वो, एक हसीना थी,
और उसके थे अनेक
दीवाने ...........
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हां, वे थीं मोहतरमा मोहसिना ख़ान जो अपनी हसीन यादों को छोड़कर हम सबसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो गईं । 16जुलाई (आज ही के दिन) वर्ष 2016 में आकाशवाणी गोरखपुर की पूर्व उदघोषिका मोहतरमा मोहसिना ख़ान का कानपुर में देहान्त हो गया
था ।वे उन दिनों अपने बड़े भाई के साथ कानपुर में रह रही थीं । रिटायर होने के बाद कुछ महीनों से वे ब्लड कैंसर से जूझ रही थीं ।
मोहसिना ख़ान आकाशवाणी गोरखपुर की अत्यन्त लोकप्रिय उदघोषिका थीं। वे ताउम्र अपने इर्द गिर्द अपनी जिंदगी की तमाम बातों को लेकर एक रहस्य भी बिखेरती रहीं। हमेशा सफेद लिबास में ही नजर आईं। उन्होंने विवाह नहीं किया था। हां, अपनी मां की ताउम्र उन्होंने सेवा की। अपनी छोटी बहन सईदा की शादी रचाई। उसकी बिटिया बोस्की (जूबिया ख़ान)को भरपूर प्यार दुलार दिया। रानू बनर्जी उनकी एकमात्र दोस्त थीं। जाने वे अब कैसे और कहां हैं।
उन्हें उनके इश्क में धोखा मिला था। उन्होंने जिसे चाहा उसने उनको धोखा दे दिया। शायद इसीलिए उनके जीवन को ऐसा मोड़ मिला जिसमें दर्द था, मायूसी थी , घुटन था और इन सभी को दबाए रखने का दवाब भी था। इसी लिए उनकी मुस्कान में भी राख में दबी आग दिख ही जाती थी।
वैसे उनके दीवानों की , चाहने वालों की कमी नहीं थी। वे देर रात स्टूडियो में टर्न टेबल पर जब डिस्क चला रही होती थीं तो युवा लोग उन दिनों उनके बजा रहे गीतो पर स्टूडियो में थिरकते रहते थे, झूमते रहते थे। वे गीत रोमांस के होते थे, मौसम के होते थे या दर्द भरे। रविवार के दिन उनसे मिलने, उनको नजदीक से देखने के लिए फरमायशी प्रोग्राम में शिरकत करने वाले आस पास के तमाम श्रोता स्टूडियो आया करते थे। वे उनसे बेहद सलीके से पेश आती थीं। उनका आटो ग्राफ लेकर बेहद खुश होते थे।
अस्सी नब्बे के दशकों में जब ये एफ. एम. नहीं था सिर्फ़ आकाशवाणी का साम्राज्य था, ये चवन्नी छाप एंकर नहीं हुआ करते थे तो आकाशवाणी गोरखपुर से ख़ास तौर से देर रात में प्रसारित होने वाले पुराने फिल्मी गानों के कार्यक्रम "भूले बिसरे गीत"और फ़रमायशी कार्यक्रम "इन्द्रधनुष" को पेश करने का उनका अंदाज़ श्रोताओं को बेहद पसंद था ।भरपूर शेर ओ शायरी से लबरेज इन कार्यक्रमों की पेशकश से वे बहुत जल्द मशहूर हो गईं थीं ।
आकाशवाणी गोरखपुर में बतौर कैजुअल एनाउंसर दिसम्बर 1975 से अपनी प्रसारण यात्रा की शुरुआत करने वाली मोहसिना ख़ान ने इसी केन्द्र पर विधिवत पहली फ़रवरी 1979 को बतौर नियमित उदघोषिका ज्वाइन किया था । वे वहीं से रिटायर भी हुईं थीं ।उनके छोटे भाई हाजी जनाब रियाजुल्लाह खां आकाशवाणी नजीबाबाद और फिर आगरा में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और अब सेवा निवृत होकर लखनऊ में ही रह रहे हैं । उनको आकाशवाणी में मोहसिना ने ही इंट्रीड्यूस किया और उन दिनों के निदेशक नित्या नंद मैठाणी के माध्यम से उद्घोषक की नौकरी भी दिलवाई। अब वे हालांकि हम पुराने लोगों से मिलते जुलते नहीं हैं ।
बी-हाई ग्रेड की ड्रामा कलाकार भी रहीं। अनेक रेडियो नाटकों में उन्होंने अभिनय किया।
नि:सन्देह उनकी खनकती हुई मदहोश कर देने वाली आवाज़, उनकी रेडियो को दी गई सेवाओं को आज भी याद किया जाता है लेकिन यह भी सच है कि ऐसे गुणी उदघोषकों,कलाकारों और कार्यक्रम कर्मियों के निधन से आकाशवाणी -दूरदर्शन बेहतरीन प्रतिभाओं की सेवाओं से वंचित होता जा रहा है ।ऐसे लोगों के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लोग अपने उदगार सोशल साइट्स पर डाल कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं ।फ़िर उन्हें भुला दिया जाता है।यहां तक कि उनकी पुण्यतिथि या जन्मदिन पर भी कोई दो बात करने वाला या उन सबको याद करने वाला नहीं मिलता है।शायद यह हम सबके आत्म केन्द्रित होते जा रहे जीवन और सोच का परिचायक है जो बहुत दुखद पक्ष है।
बहर हाल, मेरी प्यारी कलाकार मोहसिना,तुमको फ़िर फ़िर सलाम !