स्वर्गीय उग्रसेन सिंह की याद में............
गरीबो का हिमायती उग्रसेन
यह रचना सम्पदा के संकलन से लिया गया है।
रचना-मोती बीए
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
बाबा राघवदास रहे आदर्श वीर नाहर के,
राप्ती और सरयू को जाना जिसने माॅ से बढ़ के,
बरहज के कण-कण को समझा जिसने चाॅदी सोना,
विपदाओं में सजल न देखा जिसके दृग का कोना,
लड़ा गरीबों के हित जिसने, पीछे पग न हटाया,
राजनीति की माया में जो कभी नहीं भरमाया,
अत्याचारों के खिलाफ मुठ्ठी ताने रहता था,
गर्जन ध्वनि से कुंपित सिंह सा भय कम्पित करता था,
बड़ों-बड़ों का होश उड़ाने वाला था मरदाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
सत्ताधारी, पूॅजीपति, हाकिम जिससे डरते थे,
जिसके सद्विचार का आदर मन ही मन करते थे,
अनुशासित था, सदा शान्ति प्रिय, कायर किन्तु नहीं था,
जेल, यातना, डण्डे खाना, सुख सौभाग्य यही था,
भादो की दहाड़ती नदियों पर निर्भय चलता था,
बाढ़ पीड़ितों के हित वह विक्षिप्त बना फिरता था,
मनवता की रक्षा को हरदम झोली फैलाये,
कौन द्वार वो नहीं जहाॅ पर उग्रसेन थे आये,
आॅसू का जलपान जिसे प्रिय था गुरबत का खाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
छात्रावस्था में यूपी कालेज से गया निकाला,
उग्रसेन बम्बई गया बन आफत का परकाला,
भगत सिंह, आजाद और बिस्मिल का पन्थ यही था,
क्रान्ति पुजारी उग्रसेन का जीवन लक्ष्य यही था,
राघवदास, लोहिया और नेताजी का अनुयायी,
उग्रसेन ने उनके सिद्धान्तों से लगन लगायी,
अमर ज्योति जीवन की क्या जा सकती कभी बुझाई,
यही जिन्दगी थी नेता की उसकी यही कमाई,
दलितों और गरीबों के आॅसू को क्या बिसराना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
गलियाॅ, सड़कों, चैराहों पर रहा लगाता नारा,
संसद और विधान सभाओं को जिसने ललकारा,
जिनके मिल पर उग्रसेन ने थे लगवाये ताले,
उनको भूल न पाये अब तक सेठ बम्बई वाले,
उन्हीं दिनों उस महानगर में मैं निवास करता था,
अखबारों में उग्रसेन का नाम पढ़ा करता था,
बरहज में सन् पचास-इकावन में हम थे जब आये,
हुये परस्पर परिचित दोनों दोनों के मन भाये,
मैंने उग्रसेन उर अन्तर ज्वाल पुन्ज पहचाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
सन बावन के चुनाव में जब उनका मिला निमन्त्रण,
‘अब कैसी लाचारी’ कविता लिखी गयी थी तत्क्षण,
सन् तिरपन में उग्रसेन हित कविता लिखी ‘सवारी’,
‘खुद्दारी’ ‘गद्दारी’ कवितायें ‘शिक्षित बेकारी’
‘राशन की दूकान’ और ‘पन्द्रह अगस्त’ कवितायें,
उग्रसेन से प्रेरित होकर उनपर बलि-बलि जायें,
अगर गरीबों का हित चिन्तक सोशलिस्ट कहलाये,
मोती बीए उनका अनुचर पलभर में हो जाए,
राजनीति में जिनको लेकर खेल हुआ मनमाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
सभी गरीबों के नेताओं के रेकार्ड जाहिर हैं,
सभी गरीबी दूर हटाने के फन में माहिर हैं,
इस माया नगरी में केवल उग्रसेन बेचारा,
फिरता रहा लिये यह दुखड़ा, दर-दर मारा-मारा,
हाय, इसी की बलि बेदी पर उसका निधन हुआ है,
और गरीबों का सुख सपना उसका कफन हुआ है,
कभी न हारा वीर किन्तु मजबूर हुआ होनी से,
दुनिया रही देखती लेकिन लाल लुटा गोदी से,
कैसे उसको महापन्थ पर, भाया कदम बढ़ाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
कोई नहीं गरीब, यहाॅ हैं सब हैं चतुर खिलाड़ी,
गुटबन्दी-दलबन्दी में है जनता त्रस्त बिचारी,
सत्ता का फुटबाल, फील्ड जनता का, नेता प्लेयर,
गोल पोस्ट में गोल मारते सब फेयर अनफेयर,
सीधा सादा उग्रसेन भी इसी फील्ड में उतरा,
जनता का पूजक यह नेता तप्त स्वर्ण सा निखरा,
साठ वर्ष से अधिक आयु पाकर भी युवा हृदय था,
