हिंदी फिल्मों की पहली पार्श्व गायिका
राजकुमारी की दर्दभरी दास्तां
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
वो अपने नाम की तरह फ़िल्मी दुनिया की राजकुमारी थी। शुरुआती दौर में अमजद खान के वालिद जयंत के साथ हीरोइन बनकर खूब नाम कमाया। जब सेहत बढ़ने लगी और मोटापे ने आ घेरा तब उन्होंने हीरोइनों को अपनी मधुर आवाज़ देकर हिंदी फिल्मों में महिला प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत की। इस तरह राजकुमारी के नाम पहली महिला पार्श्व गायिका का रिकार्ड दर्ज हुआ।👍
जी हाँ राजकुमारी हिंदी फिल्मों की सबसे पहली प्लेबैक सिंगर है। जोहर बाई अम्बालेवाली, अमीरबाई कर्नाटकी और शमशाद बेग़म जैसी गायिका में राजकुमारी की गिनती होती थी।
1931 में पहली बोलती फ़िल्म आलमआरा आ चुकी थी।
जुबैदा से लेकर गौहरजान जैसी हीरोइने अपनी क़ाबलियत , आवाज़ और फनकारी के दम पर इंडस्ट्रीज में टिकी हुई थी। 1935 आते-आते फिल्मों में खूबसूरत हीरोइनों की इंट्री होने लगी जो दिखने में सुंदर लेकिन गाने में कमज़ोर हुआ करती थी। ऐसे में राजकुमारी ने उन्हे अपनी आवाज़ दी। हिरोइनों के साथ पार्श्वगायिकाएं भी चल पड़ी। 👍
पर्दे पर हीरोईनें होंठ हिलाती राजकुमारी अपनी मीठी आवाज़ से समा बांध देती । देखने वालों को ऐसा लगता मानो सच में हीरोइन गा रही है। 🤳
राजकुमारी अपनी मधुर आवाज़ के दम पर धीरे-धीरे फ़िल्म इंडस्ट्रीज पर छा गई। उन्हें हिंदी फिल्मों की सबसे पहली पार्श्वगायिका की उपाधि मिली। राजकुमारी की प्रसिद्धि का ये आलम था कि फ़िल्म निर्माता उनकी चमचमाती काले रंग की कार का दरवाजा खोलते-बंद करते। उनकी राह में पलक फावड़े बिछाकर खड़े रहते। कार से बड़ी शान-ओ-शौक़त से नौकर-चाकर पानदान लिए उतरते। ऐसे ठाठ थे राजकुमारी जी के।
1924 में बनारस में जन्मी राजकुमारी शादी के बाद राजकुमारी दुबे हो गई। शौहर बनारस के थे लिहाज़ा उन्हें अपनी दुकानदारी बंद करके बम्बई आना पड़ा।
ये बात भी सच है हर दिन एक-सा नहीं होता ऐसा ही कुछ संगीत की दुनिया में राज कर रही राजकुमारी के साथ भी हुआ। क़माल अमरोही की 'महल' ऐसी फिल्म थी जिसमे राजकुमारी और लता मंगेशकर दोनों मधुबाला के लिए गा रही थीं । लता का 'आएगा आने वाला' गीत चल पड़ा । राजकुमारी का गाया -'टकरा के सर जो अपना' औसत रहा। महल की कामयाबी के बाद लता उरूज़ पर जाने लगी और राजकुमारी ढ़लान पर।
केदार शर्मा की 'बावरे नैन' के गीतों ने जरूर मामले को संभाल लिया। सुन बैरी बलम सच बोल रे इब क्या होगा?
