Nalini Jayvant

हिंदी फिल्मों में अगर ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों की बात हो तो एक से बढ़कर एक हसीन चेहरे आँखों के आगे आ जाते हैं और बात अगर गुज़रे ज़माने की हो तो यह लिस्ट और भी ख़ास हो जाती है जिसमें जाने कितने ही नाम लिखे जा सकते हैं। उस दौर में जहाँ एक ओर परंपरागत भारतीय सुंदरता लिये हुई अभिनेत्रियों की भरमार थी तो दूसरी तरफ बोल्ड और ग्लैमरस अभिनेत्रियों की भी कोई कमी नहीं थी। और ढेरों अभिनेत्रियां ऐसी भी थी जो इन सब विशेषताओं का संगम थीं। 50 के दशक में ऐसी ही एक बेहद कामयाब अभिनेत्री हुआ करती थीं  जिनकी परंपरागत भारतीय सुंदरता के तो लोग कायल थे ही साथ ही उनकी बोल्डनेस के भी लोग दीवाने हुआ करते थे। उस ख़ूबसूरत अभिनेत्री का नाम है नलिनी जयवंत। 
     उस दौर में अगर सबसे ख़ूबसूरत अभिनेत्री की बात की जाए तो सबसे पहले अगर जेहन में किसी का चेहरा आता है तो वह है अभिनेत्री मधुबाला जी का जो आज भी ख़ूबसूरती की एक मिसाल मानी जाती हैं। लेकिन जब जब नलिनी जयवंत की बात होती है तो उनके आगे मधुबाला की ख़ूबसूरती भी थोड़ी फीकी पड़ जाती है। 
                   नलिनी जयवंत जी का जन्म 18 फरवरी वर्ष 1926 मे बंबई यानि मुंबई के एक परंपरावादी मध्यमवर्गीय मराठी परिवार में हुआ था। मुंबई के गिरगांव इलाक़े में जन्मीं और पली-बढ़ी नलिनी दो भाईयों के बीच इकलौती बहन थीं। उनके पिता एक कस्टम अधिकारी थे। नलिनी जयवंत को बचपन से ही नृत्य और गायन का शौक़ था, उन्होंने मोहन कल्याणपुर से कत्थक और हीराबाई ज़वेरी से गायन की शिक्षा ली थी। 
लेखक शिशिर कृष्ण शर्मा की किताब बीते हुए दिन के मुताबिक एक साक्षात्कार के दौरान नलिनी जी ने ख़ुद बताया था कि,  “स्वास्तिक, ड्रीमलैंड और इम्पीरियल सिनेमाहॉल मेरे घर के आसपास ही थे इसलिए मन में फ़िल्मों के प्रति खिंचाव भी था। लेकिन उस ज़माने के माहौल को देखते हुए सोच भी नहीं सकती थी कि मैं कभी फ़िल्मों में काम करूंगी। हालांकि शोभना समर्थ मेरी सगी बुआ की बेटी थीं जो तब तक फ़िल्मों में अच्छा-ख़ासा मुक़ाम हासिल कर चुकी थीं।"
दोस्तों नलिनी के पिता और अभिनेत्री शोभना समर्थ  की माँ रतन बाई आपस मे भाई बहन थे, इस नाते नलिनी, शोभना समर्थ की ममेरी बहन थीं। हम आपको यहाँ याद दिला दें कि शोभना समर्थ अभिनेत्री नूतन और तनुजा की माँ का नाम है।
 नलिनी के मुताबिक, एक रोज़ शोभना समर्थ के घर, नूतन के जन्मदिन के मौक़े पर उनकी मुलाक़ात चिमनलाल देसाई से हुई जो उन दिनों ‘नेशनल स्टूडियो’ के बैनर में फ़िल्म ‘राधिका’ की तैयारियों में जुटे हुए थे। नलिनी को देखकर उन्हें ऐसा लगा कि राधिका का किरदार नलिनी के लिये ही बना है और जब चिमनलाल देसाई ने उन्हें फ़िल्म ‘राधिका’ की मुख्य भूमिका में लेने की इच्छा जताई जिसके लिए नलिनी के पिता ने साफ इंकार कर दिया क्योंकि नलिनी जयवंत की उम्र उस वक़्त मात्र 14 बरस की थी। लेकिन चिमनलाल  ने हार नहीं मानी और आख़िरकार नलिनी के पिता को चिमनलाल  की ज़िद के आगे झुकना ही पड़ा।