वाणी में बिजली थी, आॅसू में प्रच्छन्न प्रलय था,
बीबीसी वायस अमेरिका ने भी इसको माना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
सरवन के गाने रोते, रोती ठाकुर की खजड़ी,
मुक्तिनाथ की मूॅछे नीची, परशुराम की पगड़ी,
अच्छा हुआ कि अतिराजी पहले ही स्वर्ग सिधारी,
दारूण समाचार सुनते ही मर जाती बेचारी,
तिसको देखो वही सोक से घायल घूम रहा है,
उग्रसेन को व्यर्थ वियावानों में ढूढ रहा है,
‘उग्रसेन हा उग्र्रसेन’ कह कह कर रोने वालों,
आॅसू पी लो, दर्द सॅभालो, पागल होने वालों,
सरयू मईया की गोदी में उसका अमर ठिकाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
भाई खड़क बहादुर जिसका लखन लाल था दूजा,
अपनी माता को दुर्गा जी के समान था पूजा,
केवल आश्वासन से पैतृक घर को जिसने छाया,
लेकिन भादो में भी जिसपर खपड़ा नहीं चढ़ाया,
अपने गृह स्वामी की सुधि में छाजन अश्रु बहाती,
स्नेह भरी आॅखें मालिक की भूल नहीं वे पाती,
बहिन प्राण से प्यारी आॅखों की पुतली कन्यायें,
भाई और पिता की सुधि में वे आॅसू बरसायें,
भूल रही लेखनी अभागिन आगे छन्द बनाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
जहाॅ कहीं से तथ्य उठाकर उग्रसेन को जाॅचो,
इस कविता की किसी पंक्ति को किसी भाव से बाॅचो,
उग्रसेन की पावन झाॅकी हॅसती हुई मिलेगी,
बन्धु, तुम्हारे हृदय डाल की कोयल कुहुक उठेगी,
रन्जन जी, बौड़म जिसकी अन्तिम साॅसों में जीवित,
उग्रसेन जिनकी कविताओें पर थे सदा समर्पित,
उग्रसेन को उपालम्भ मैंनं थे कभी सुनाये,
क्षमाशील नेता में मेरे प्रति दुर्भाव न आये,
म्ुाझे कभी गुरूदेव कहा तो गुरू समान ही जाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
‘एक शायर’ का बन्द आखिरी गा गाकर रोता था,
उसके लिये फातिहा और दफन का गम ढोता था,
‘शिक्षित बेकारी’ से उसका हृदय तड़प उठता था,
भस्मसात करने को शोला सदृश भड़क उठता था,
मनवता में फर्क डालना उसको कभी न आया,
डोमों और मेहतरों को भी उसने गले लगाया,
परम्परा से और प्रगति से कसकर बॅधा हुआ था,
वीर-वेष में हरदम देखा, सैनिक सधा हुआ था,
स्वप्न दर्शियों के जीवन में क्या खोना क्या पाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
‘लाचारी’ कविता को जब जो भाव-पूर्ण गायेगा,
उग्रसेन उदात्त रूप में स्वयं उतर आयेगा,
‘कहाॅ गया वह प्लान साम्य का’ जब सवाल पूछेगा,
तुम्हे सिवा रोने के कुछ भी और नहीं सूझेगा,
‘जिन हाथों में शक्ति भरी’ वाली पाॅती जब आये,
उग्रसेन का जोश भरा व्यक्तित्व क्रान्ति दरसाये,
भगत सिंह, आजाद और ‘मन्त्री घूरहू पाड़े’ जब-
एक साथ पाॅती में आ बैठेंगें, क्या होगा तब,
देखोगे चुप उग्रसेन को दृग से अश्रु बहाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
रोडवेज के कर्मचारियों का संगठन बनाया,
उग्रसेन ने मिल-मजदूरों को लड़ना सिखलाया,
हो कोई जुलूस या धरना, आगे ही रहता था,
हो कोई भी मंच, बात बेलौस कहा करता था,
जब भी विधान सभा में वह भाषण करने आता था,
उसके लिये अलग से मार्शल बुलवाया जाता था,
किन्तु मौत से पहले उसकी जुबाॅ न रुकने पायी,
अभिमानी गर्दन नेता की कभी न झुकने पायी,
हॅसता हुआ ठठाकर जग से चला गया बेगाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
ऐसा युग आया है जिसमें है जिजीविषा भरती,
स्वार्थों के दर पे मानवता है पानी भरती,
गलियों, सड़कों, चौराहों पर मुर्दे भीड़ लगाएॅ,
बस, टैक्सी, रेलों, रिक्शों में घूमें आये-जाएॅ,
खून नहीं इनके शरीर में, केवल पानी बहता,
दृग में आॅसू नहीं बदन से, नहीं पसीना ढरता,
भ्रष्टाचार-घूस का जीवन ब्लैक कहानी इनकी,
डाॅका-चोरी, रेप-कतल बस यही निशानी जिनकी,
राजनीति की चर्चाओं से मधुमय मन बहलाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