ये गीत आज भी लोगों की जुबान पर है।
प्रकाश पिक्चर्स के विजय भट्ट और शंकर भट्ट की खोज राजकुमारी ने करीब 100 फिल्मों में बतौर हीरोइन से लेकर गायिका 20 साल तक शानदार सफर तय किया।
लेकिन लता की आंधी में ये आवाज़ खोने लगी।
राजकुमारी को काम मिलना बंद हो गया।
शौहर की दुकानदारी तो बनारस में ही खत्म हो चुकी थी।
नतीज़न बुरे दिन शुरू हो गए।
पेट पालने के लिए बंगला-मोटर कार और ज्वेलरी के बाद सबकुछ बेच-बचाकर अपने जमाने की टॉप की हिरोइन और पहली पार्श्वगायिका राजकुमारी को बम्बई की एक चाल में बसना पड़ा। उन्होंने हालात से समझौता कर लिया। नूरजहाँ और मुकेश के साथ गाने वाली गायिका अब कोरस की भीड़ में भी खड़ी होकर गाने को राजी हो गई।
1968 कि बात है ।
संघर्ष फ़िल्म बन रही थी। "कोई मेरे पैरों में घुंघरू पहना दे' गाने की रिकार्डिंग के वक्त 4 कोरस जवान गायिकाओं की कोरस गाने के लिए जरूरत थी। कोरस सिंगर में जब नौशाद साहब ने एक बुजुर्ग कोरस गायिका को देखा तो कहा -इन्हें किसने बुलाया। जबकि हमें जवां कोरस खातून की जरूरत है।
ये सुनकर नोशाद साहब के असिस्टेंट ने बताया कि -
ये गुज़रे ज़माने की मशहूर प्लेबैक सिंगर राजकुमारी है। आजकल भयंकर मुफलिसी में जी रही है लिहाज़ा कोरस गाने को मजबूर है।
ये सुनकर नोशाद साहब फ्लैश बैक में चले गए।
उन्हें वो मंज़र याद आने लगा जब वो राजकुमारी को बड़े चाव से सुना और देखा करते थे। राजकुमारी की हालत देखकर नौशाद साहब का दिल भर आया । उन्होंने उनकी खूब आव भगत की अपने स्टॉफ से मिलवाया । लेकिन कोरस गाने से मना करने लगे। ।
खुद्दार राजकुमारी ने गुज़ारिश की कि -' नौशाद साहब मैंने बदलते दौर से समझौता करना सीख लिया है। लिहाजा आप मुझसे कोरस गवा लीजिए। क्या आप चाहते है मैं भी खान मस्ताना गायक की तरह दरगाह पर भीख मांगने पर मजबूर हो जाऊं?
ये सुनकर नौशाद साहब रो पड़े । उन्होंने राजकुमारी को काम भी दिया और माली मदद भी की।
पाकीज़ा फ़िल्म के संगीतकार गुलाम मोहम्मद थे लेकिन बैक ग्राउंड म्यूजिक नौशाद साहब दे रहे थे। उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से राजकुमारी की गाई ठुमरी को पाकीज़ा के बैकग्राउंड म्यूजिक में इस्तेमाल किया। 'नज़रिया की मारी-' ठुकरी पाकीज़ा के बैक ग्राउंड में बजती है।
इसके बरसों बाद 1977 में जब गुलज़ार साहब किताब फ़िल्म बना रहे थे। तब उन्हें दीना पाठक पर एक लोरी फिल्माने के लिए बुजुर्ग गायिका की जरूरत थी। जिनकी आवाज़ दीना पाठक पर फिट हो सके। तब राजकुमारी के बेटे ने इस लोरी को गवाने के लिए अपनी माँ की शिफारिश की। गुलज़ार साहब ने राजकुमारी से 'हरि दिन तो बीता , शाम हुई अब रात करा दे' लोरी गवाई।
ये लोरी उनकी आख़री नज़्म है।
इसके बरसों बाद राजकुमारी सारे गामा प्रोग्राम में नज़र आई जिसका संचालन सोनू निगम कर रहे थे।
एक दिन।
फिल्मी दुनिया की चकाचोंध से दूर खस्ता चाल में तंगहाली की हालत में गुज़र बसर करते हुए। हिम्मत वाली सुरीली राजकुमारी 18 मार्च 2000 को 76 साल की उम्र
दुनिया-ए-फ़ानी से रुख्सत हो गई ।
उनकी मय्यत में फिल्मी दुनिया से सिर्फ सोनू निगम पधारे थे क्यूंकि वो उनके साथ 'सा रे गा मा' में काम कर चुके थे और राजकुमारी की बहुत इज्जत करते थे।
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