इस प्रकार हैं-
        ‘‘सुराज धुनि बोल, ए जेल जाॅता।
         लाल रंग गोहुआँ सफेद रंग पिाना, 
         कपट दिल खोल, ए जेल जाॅता, 
         सुराज धुनि बोल, ए जेल जाॅता।’’ 
इस गीत को जब पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी हारमोनियम पर गाकर जनचेतना जगाते थे तब और भी उत्साहपूर्ण वातावरण तैयार हो जाता था। पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी के बारे में बरहज क्षेत्र में तमाम किस्से और कहानियाॅ चर्चित हैं। ऐसा माना जाता है कि लोग उस जमाने में  पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी का इन्तजार किया करते थे। इतना ही नहीं पण्डित जी बाबा राघवदास के अत्यन्त प्रिय थे। बरहज के शिक्षा जगत के स्तम्भ श्री राजनारायण पाठक ने मुझे बताया था कि अंजनी जब आश्रम में बाबा जी क्रोध पर किसी का वश नहीं चल पाता था तब बाबा जी को पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी ही कंट्रोल कर पाते थे। बाबा राघवदास जी इन्हें बहुत अधिक सम्मान देते थे। 
    इनके विस्तृत विवरण के लिये श्री मोती बी ए के संस्मरणों को विशेष रूप से अवलोकन करना पड़ा है। श्री मोती बी ए के अनुसार श्री पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी जी की रचनाओं में ‘सुदेशिया नाटक’ भिखारी ठाकुर के विदेशिया नाटक को टक्कर देती थी। जनजागरण का मन्त्र फूॅकने वाला, बलिदान का भाव भरने वाला यह नाटक ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया। इनका स्वराज आल्हा, सुभाष बाबू का आल्हा, हृदयानन्द गीतावली, बरहना बाबा पर बाबा की रचनायें हैं जो अबतक अप्रकाशित हैं। इनकी रचना सुभाष बाबू का आल्हा, बाबा राघवदास जी को समर्पित है। इनकी रचनाओं के कुछ हास्य व्यंग्य को देखें- ‘‘सखि हो, हमरो बलसु पौने आठ भवन नहिं आवेे।’’ ‘‘ए सोगिया नवनों उजार कइलू टोला।’’ ‘‘बलमु जी फागुन भरि जनि जाई।’’ इनकी रचना ‘धर्म विलाप’, ‘काॅग्रेस का इतिहास’, ‘राजनैतिक भजन’ की अलग एक पहचान रही है। रचनाओ में स्पष्टवादिता बहुत साफ स्थापित है। इसके लिये पण्डित छाॅगुर त्रिपाठी हमेशा याद किये जायेगें।


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