भोजपुरी के प्रवर्तक, महानायक, स्तम्भ भिखारी ठाकुर
इनकी रचनायें बड़ी मार्मिक और दिल में सीधे उतर जाने वाली हैं। विदेशिया नाटक ने तो ऐसी धूम मचाई कि फिल्म जगत के लोगों ने उसपर फिल्म ही बना डाले। इस फिल्म में स्वम भिखारी ठाकुर ने अभिनय किया है। इसका विस्तृत विवरण हम अल्र से दे रहे हैं। यहाॅ पर हम भिखारी ठाकुर की कुछ रचनाओं का जिक्र करेंगें। प्यारी सुन्दरी वियोग में विरह वर्णन कितना मार्मिक है, इसका एक उध्दरण आप देखें।
‘‘रंग महल बइठल सोचे प्यारी धनिया से,
विरह सतावे जिया बीच परदेशिया,
चढ़ली जवनिया बइरिनि भइली हमरी से,
मदन सतावै जिय माॅहि परदेशिया।’’
वृध्द विवाह में पुत्री अपने पिता से कहती है-
‘‘आखि से सूझत कम, हरदम खींचत दम,
मथवा के बरवा चॅवरवा हटे बाबूजी,
मुॅहवा में दाॅत नाहि, गाले मुॅहे लार चूवे,
बोलले पर भीतर सड़ल बदबू बाबूजी,
पति कर देख गति, पागल भइल मति,
रोई रोई करीलाॅ बिहान मोर बाबूजी।’’
बाल विवाह का भिखारी ठाकुर ने बड़ा विदारक वर्णन किया है। विवाहिता स्त्री का पति अतना छोटा और नादान है कि रात को जब सियार की आवाज सुनता है तब वो उसे सिंह की आवाज समझकर चिल्लाकर रोने लगता है और पत्नी के समझाने पर भी डर के मारे नहीं सोता। उस समय पत्नी की क्या दशा होती है इसका चित्रण भिखारी ठाकुर ने अपनी रचना में किया है।-
‘‘बनवारी हो, हमरा के लरिका भतार,
लरिका भतार, लेके सुतेलीं ओसरवा,
बनवारी हो, जरि गईल एड़ी से कपार,
खेतवा में सुने जब सियरा के बोलिया,
बनवारी हो, रोवे लागल लरिका भतार,
चुप होखु, चुप होखु, ननदी के भईया,
बनवारी हो, रहरी में बोलेला हुॅड़ार।’’
भिखारी ठाकुर का यह गीत बाद में एक भोजपुरी फिल्म ‘लागी नाहीं छूटे रामा’ में चुराकर खूब लोकप्रियता और पैसा बटोरा गया। कई फिल्मी लेखक, गीतकार, संगीतकार छद्म रूप से गीतों को ऐसे चुराते हैं कि उन्हे आगामी समय के कोप से डर नहीं लगता है। चोरी किये गये गाने के बोल थे-
‘‘बनवारी हो, हमरा के बलमा गॅवार,
टिकुली कइनीं, सेनुर कइनीं, कइनीं सब सिंगार,
बइठल टुकुर टुकुर ताकेला, जिया भइल अंगार,
बनवारी हो जरि गईल एड़ि से कपार,
बनवारी हो केकर होई एइसनि भतार।’’
आप सोच लीजिये, लोकप्रियता के लिये इस चोरी को किस संज्ञा से विभूषित किया जाय। भिखारी ठाकुर की रचनाओं का उध्दरण यदि दिया जाय तो मन अतृप्त ही बना रहेगा। हम इन्हें जन कवि की संज्ञा देते हैं। इनकी कवितायें जन जन के दिलों में वास करतीं हैं। इनकी एक लाईन से बात समप्त कर रहे हैं-
‘‘नाम ‘भिखारी’, काम ‘भिखारी’ रूप भिखारी मोर,
ठाट, पलानि, मकान भिखारी, चहुॅ दिसि भइल सोर।’’
‘विदेशिया’ फिल्म
विदेशिया फिल्म में वह भावात्मा नहीं आयी
जो भिखारी ठाकुर ने नाट्य मंचन में दिया