इन्हीं हवावों से लड़ने को उग्रसेन कहते हैं,
जोर-जुल्म से ही भिड़ने को उग्रसेन कहते हैं,
भूखे-प्यासे रहने को उग्रसेन कहते हैं,
आॅखों से आॅसू बहने को उग्रसेन कहते हैं,
कोठी, कटरा, महल, अटारी पास न जिसके आयी,
उसको आसन दे सकता था हरि शंकर हलवाई,
टुटही बेन्च पड़ी उसकी, गुमटी में अश्रु बहाती,
उग्रसेन का राजसिंहासन बन कर जो इतराती,
काॅटों में गुलाब जैसा जिसका सुगन्ध बिखराना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
उग्रसेन को कभी न मैने कुछ भी देते देखा,
जब देखा तब हाथ पसारे चन्दा लेते देखा,
जठर-ज्वाल कितना प्रचण्ड था कितनी प्रखर पिपासा,
कितना गहन अॅन्घेरा पथ में, कितनी घनी निराशा,
लेकिन जाने क्या जादू था उस भोली सूरति में,
ताने कितना आकर्षण था उस मोहक मूरति में,
उसे देखते ही उर में विश्वास उमड़ आता था,
नयी सृष्टि मुस्का उठती थी, गीत प्रलय गाता था,
यदि असत्य कहता हूॅ कुछ भी तो मुझको बतलाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
उग्रसेन जैसे नेता, दस-पाॅच यदि निकल आएॅ,
तख्ता पलट जाए, दीनों-दुखियों के दिन फिर जाएॅ,
साम्यवाद की शीतल छाया में सब सुख पाएॅंगें,
मॅह-मॅह मॅहक उठेगा उपवन भौरे गुन गाएॅगें,
इसी राज्य को राम राज्य बापू ने भी माना था,
इसी सत्य को भारतीय जनता ने भी जाना था,
उग्रसेन ने इसीलिये जीवन की बाजी हारी,
अन्तिम नेता चला गया, छा गयी गहन अॅधियारी,
श्रद्धाॅजलि औ’ शोक सळाा है, केवल दुःख विसराना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
यह न समझना उग्रसेन से बड़ा न कोई नेता,
जिसको अपनी कविताओं में सम्मान न देता,
लेकिन फॅसी हुई है इसमें कुछ बातें बुनियादी,
कुर्सी का चक्कर सबको है, सब हैं बने विवादी,
हरिजन और गरीब, बैकवर्ड शब्द गढ़े टकसाली,
जिनसे पीटी जाती है चुनाव की फुटही थाली,
उछल कूदकर, रेंग-सरक कर कुर्सी पा जाते जब,
वादा, मेनीफेस्टो, वसूल सब इन्हें भूल जाता तब,
छोटे-बड़े सभी नेताओं का है यही फसाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
टिकटों की मारा मारी में उग्रसेन भी जाता,
किसी तरह कुर्ता फड़वाकर, लिये टिकट वह आता,
ठाकुर की खजड़ी बजती, होता सरवन का गाना,
रिक्शे पर अतिराजी देवी का झण्डा लहराना,
व्यक्ति-व्यक्ति पर, गाॅव-गाॅव पर, घर-घर छापा पड़ता,
तन-मन की सुधि, भूल-भाल कर उग्रसेन था लड़ता,
मैला कुर्ता, लम्बी डाढ़ी लिये देवरिया जाता,
कन्धों पर जुलूस होता, फिर विजय केतु फहराता,
उग्रसेन नेता गरीब का छिड़ता यही तराना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
फील्ड वर्क यदि रहा न होता, उग्रसेन उड़ जाता,
छोड़ गरीबों को कुर्सी की ओर तुरत मुड़ जाता,
पल-पल करता विमल दल-बदल, ताल-मेल बैठाता,
सत्ता से चिपके रहने की कोई युक्ति भिड़ाता,
किन्तु वसूलों पर चलने की उसकी नीति निराली,
इसीलिये उसकी पॅाकेट रहती थी हरदम खाली,
छूरी काॅटे से खाने का अवसर कम मिलता था,
इसीलिये लिट्टी-चोखा से उसका मन ख्लिता था,
यही शक्ति थी उग्रसेन की, उसका यही खजाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।
दीनबन्धु हे, उग्रसेन हे, लो प्रणाम जनता का,
लो आॅसू का हार कि जिसपर लिखा नाम जनता का,
जिन लहरों पर बहा गये तुम उस गरीब जनता का,
जिन भवरों में छोड़ गये तुम, उस अनाथ जनता का,
जिनके लिये सदा ठोकर खाने के और नहीं है,
जिनके लिये सिवा आॅसू पीने के और नहीं है,
उस जनता को उग्रसेन हे कैसे भूल सकोगे,
जहाॅ कहीं भी क्यों न रहोगे, सुधि बनकर उतरोगे,
झुकी हुई श्रद्धानत गर्दन, अपने हाथ उठाना,
हाय, गरीबों का हिमायती, उग्रसेन मस्ताना,
पवहरिया का रहने वाला, बरहज का दीवाना।