गोवर्ध्दन पूजा : एक प्राचीन क्रांति की स्मृति /
दीवाली की अगली सुबह मनाया जाने वाला गोवर्द्धन पूजा या अन्नकूट उत्तर भारत के पशुपालकों का सबसे बड़ा पर्व है। वैदिक काल के महाप्रतापी देवता इन्द्र की निरंकुश सत्ता के प्रतिरोध में इस पर्व की शुरूआत द्वापर युग में कृष्ण ने की थी। पुराणों के अनुसार एक बार अतिवृष्टि से गोकुल और वृंदावन जलमग्न हो गए। वहां के निवासियों ने अपनी और अपने पशुधन की रक्षा के लिए परंपरागत रूप से वर्षा के देवता इंद्र से गुहार की। उन्हें प्रसन्न करने के लिए वैदिक अनुष्ठानों का लंबा क्रम चला। भरपूर 'हवि' पाने के बाद भी इन्द्र मेहरबान नहीं हुए। कृष्ण ने अहंकारी इंद्र को समर्पित वैदिक कर्मकांड तत्काल बंद करा दिए। उंगली पर गोवर्द्धन पर्वत उठा लेना तो प्रतीक है। हुआ यह होगा कि आसन्न जलप्रलय को देखते हुए उन्होंने गोकुल और वृन्दावन के लोगों को उंगली के इशारे से गोवर्द्धन की ओर चल पड़ने का संकेत किया होगा। उनकी बात मान लोगों ने गोवर्द्धन पर्वत की शरण लेकर जलप्रलय से अपनी और अपने पशुधन की रक्षा की थी। यही वह दिन था जब सदा के लिए इंद्र की पूजा बंद हुई और गोवर्द्धन पर्वत के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन का अनुष्ठान आरम्भ हुआ। उस युग के संदर्भ में देखें तो शक्तिशाली इंद्र को वैदिक काल से चले आ रहे गौरव से अपदस्थ कर देना स्थापित मान्यताओं के विरुद्ध किशोर वय के कृष्ण का क्रांतिकारी कदम था। उस घटना की स्मृति में आज घर-घर में गाय के गोबर से गोवर्द्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसके प्रति श्रद्धा निवेदित की जाती है।
आप सभी को गोवर्ध्दन पूजा की बहुत शुभकामनाएं !