तानसेन
तानसेन (1532-1595 ई•) मकरन्द पांडे के पुत्र थे। उनका जन्म ग्वालियर के पास बेहट नामक ग्राम में हुआ था। इनका पूर्व नाम त्रिलोचन पांडे था। इन्होंने स्वामी हरिदास से पिंगल सीखा तथा संगीत की भी शिक्षा ली। कुछ समय मुहम्मद ग़ौस से भी गायन विद्या सीखी, जिसके कारण वे त्रिलोचन से तानसेन बने और उन्हें ईरानी संगीत की चपलता भी मिली। यहाँ से वे शेरशाह के पुत्र दौलत ख़ाँ के पास चले गए। उसके पश्चात् वे रीवाँ नरेश राजा रामचन्द्र बघेला की राज्यसभा में चले गए। इनके संगीत की ख्याति सम्राट् अकबर तक पहुँची। अकबर ने राजा रामचन्द्र को विवश किया कि वे तानसेन को उसकी सभा में भेज दें। इस प्रकार सन् 1564 ई• में ग्वालियर का यह महान् कलावन्त उस समय के संसार की सबसे महान् राजसभा की नवरत्नमाला की मणि बना।
तानसेन के संगीत पर मुग्ध होकर रहीम कवि ने एक दोहा लिखा था :
बिधना यह जिय जानि के, सेसहि दिये न कान।
धरा मेरु सब डोलिहैं, तानसेन के तान।।