विदेशिया नाम आते ही लोग फिल्म की प्रशंसा कर बैठते हैं जबकि फिल्म में कथानक भले ही भिखारी ठाकुर का रहा हो नाम किसी और ने डालकर विदेशिया का सारा श्रेय खुद लूट लेने का अपराध किया। विदेशिया की कहानी को फिल्मी गुरिल्लों ने ऐसा बर्बाद किया कि वह भिखारी ठाकुर के नाट्य मंच के आगे जीरो है। यद्यपि भिखारी ठाकुर की विदेशिया की धूम फिल्म बनने के पहले ऐसी मची थी कि अगर सिर्फ नाम ही रहा होता तब भी भिखारी ठाकुर के नाम पर फिल्म आसमान की बुलंदियों को पा जाती। भिखारी ठाकुर के नाम को कैसे फिल्मी गोरिल्ले भजा कर मुकुट अपने सर पर रख लिये, ये आज हम आपको दिखा रहे हैं। यह जानने के लिये पहले भिखारी ठाकुर के विदेशिया नाटक की वास्तविक कहानी आपके सामने।
विदेशिया का नायक का बाल विवाह है। वह जीवकोपार्जन के लिये कलकत्ता जाकर पुलिस में भर्ती हो जाता है। छुट्टी न मिलने के कारण वर्षों वहीं रह जाता है और वहीं बंगाली युवती के प्रेम जाल में फॅस जाता है। अपनी ब्याहता की खोज खबर से कोई मतलब नहीं रख पाता। न पत्र भेजता है न पैसा। सती स्त्री अनेक वर्षें तक पति का राह देखती है। समाचार न मिलने पर बेचैन हो जाती है। एक बार रास्ते में जाते हुए कोई बटोही उसे मिल जाता है। वह ब्याहता बटोही से अपने पति को खोजने के लिये प्रार्थना करती है। उस समय कोई तस्वीर नहीं थी इसलिये ब्याहता अपने पति की पहचान बताती है। उसकी आॅखें बड़ी बड़ी हैं, नाक तोते के समान चोख है, होंठ पान के पत्ते की तरह पतले हैं, दाॅत बिजली के समान चमकते हैं, मूॅछें काली काली हैं, सिर पर लाल पगड़ी और ललाट पी लाल टीका है। बटोही पूरब दिशा को जाता है और बड़ी मुश्किल से उसके पति को ढूॅढ लेता है। बटोही उसके पति से उसकी प्रियतमा की दुख गााथा सुनाता है जिसे सुनकर परदेशी मूर्छित हो जाता है। होश आने पर उदास हो जाता है और वापस घर लौटने की चिन्ता सताने लगती है। उसकी रक्षिता उसे भाॅति भाॅति से प्रलोभन देती है पर वो पक्षिता की बात न मानकर नौकरी छोड़कर घर की ओर प्रस्थान कर जाता है। वह रात में अपने घर पहुॅचता है। उसकी स्त्री चोर समझकर डर जाती है और रोते हुए कहती है कि आज मेरे सिपाही पति घर पर होते तो इस चोर को मार भगाते। इस पर उसका परदेशी पति अपने होने का प्रमाण देता है जिसपर उसे पहचान कर डरते-डरते दावाजा खोलती है और सामने अपने पति को पाती है। पति को सामने देखकर भावुकता के कारण वो मूर्छित को जाती है। पति उसे उठाकर गले से लगा लेता है। यह संक्षेप में भिखारी ठाकुर द्वारा लिखित विदेशिया का कथानक है। इस कथा में संवाद के साथ भिखारी ठाकुर ने जो इसमें गीत लिखे हैं उसका प्रभाव अलग ही है।
