मुकेश

🌞हो जानेवाले हो सके तो लौट के आना
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दिल पर सीधा असर करने वाली आवाज़ के मालिक 'गीतों के राजकुमार' मुकेश की आज  47वीं बरसी है.उनके बारे में आज कुछ अनूठी जानकारियां आपसे शेयर करना चाहता हूँ. इजाज़त है? शुक्रिया.


मेरी अब  तक प्राप्त जानकारी के अनुसार मुकेश जी ने  565 फिल्मों में  965  गाने गाए हैं .जिनमे सबसे ज़्यादा  उन्होंने शंकर जयकिशन के लिए लगभग 134 गाने गाए. 4 'फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड्स' में से  3 भी उन्होंने शंकर जयकिशन के गीतों के लिए जीते. दूसरे नवम्बर पर आते हैं कल्याणजी-आनंदजी जिनके लिए मुकेश जी ने  99 गाने गाए.और तीसरे नंबर हैं- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने  क़रीब 80 गाने गए. इसके अलावा उन्होंने ग़ैर-फिल्मी गीत भी गए जिनकी संख्या 106 के क़रीब है. अतःउनके गाये गीतों की कुल संख्या 1053 है.और हाँ,मानस गायन के 5 घंटे के 8 लांग प्ले-रिकॉर्ड ( LP Records) भी उनकी आवाज़ में घर घर गूंजते हैं.बतौर एक्टर मुकेश जी ने 8 फिल्मों में अभिनय भी किया.1 फ़िल्म  में संगीत दिया और 9 गाने कम्पोज़ किये.

मुकेश ने पहला गाना 1941 की फ़िल्म 'निर्दोष' के लिए अशोक घोष के सङ्गीत-निर्देशन में गाया, पर वो गाना न तो चला,न ही संगीत-प्रेमियों द्वारा नोटिस किया गया. मुकेश जी की कोशिश जारी रही. चार साल बाद 1945 में अभिनेता मोतीलाल के लिए पार्श्व-गायक के रूप में फ़िल्म 'पहली नज़र' का 'आह" सीतापुरी का लिखा और अनिल बिस्वास द्वारा संगीतबद्ध गाना "दिल जलता है तो जाने दे" ने मुकेश को पूरी तरह स्थापित कर दिया और संगीतकार अनिल बिस्वास ने उन्हें अपना 'मानस पुत्र' मान लिया.

संगीत निर्देशक नौशाद अली ने मुकेश की 'सहगल शैली' से बाहर आने और अपनी 'ख़ुद शैली' बनाने में मदद की. नौशाद ने उन्हें फिल्म 'अंदाज' के लिए गाने दिए. मुकेश इस फिल्म में दिलीप कुमार की आवाज़ बने थे और मोहम्मद रफ़ी ने राज कपूर के लिए गाया था. उन्होंने नौशाद के लिए कई सुपरहिट फ़िल्में दीं जैसे:अनोखीअदा (1948), मेला (1948), अंदाज़ (1949).पर गानों की संख्या 27 से आगे न बढ़ी.

लेख के लंबाई की लंबाई को ध्यान में रखते हुए यहां मैं केवल उन्ही कुछ अनमोल गीतों की चर्चा करूंगा जिन्हें मुकेश जी ने शंकर -जयकिशन के संगीत-निर्देशन में गया है.

