Kshetriya bhasa me bhojpuri ka atit swarnim

क्षेत्रीय भाषाओं में भोजपुरी का अतीत स्वर्णिम 

कबीरदास, तुलसीदास जैसे कवियों ने अपनाया इसे अपनी रचना में

मंगलगीत दिये  

हम आपको देंगें आदिकालीन होने का प्रमाण

                                               -अंजनी कुमार उपाध्याय

                    

                  भोजपुरी की पवित्रता और योगदान आज के लोगों के संज्ञान से एकदम परे है। ये यह भी नहीं जानते कि इस भाषा ने हमारे लिये क्या वरदान दिया है। सत्य तो यह है कि यदि इसके सुन्दर स्वरूप के योगदान जानने के बाद भोजपुरी भाषा को आज वेश्या की तरह उपयोग करने वाले खुद अपना सिर धुन लेगें। पर ये हमारा दुर्भाग्य है कि भोजपुरी शब्दों को नंगा करने वालों को सरकार भी आजकल प्यार करने लगी है। 


   इतिहास कारों ने इसे बिहारी भाषा के रूप में दर्शाया है। इसके अंतर्गत तीन बोलियाॅ आती हैं, मैथिली, मगही और भोजपुरी। मैथिली और मगही का सम्बन्ध केन्द्रीय मगध और बॅगला, आसामी और उड़िया का सम्बन्ध पूर्वी मगध से है। इस प्रकार बॅगला, आसामी और उड़िया भाषायें भोजपुरी की चचेरी बहन और मैथिली और मगही को सगी बहनें होने का श्रेय प्राप्त है। 

  विस्तार के रूप में देखने पर भोजपुरी का स्थान सबसे बड़ा दिखाई देता है। यह उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर मध्य प्रान्त तक है। बिहार प्रान्त में शाहाबाद, सारण, चम्पारण, राॅची, जशपुर रियासत, कुछ पलामू जिले के कुछ भाग तक, मुजफफर पुर जिले के उत्तर पश्चिम भाग तक, उ0प्र0 में बनारस, गाजीपुर, बलियाॅ, जौनपुर मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया तक यह फैला हुआ है। भोजपुरी भाषा के क्षेत्र विस्तार का वर्णन करते हुए एक लोरी गायी जाती है-

     ‘‘ए चन्दा मामा आरे आव, पारे आव, नदिया किनारे आव,

      सोने की कटोरिया में दूध भात ले केे आव, बबुवा के मुॅहआ में घूटुक।, 

      आरे आव, पारे आव, छपरा आव, बलियाॅ आ मोतिहारी आव, 

      राॅची अउर पलामू आव, गोरखपुर, देवरिया आव, 

      गाजीपुर, आजमगढ़ में आव, बस्ती अउर जौनपुर आव, 

      मिर्जापुर, बनारस आव, सोने के कटोरिया में दूध भात ले के आव, 

      बबुवा के मुॅहआ में घूटुक।’’

  भोजपुरी भाषा की ये लोरी फिल्मों में ली गयी पर क्षेत्र विस्तार के वर्णन से फिल्म वालों का क्या वास्ता। इस भाषा का नामकरण बिहार के शाहाबाद जिले में स्थित भोजपुर नामक गाॅव के नाम पर हुआ है। बक्सर डिवीजन में भोजपुर बड़ा शहर है, जिसके क्षेत्र में दो गाॅव नवका भोजपुर और पुरनका भोजपुर दो गाॅव हैं जो डुमराॅव नगर से पॅाच या सात किमी उत्तर गंगा के निकट बसे हैं, इन्हीं गाॅवों के नामकरण पर इस भाषा का नाम भोजपुरी पड़ गया। प्राचीन काल में भोजपुर बड़ा समृध्दिशाली नगर था। यह उज्जैन वंशी राजपूत राजाओं की राजधानी थी। भोजपुर स्थान का नाम इन उज्जैनी भोज राजाओं के नाम के कारण पड़ा है जो उज्जैन ‘मालवा’ से आकर बस गये थे। भोज नाम उज्जैनी राजाओ द्वारा उपाधि के रूप में धारण किया जाता है। इन्होने जिस नगर को बसाया उसका इन्हीं के नाम पर भोजपुर रखा गया। प्राचीन किला का भग्नावशेष आज भी भोजपुर गाॅव में मौजूद है। यहाॅ की बोली चारों तरफ धीरे धीरे फैलती गयी और भोजपुरी के नाम से विख्यात हो गयी। 