दोस्तों प्रोड्यूसर चिमनलाल देसाई का उस ज़माने में एक बहुत बड़ा नाम था उन्होंने ‘सागर मूवीटोन’, ‘नेशनल स्टूडियो’ और ‘अमर पिक्चर्स’ के बैनर्स के लिये तक़रीबन 75 फ़िल्मों का निर्माण किया था। वर्ष 1941 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘राधिका’ का निर्देशन वीरेन्द्र देसाई ने किया था जो निर्माता चिमनलाल देसाई के ही बेटे भी थे। फ़िल्म ‘राधिका’ के गाने भी नलिनी ने ही गाए थे। उसके बाद उन्हें नेशनल स्टूडियो और अमर पिक्चर्स की 4 और फिल्मों  ‘बहन’, ‘निर्दोष’, ‘आंख मिचौली’ और ‘आदाब अर्ज़’ में बौर अभिनेत्री काम मिला। 
नलिनी का कैरियर फिल्मों में अभी पूरी तरह से शुरू भी नहीं हुआ था कि उन्होंने अपनी उम्र से काफ़ी बड़े और पहले से शादीशुदा निर्देशक वीरेन्द्र देसाई से विवाह कर लिया।
हिंदी के मशहूर कहानीकार उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ अपनी क़िताब ‘फ़िल्मी दुनिया की झलकियां’ में लिखते हैं कि बीवी-बच्चों के होते हुए दूसरी शादी कर लेने की वजह से वीरेन्द्र देसाई को उनके घर और बिज़नेस से बेदख़ल कर दिया गया था। ऐसे में ‘नेशनल स्टूडियो’ और ‘अमर पिक्चर्स’ से नलिनी जयवंत का रिश्ता टूटना भी स्वाभाविक ही था। मजबूरन वीरेन्द्र देसाई और नलिनी को ‘फ़िल्मिस्तान फ़िल्म कंपनी’ के साथ कॉंट्रेक्ट करना पड़ा। लेकिन उस दौरान ‘फ़िल्मिस्तान’ के बैनर तले बनने वाली फ़िल्मों में न तो नलिनी को अभिनय का मौक़ा दिया गया और न ही वीरेन्द्र देसाई को निर्देशन का। उन दोनों को बिना काम किए हर महिने दो हज़ार रूपया बतौर वेतन दे दिया जाता था।
दोस्तों अश्क के मुताबिक नलिनी को काम न मिलने की 2 वज़हें थीं  एक तो वीरेन्द्र देसाई और नलिनी की ये शर्त कि नलिनी सिर्फ़ वीरेन्द्र देसाई के निर्देशन में काम करेंगी। और दूसरा ये कि, नलिनी की सफलता को देखकर  ‘फ़िल्मिस्तान’ की पहली नायिका नसीम का रास्ता साफ़ करने के लिए दो साल का अनुबंध करके नलिनी को बैठा दिया गया हो। बहरहाल वर्ष 1946 में उनकी सिर्फ़ एक फ़िल्म, ‘वीनस पिक्चर्स’ की ‘फिर भी अपना है’ (1946) प्रदर्शित हुई  जो बहुत लंबे समय से बन रही थी। इसी दौरान ‘फ़िल्मिस्तान’ के कॉंट्रेक्ट ख़त्म होने के साथ-साथ महज़ 3 साल के अंदर वर्ष 1948 में उनकी शादी भी टूट गयी और आज़ाद नलिनी के  करियर ने एक बार फिर से रफ़्तार पकड़ ली। हालांकि नलिनी को स्टार का दर्जा हासिल हुआ ‘फ़िल्मिस्तान’ की ही फ़िल्म ‘समाधि’ से जो बाद में 1950 में प्रदर्शित हुई थी। और उसी साल ‘बॉम्बे टॉकीज़’ के बैनर में बनी उनकी फ़िल्म ‘संग्राम’ भी कामयाब रही। इन दोनों ही फ़िल्मों के हीरो अशोक कुमार और संगीतकार सी.रामचन्द्र थे। उसके बाद नलिनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 50 के दशक में परदे पर नलिनी जयवंत का राज रहा।
