मोती बीए की कविता

अभिजात प्रतिक्रिया का पर्याय हो न सकता विघटन परम्परा का अध्याय हो न सकता संघर्ष सभ्यता का शोषक रहा युगों से कटु सत्य हो भले यह पर साध्य हो न सकता-

पाँच ही गाँव थे माँगे गये सुयोधन से श्लोक गीता के हैं अभिषिक्त इस समर्पण से हम निछावर हैं मानवीय सभ्यता तुम पर पढ़ रहा पाठ वही वियतनाम जानसन से

प्रश्न है भूख का या कि अध्यात्म का मानवी सभ्यता जा रही है कहाँ ज्ञान उन्माद का ही यह परिणाम है। प्रश्न दोनों पड़े हैं जहाँ के तहाँ

क्या कमी तुमको अमरीकियों, दो बता ए वियतनाम, कह, तुमको क्या चाहिए काट कर बात गिलगिट पड़ा बोल यूँ हमको मरने की कोई दवा चाहिए

सौ सवा सौ बरस सिर्फ गुजरे अभी बैलगाड़ी से राकेट में हम आ गये पाँव क्यूँ कर जमी पर हमारे रहें जब कि हम हैं गगन का मरम पा गये

रूप की माधुरी से व्यथा प्यार की भाग्य के जो बली हैं उन्हीं को मिले रूप की वेदना, प्यार की भावना धन्य धरती जहाँ फूल बनकर खिले

मोती बी. ए. ग्रन्थावली (खण्ड-चार)

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