    भोजपुरी भाषा के सर्वप्रथम अनुसंधानकर्ता डा0 बीम्स थे जो ‘‘नोट्स आन द भोजपुरी डायलेक्ट्स आफ हिन्दी स्पोकेन इन वेस्टर्न बिहार’’ शीर्षक में वैज्ञानिक विश्लेषण किया था। डा0 ग्रियर्सन, जे आर रीड और डा0 ए0 एफ0 रूडोल्फ हार्नली ने भोजपुरी भाषा के व्याकरण पर प्रचुर सामग्री दी है। फेलेन की ‘‘न्यू हिन्दुस्तानी इंग्लिश डिक्शनरी’’ में भोजपुरी शब्दों, गीतों, मुहावरों और कहावतों का संग्रह मिलता है। भोजपुरी भाषा लगभग दो सौ हजार वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसका प्रधान केन्द्र उ0प्र0 के पूर्वी जिले और बिहार प्रान्त के पश्चिमी जिले हैं। परन्तु इन जिलों के अतिरिक्त सह भाषा अन्य स्थानों में भी बोली जाती है। भोजपुरी भाषा अपने इन क्षेत्रो के अलावा आरा, सारन, चम्पारण, पलामू, राॅची आदि क्षेत्रों में मातृभाषा के रूप मे प्रयोग किया जाता है।

 इन क्षेत्रों के अलावा मध्य प्रदेश के भूतपूर्व जसपुर स्टेट में बोलने वाले लोग पाये जाते हैं। बंगाल के विभिन्न जिलों कलकत्ता नगर में, बम्बई के अॅधेरी और जोगेश्वरी में लाखों की संख्या में भोजपुरी भाषायी लोग बसे हुए हैं। आसाम के चाय बागानों में लाखों भोजपुरिया काम करते हैं। इस प्रकार भोजपुरी भाषा भाषियों की संख्या लगभग 25 करोड़ से अधिक है। साहसी भोजपुरी भाषायी लोगों ने अपने शौर्य और पराक्रम से उपनिवेशों में अपना निवेश बना लिया। मारीशस, फीजी, ट्ीनीदाद, ब्रिटिश गाईना, आदि द्वीपों को बसाने का श्रेय इन्हीं भोजपुरियो को प्राप्त है। इन स्थानों पर आज 70 प्रतिशत लोग भोजपुरी भाषायी हैं। इस प्रकार समस्त भोजपुरी भाषायी लोगों का मका टोटल 26 करोड़ से अधिक हो जाता है। 

  इस प्रकार यदि देखा जाय तो अन्य क्षेत्रीय बोलियों जैसे अवधी, ब्रज, बुन्देलखण्डी, छत्तीसगढ़ी, से बढ़कर बॅगला, गुजराती, मराठी को चुनौती देने में हमारी भोजपुरी भाषा पूरी तरह सक्षम है। जनसंख्या गणना के आकड़ों के मुताबिक तीन समृध्द भाषाआके में से किसी एक के ओलने वालों की संख्या 3 करोड़ से अधिक नहीं है जब कि भोजपुरी भाषा बोलने वालों की संख्या इससे कई गुना है। इस प्रकार भारत की वर्तमान जनसंख्या का कम से कम सातवाॅ हिस्सा भोजपुरियों का है। जहाॅ भारत की अन्य भाषायें इस देश की सीमा के भीतर ही बोली जाती हैं वहीं  भोजपुरी भाषा इस देश की सीमा का परिधि का अतिक्रमण कर सुदूर उननिवेशों में भी अपना आसन जमा लिया है। इस प्रकार भोजपुरी को अंतर्राष्ट्ीय भाषा होने का गौरव प्राप्त है। 

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