उन्होंने  'हम सब चोर हैं', 'सेनापति', 'नीलमणि', 'गर्ल्स होस्टल, 'मिलन', 'दुर्गेश नन्दिनी', 'राही', 'दो राह', 'आँखें', 'काला पानी', 'काफ़िला', 'नौजवान', 'अनोखा प्यार' आदि कई फिल्मों में बेहतरीन काम किया। फिर चाहे  फ़िल्म 'काला पानी' का  गीत 'नज़र लागी राजा तोरे बंगले पर', गीत में नलिनी की अदायगी हो या  'शिकस्त' और 'रेलवे प्लेटफॉर्म' जैसी फिल्मों की भूमिकाओं के लिए नलिनी जयवंत को याद किया जाता है।  दिलीप कुमार, अशोक कुमार, देव आनंद और अजीत के साथ उनकी जोड़ी को बहुत पसंद किया गया इन सभी के साथ नलिनी ने ढेरों सफल फिल्में में काम किया।
दोस्तों नलिनी ने मराठी और गुजराती फ़िल्मों  में भी काम किया है साथ ही उन्होंने तकरीबन 39 गीत भी गाए हैं।  वर्ष 1956 में प्रदर्शित राज खोसला द्वारा निर्देशित फिल्म ‘काला पानी’ नलिनी की अंतिम सफल फिल्म थी। इसके लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर’ की ओर से सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री का अवॉर्ड भी मिला था। फिल्म 'काला पानी' के बाद उन्होंने फिल्मों में काम करना बंद कर दिया और  अपनी निजी जिंदगी में व्यस्त हो गईं। हालांकि वर्ष 1965 में फिल्म ‘बॉम्बे रेस कोर्स’ में वे एक बार फिर नज़र आयीं थीं, लेकिन इस फिल्म की असफलता की वज़ह से  इसकी कोई चर्चा नहीं हुई।
दोस्तों परदे पर आखिरी बार नलिनी जी फिल्म 1983 में फिल्म ‘नास्तिक’ में नजर आई थीं। इस फिल्म में उन्होंने अमिताभ बच्चन की मां का किरदार अदा किया था। हालांकि बतौर चरित्र अभिनेत्री उन्हें इस फिल्म मेंं काम करने के बाद बहुत पछतावा भी हुआ था। उन्होंने बताया कि उस फ़िल्म को स्वीकार करना उनकी सबसे बड़ी भूल थी। जैसी भूमिका उन्हें सुनाई गयी थी, फ़िल्म में वैसा कुछ नहीं था। ये उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था इसलिए उन्होंने फ़िल्मी दुनिया से हमेशा के लिए किनारा कर लेना ही बेहतर समझा।
तक़रीबन 22 सालों की गुमनाम ज़िंदगी जीने के बाद नलिनी जयवंत जी का नाम एक बार फिर से चर्चा में आया जब 30 अप्रैल 2005 को ‘दादासाहब फाल्के एकेडमी’ की तरफ से  उन्हें लाईफ़टाईम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाज़ा था। इसके बाद नलिनी फिर कभी किसी सार्वजनिक जगहों पर दिखाई नहीं पडीं।
नलिनी ने दो शादियां की थीं. उनके पहले पति निर्देशक वीरेंद्र देसाईं से अलग होने के बाद वो फिल्मों में व्यस्त होने लगीं। बताया जाता है कि उसी दौरान अशोक कुमार और नलिनी वर्ष 1953 में रिलीज हुई फिल्म 'समाधि' की शूटिंग के दौरान ही वे एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे। इसके बाद, दोनों ने फिल्म ‘संग्राम’ भी एक साथ काम किया था। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों एक-दूसरे के प्यार में पड़ चुके थे। कहा जाता है कि दोनों का ये रिश्ता क़रीब 10 सालों तक चला था। अशोक कुमार के साथ उनकी जोड़ी को खूब पसंद किया जाने लगा और उन्होंने एक साथ ‘जलपरी’, ‘सलोनी’, ‘काफिला’, ‘नाज’, ‘लकीरें’, ‘नौ बहार’, ‘तूफान में प्यार कहां’, ‘शेरू’ और ‘मिस्टर एक्स’ जैसी सुपरहिट फिल्में कीं। लेकिन इतने लम्बे साथ के बावज़ूद  भी  दोनों ने एक दिन अलग होने का फैसला ले लिया। 