विदेशिया नाटक का अभिनय प्रायः बारात या विशेष अवसरों पर किया जाता था। भीड़ इतनी अधिक होती थी कि हाल या शामियाने में करना संभव नहीं हो पाता इसलिये इस नाटक का मंचन खुले आसमान तले होता था। यह विदेशिया का मंचन अभिनय, नृत्य और संगीत का त्रिवेणी संगम था। भिखारी ठाकुर अच्छे गायक, सफल अभिनेता और लेखक थे। स्वम नाटक में भाग लेते थे। इनके तमाम शिष्य बने और अपने को गौरवान्वित महसूस किये। भिखारी ठाकुर के शिष्यों के नाम पर कई सौ नाटक कम्पनी अपने आप चल निकली, फिर भिखारी ठाकुर के नाम पर विदेशिया फिल्म क्यों नहीं चलती। भले ही कथावस्तु के नाम पर भिखारी ठाकुर की कहानी का भावात्मक हनन हो गया हो पर एक श्रेय और था कि विदेशिया फिल्म में भिखारी ठाकुर को एक रोल में अभिनय करने का मौका फिल्म निर्माता ने दे दिया था। इसलिये फिल्म तो चली, खूब चली, पैसे खूब निर्माता ने कमाये पर भिखारी ठाकुर के विदेशिया की भावात्मक रूप लोगों के मानस पटल से उतरता चला गया। आइये आपको हम विदेशिया फिल्म पर ले चल रहे है।
विदेशिया फिल्म बच्चू भाई शाह के प्रोडक्शन और एस एन त्रिपाठी के निर्देशन और संगीत में बनायी गयी। कहानी, संवाद और गीत राम मूर्ति चतुर्वेदी का है। कलाकार नाज पार्वती के रूप में मुख्य नायिका, सुजीत कुमार मुख्य नायक विदेशी ठाकुर के रूप में, अन्य कलाकारों में पद्मा खन्ना छोटी मालकिन पद्मा के रूप में, जीवन छोटे ठाकुर के रूप में तथा शील कुमार, साधना राय चैधरी, सुलोचना चटर्जी, हेलेन, मुख्तार अहमद, बेला बोस, सोहन लाल, रानी, टी एन सिन्हा और एस एन त्रिपाठी। भिखारी ठाकुर को एक गीत पढ़ने के लिये मात्र रखा गया है। मुख्य गीत हैं, दिनवा गिनत, रिम झिम बरसेला सवनवा, इश्क करे उ, बन जइयो पिया की, हॅसि हॅसि पनवा, जान लेके हथेली पे। आवाज है, सुमन कल्याणपुर, गीता दत्त, कौमुदी मजुमदार, महेन्द्र कपूर, मन्ना डे। फिल्म 1963 में प्रदर्शित हुयी थी।
इसकी कहानी विदेशिया के कथानक से मेल नहीं खाती है। भिखारी ठाकुर के नायक नायिका का अरेंज मैरेज थाए बाल विवाह था। फिल्म में निम्न उच्च जाति का प्रेम प्रसंग है। नाटक साफ सुथरा खलनायक विहीन था जबकि इसमें खलनायक नायिका का अपहरण भी करता है। नाटक सुखान्त है जबकि फिल्म में नायिका खलनायक द्वारा मारी जाती है। कुल मिलाकर विदेशिया फिल्म भिखारी ठाकुर के नाम को बेचकर सिर्फ धन कमाने के उद्देश्य से बनीं। इस फिल्म में दूर-दूर तक भिखारी ठाकुर के कथानक से कोई सम्बन्ध नहीं है। इसमें कोई शक नहीं कि विदेशिया को भिखारी ठाकुर की फिल्म कहने वाले नहीं जानते कि इस फिल्म के द्वारा भिखारी ठाकुर के पवित्र कृति को मैला किया गया है और उनके नाम को भजाया गया है। शायद यह इस कारण हो गया क्योंकि एक तो भिखारी ठाकुर गरीब थे, दूसरे दबे समाज से थे और उस समय अति वयोवृध्द हो गये थे। कोई किसी को भले अन्धकार के गर्त में धकेलने का काम किया पर समय उसका न्याय अवश्य करता है।