कवि जिसे भुलाया नहीं जा सकता
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मानवता जब अस्वस्थ होती है तो कविता उसके लिये औषधि का काम करती है,कवि की ध्वनि विधाता की ध्वनि होती है,इतिहास गवाह है कि जब भी मानवता संकट में पड़ लहू लुहान होकर
छटपटाने लगती है तो कवि (साहित्यकार) ही उसे मधुर वचनों से आत्मा पर लगे घावों पर लेप लगाता है,उसे जीवन का अर्थ समझाता है और
ताज़गी प्रदान करता है।इस प्रकार कविता मनुष्यता के स्पंदन की संदेश वाहक की भूमिका निभाती है।
कवि जगन्नाथ श्रीवास्तव 'बाबू' देवरिया के काव्याकाश के कवि नक्षत्रों में से ऐसे ही एक नक्षत्र थे जो 06 जुलाई 2017 को (45-46 वर्ष की आयु) मध्यान्ह में तिरोहित हो गया ।
उनका जन्म देवरिया शहर के भटवलिया
मुहल्ले के अभावग्रस्त कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता सरकारी मुलाजिम थे जो इनके बचपन में ही दिवंगत हो गये थे,माँ के द्वारा ही इनका लालन पालन हुआ जो तीन भाइयों में सबसे छोटेऔर अविवाहित थे। जगन्नाथ बाबू की शिक्षा- दीक्षा
देवरिया नगर के स्कूलों में ही हुई।सन्त विनोबा महाविद्यालय देवरिया से एल एल बी की डिग्री लेकर जीवन यापन के लिये वे दीवानी कोर्ट में
वरिष्ठ वकील वृद्धि चंद विश्वकर्मा के जूनियर के रूप में प्रेक्टिस करते थे।
विद्यार्थी जीवन से ही साहित्य में उनकी
गहरी रुचि थी, साहित्यिक पुस्तकों के साथ साथ उन दिनों पटरी साहित्य के रूप में बिकने वाले जासूसी उपन्यास, कथा,कहानी, तथा शेरो शायरी के तो वे शौकीन पाठक थे, इसी माहौल ने उन्हें कवि और कहानीकार बना दिया।
उनकी कविताएँ और कहानियां स्थानीय
पत्र पत्रिकाओं के अलावा महकता आँचल, खुशबू आदि में छपा करती थीं। फिल्मी स्टाइल की रोमांटिक कहानियां लिखना उनका शगल था। सम सामयिक विषयों मौसम त्योहार, सामाजिक सद्भाव, राजनीतिक माहौल, दहेज बाल विवाह, बढ़ती आबादी, सन्त महात्माओं के उपदेश, सामाजिक विद्रूपताएँ,उनकी कविताओं के मुख्य विषय होते थे।
वे देवरिया कुशीनगर गोरखपुर के नाटक समूहों से भी जुड़े हुए थे और समय निकालकर
उनमें भूमिकाएं करते थे।
साँवले रंग और मध्यम कद काठी की दुबली पतली काया के स्वामी जगन्नाथ जी बाएँ पैर से
थोड़ा भचक कर चला करते थे, बताते थे कि उन्हें कोई ब्लड एनीमिक बीमारी थी जिसके इलाज के लिये कभी कभी उन्हें लखनऊ जाना होता था। यह बीमारी बढ़ते बढ़ते इतनी उग्र हो गई की उनकी जान के लिये घातक बन गई।
जगन्नाथ बाबू नगर के कवि गोष्ठियों,कवि सम्मेलनों और अन्य सांस्कृतिक समारोहों के अनिवार्य अंग थे,चाहे कोई भी परिस्थिति हो वे
इनअवसरों पर अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज कराते और संयोजक से कहकर काव्य पाठ जरूर करते थे, स्वाभिमानी इतने कि यदि किसी ने थोड़ा भी उपेक्षा भाव दर्शाया तो उन्हें जली कटी सुनाने में भी परहेज नहीं करते थे। समारोहों काव्य गोष्ठियों में समय से पूर्व पहुंचकर
वक्ताओं / कवियों की सूची में अपना नाम दर्ज करवाना कभी नहीं भूलते थे।
1998 में जब मैं योगेन्द्र नारायण वियोगी और सरोज पान्डेय के साथ नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया की मासिक काव्य गोष्ठी से जुड़ा
तभी उनसे मेरी भेंट हुई,।उन्होनें बताया कि ' "गुरुजी! 1989 में आपके विद्यालय सेन्टर पर देवरिया बी आर डी इंटर कालेज से हाई स्कूल के परीक्षार्थी के रूप में मैं परीक्षा दे चुका हूँ। उस समय आप ही प्रधानाचार्य थे।" इसलिये बाद में भी वे मुझे गुरुजी कह कर ही सम्बोधित करते रहे। कभी कभी मेरे आवास पर आते घंटों चर्चा करते और इस बात पर क्षोभ भी जताते कि दर्जनों पत्र पत्रिकाओं में छपने के बावजूद भी
लोग उन्हें कवि के रूप में गम्भीरता से नहीं लेते।
पत्र पत्रिकाएँ ले जाते,उन्हें पढ़ते और समय से लौटा देते। कवियों साहित्यकारों के बनाऊपन
व्यवहार से उन्हें सख्त चिढ़ थी,पर किसी के सामने या मुँह पर कुछ नहीं कहते थे, यह जरूर था कि किसी भी गोष्ठी में चाहे कोई संयोजक या संचालक हो,उन्हें नज़रंदाज नहीं कर सकता था।
यद्यपि उनकी कोई पुस्तक मेरी जानकारी में प्रकाशित नहीं है,फिर भी भोजपुरी हो या हिन्दी
उनका लेखन बहुत था जो उनकी डायरियों में
सुरक्षित होगा। नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया, चौपाल आदि संस्थाएँ उनके रचनात्मक योगदान के प्रति नमित रहेंगी।
उनकी कविताओं की कुछ पंक्तियांँ कवि
के बतौर उनकी जीवंतता की बानगी हैं--'
" नफरत करके तो देख चुके
अब प्यार जताकर भी देखो
तन की दूरी तो माप चुके
अब हाथ बढ़ाकर भी देखो।।
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"अब भूखे नंगों की बात मत करिये
चाँद पतंगों की बात मत करिये।
देश बढ़ रहा घोटालों से
अब आतंक की बात मत करिये।।"
हर प्रकार के अन्याय ,अत्याचार अनाचार
भ्रष्टाचार,शोषण, दबाव, कुत्सित राजनीति , अन्ध विश्वास, जड़ता ,नारी उत्पीडन और पाखंड के खिलाफ विद्रोही तेवर रखने वाले खासूसियत से कोसों दूर रहने वाले उस आम कवि की छठवीं पुण्य तिथि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए समाज के सक्षम प्रबुद्ध वर्ग और संस्थाओं से जगन्नाथ 'बाबू' केअप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित कर जनता के समक्ष लाने की अपील करता हूँ,ताकि कवि की आत्मा को शान्ति मिल सके ।
इन्द्र्कुमार दीक्षित,पूर्व मंत्री नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया।00