इसके बाद वर्ष 1960 में उन्होंने दूसरी शादी की एक्टर प्रभु दयाल से। प्रभु दयाल के साथ नलिनी ने  ‘हाऊस नं.44’, ‘मुनीमजी’, ‘सी.आई.डी.’, नयी दिल्ली’, ‘दुश्मन’, ‘लाजवंती’, ‘काला बाज़ार’ और ‘एक के बाद एक’ जैसी कई फिल्मों में  साथ काम किया था। प्रभुदयाल इसके अलावा ‘फ़रार’ और ‘कालापानी जैसी फ़िल्मों में सह-निर्देशक रह चुके थे। फ़िल्म ‘अमर रहे ये प्यार’ के दौरान उन दोनों ने शादी कर ली।
दोस्तों इस फिल्म ने जहाँ एक ओर नलिनी को उनके जीवनसाथी से मिलवाया तो वहीं  इस फिल्म की असफलता से जुड़ा एक बहुत ही दुखद किस्सा भी है। हुआ ये था कि इस फ़िल्म की असफलता की वज़ह से इस फिल्म के निर्माता राधाकिशन मेहरा जो कि अपने जमाने के मशहूर चरित्र अभिनेता हुआ करते थे, उन्हें इस फिल्म से इतना अधिक आर्थिक नुक़सान हुआ कि इस सदमे से उन्होंने  अपनी बिल्डिंग की छत से कूदकर जान दे दी थी।
बाद में प्रभुदयाल ने ‘हम दोनों’ और ‘दुनिया’ जैसी फ़िल्मों में अभिनय के अलावा ‘हम दोनों’, ‘तेरे घर के सामने’ और ‘गैम्बलर’ में बतौर सहनिर्देशक काम किया। प्रभुदयाल की 2001 में मृत्यु हो गई थी।
 प्रभुदयाल के गुज़रने के बाद नलिनी जयवंत अकेली ही रहा करती थीं। हालांकि पास ही में उनके भाई का बेटा और उनका परिवार रहता था जो नलिनी की देखभाल करता था।   क़रीब 85 साल की उम्र में 22 दिसंबर 2010 को नलिनी जयवंत जी का देहांत हो गया। नलिनी के निधन के फ़ौरन बाद उनके बंगले पर लटके ताले को देखकर मीडिया में खलबली मच गयी और बिना सच्चाई जाने नलिनी के निधन को ‘रहस्यमय मौत’ क़रार दे दिया गया। बताया गया कि  जब उनकी मौत हुई तो किसी को भी पता नहीं चला यहां तक कि पड़ोसियों को भी। जिदंगी के आखिरी वक्त में उनके पास अपना कोई नहीं था।  यहां तक की उनके पास खर्चा चलाने के लिए रुपए तक नहीं थे। मीडिया की इस हरक़त से उनके परिवार वाले और रिश्तेदारों को बहुत दुःख पहुँचा था। जबकि उनका अंतिम संस्कार और मृत्यु के बाद के तमाम पारंपरिक अनुष्ठान उनके भतीजे द्वारा अपने घर से किए गए। 
दोस्तों नलिनी जयवंत एक बेहद खूबसूरत अदाकारा थीं। उनकी ख़ूबसूरती का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जब वर्ष 1952 में मशहूर मैगजीन ‘फिल्मफेयर’ ने एक ब्यूटी पोल किया तो इस पोल में नलिनी नंबर 1 पर थीं। उनका मुकाबला उस जमाने की मशहूर और बेहद खूबसूरत एक्ट्रेस मधुबाला से था। आपको ताज्जुब होगा कि इन दोनों ख़ूबसूरत अभिनेत्रियों ने  फिल्म काला पानी में एक साथ काम किया था और इस फिल्म में मधुबाला से ज्यादा नलिनी को ही दर्शकों ने पसंद किया था।

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