मानसरोवर से बंगाल की खाड़ी तक माॅ सरयू का जल करता है इनका अभिषेक-
आचार्य कृपानारायण मिश्र
-अनगिनत लोगों को रामभक्ति का दर्शन कराया
-प्रकृति का कण-कण करता है जिनका यशोगान
-माॅ सरयू की अमर कथा को दुनियाॅ में पहली बार लाने का श्रेय
‘‘माॅ सरयू को पृथ्वी पर अवतरित होने का श्रेय महर्षि वशिष्ट, महाराजा इक्ष्वाकु, निषादराज को जाता है और इनके महात्म्य को संसार के समक्ष लाने का श्रेय आचार्य कृपानारायण मिश्र को जाता है। आपके दर्शन मात्र से अपार श्रध्दा उत्पन्न हो जाती है।’’ -जीतेन्द्र भारत
सम्पदा-ग्रुप
बचपन में सुना करता था कि ‘‘तुलसी इस संसार में सबसे मिलिये धाय, का जाने केहि भेष में नारायण मिल जाय।’’ जी हाॅ ये पंक्तियाॅ अतिश्योक्ति नहीं। उ0प्र0 के देवरिया जिले के बरहज तहसील में एक गाॅव है, ‘कटियारी’। इस गाॅव में श्री पं0 भानुदत्त मिश्र के पुत्र आचार्य कृपानारायण मिश्र ऐसे व्यक्तित्व हैं जिन्होंने आजीवन राम कथा और वेद पुराण से ऐसा सामंजस्य बैठाया कि आज 80 वर्ष की अवस्था में इतनी बार रामकथा और धार्मिक कार्यों को इन्होने कर दिखाया है कि अगर आप इनका नाम लें तो वातावरण का कण-कण अपने आप भक्ति का संचार करने लगेगा। यह हमारे लिये गर्व की बात है कि ऐसे व्श्क्तित्व आज हमारे बीच हैं जो बड़े-बड़े सन्त जैसे राघवदास, सत्यव्रत जी महाराज, योगिराज देवरहवा बाबा, फलहारी दास जी महाराज, गायत्री पुत्र सहित भारत के कोने-कोने के सन्त शंकराचार्य जी महाराज, राम किंकर उपाध्याय का सानिध्य प्राप्त कर चुके हैं। आपकी माता श्रीमती राम कुमारी देवी की विशेष अनुकम्पा आप पर रही है। आचार्य जी अंग्रेजी और संस्कृत सहित सारी योग्यताएॅ प्रथम श्रेणी में अर्जित की हैं। धर्मिक प्रवचन विशेषकर रामकथा और भगवत कथा अनवरत 56 वर्षों से अधिक समय तक भारत के अतिरिक्त नेपाल, भूटान, बंगलादेश जैसे पड़ोसी मुल्कों में और भारत के लगभग सभी बड़ी संस्थानों में कर चुके हैं।
भारत में कहीं भी माॅ सरयू के अवतरण की कथा संकलित नही थी। इतना ही नहीं माॅ सरयू आर्यावर्त की पहली सरिता या देवी हैं यह बात से भी लोग अनभिज्ञ थे। इन्होने अपनी पुस्तक सरयू स्तुति माला में सरयू के अवतरण की पूरी कथा एवम् व्याख्या दी है। माॅ गंगा की सरयू माॅ बड़ी बहन हैं और भगवान विष्णु के नेत्र से निकलने के कारण इन्हें नेत्रजा कहा जाता है, इसकी पूरी व्याख्या इन्होने दी है। महर्षि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को राप्ती और सरयू के तट पर माॅ सरयू के सन्दर्भ में गुरूपूर्णिमा के दिन बतलाया था तथा श्री राम और लक्ष्मण ने राप्ती और सरयू के तट पर गुरू का पूजन किया। आपने अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है कि ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा के दिन इक्ष्वाकु माॅ सरयू को लेकर अयोध्या पहुॅचे तथा उसके एक माह बाद अषाढ़ माह के पूर्णिमा के दिन अर्थात गुरूपूर्णिमा के दिन माॅ सरयू बरहज पहुॅची। बरहज का तात्पर्य राप्ती सरयू मिलन स्थल है जहाॅ आज धार्मिक नगरी बरहज बसा हुआ है।
कथा लम्बी है जो आचार्य कृपानारायण मिश्र के पुस्तकों से प्राप्त हो सकती है। आपका जन्म भाद्र शुक्ल पक्ष 13 संवत 1995 अर्थात सन् 1938 में हुआ। यह वही वर्ष है जब इस क्षेत्र में योगिराज देवरहवा बाबा का और गायत्री पुत्र का आगमन हुआ था। यह सम्पदा के लिये गर्व का विषय है कि आचार्य कृपानारायण मिश्र सम्पदा के प्रथम सम्पादक 1989 में रहे हैं और मैं व्यवस्थापक के रूप में इनके साथ कार्य किया हूॅ। इनके सामीप्य और सानिध्य से जो बल मिला है सम्पदा उसी बल के दम पर आज पुष्पित और पल्लवित हो रही है। आपके दीर्घायु और चिरायु होने की सम्पदा परिवार मंगलकामना करता है।