'बरसात'(1949)शंकर-जयकिशन की पहली फिल्म थी.'बरसात' के संगीत में लता मंगेशकर का दबदबा था.मुकेश को उनके साथ-केवल  दो युगल मिले. लेकिन उनके अगले ही वेंचर 'आवारा' (1951) का टाइटल ट्रैक था, जो एक 'वैश्विक सनसनी' बन गया, जिसने राजकपूर नरगिस को विदेशों में सबसे अधिक पहचाने जाने वाले चेहरों में से एक और भारत का "सांस्कृतिक राजदूत" बना दिया. उसी वर्ष, एक गैर-आरके फिल्म 'बादल' में भी, शंकर जयकिशन  याने एसजे ने एक उत्कृष्ट एकल, 'मैं राही भटकने वाला हूं',और लता मंगेशकर के साथ उतना ही अच्छा एक युगलगीत, 'ऐ दिल न मुझसे छुपा' बनाया. एसजे की अगली फिल्म 'आह' (1953) ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल तो नहीं मचाया लेकिन मुकेश ने बहतरीन गाने गाए! दो एकल: 'रात अंधेरी दूर किनारा'
 ,'छोटी सी ये ज़िंदगानी रे', और लता मंगेशकर के साथ दो युगल:'जाने ना जिगर पहचाने नज़र', 'आजा रे अब मेरा दिल पुकारा' मुकेश के प्रशंसकों के लिए सबसे पसंदीदा गीतों में से हैं.

राज कपूर की आवाज़ के रूप में मुकेश की 'पहचान' बनने के साथ, राज कपूर की लगभग सभी फिल्मों में,चाहे आरके बैनर के तहत या बाहर,अगर एसजे संगीत निर्देशक होते तो मुकेश प्रायः उनकी ही आवाज़ होते. उनकी हर फ़िल्म में आज तक याद किए गए महान गीत थे:कन्हैया, मैं नशे में हुं (1959), जिस देश में गंगा बहती है (1960) ,'आशिक', 'एक दिल और सौ
अफ़साने' (1962), संगम (1964), 'तीसरी कसम' (1966), 'अराउंड द वर्ल्ड', दीवाना (1967), 'सपनों का सौदागर (1968) और 'मेरा नाम जोकर' (1970).

एसजे ने मनोज कुमार (हरियाली और रास्ता-1962), सुनील दत्त (एक फूल और चार कांटे-1960) और राजेंद्र कुमार (आस का पंछी, ससुराल, 1961) जैसे कई नायकों के लिए भी मुकेश की आवाज़  इस्तेमाल किया.

मुकेश को फिल्म अनाड़ी (1959) में गाने 'सब कुछ सीखा हमने' के लिए अपना 'पहला फिल्मफेयर पुरस्कार' मिला और शंकर-जयकिशन को 'सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन' का.इसके बाद मुकेश को फ़िल्म 'पहचान' (1970) में "सबसे बड़ा नादान वही है" के लिए पुरस्कार मिला. एसजे के संगीत निर्देशन के तहत 'बेइमान' (1972) में "जय बोलो बेइमान की" के लिए. चौथा 'फ़िल्मफ़ेअर अवार्ड'.  मुकेश को ख़ैयाम के संगीत निर्देशन में फ़िल्म 'कभी कभी' (1976) के लिए मिला. रजनीगंधा (1974) के लिए उन्हें 'नेशनल अवार्ड' मिला जिसे लिखा था योगेश ने और संगीतबद्ध किया था सलिल चौधरी ने.

यह जानकर बहुत आश्चर्य होता है कि कई बड़े संगीत निर्देशकों द्वारा मुकेश जी की आवाज़ का उपयोग उतना नहीं किया जितना किया जाना चाहिए था,मसलन - सी रामचंद्र ने :4, मदन मोहन ने : 9 ओपी नैयर ने :4, एस डी बर्मन ने :12 और आर डी बर्मन ने  केवल:12 गाने ही उनसे गवांए.

अंत मे सबसे महत्वपूर्ण बात जो मेरे ज़हन और
अवलोकन में आई वो यह है कि संगीत निर्देशक लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने फ़िल्म "अनीता"," फ़र्ज़ " "पत्थर के सनम" और "मिलन" गीतों के माध्यम से गायक मुकेश की महिमा को पुनः स्थापित किया था.  यही वजह है कि मुकेश जी ने "बॉबी" के संगीत के लिए राज कपूर को लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के नाम की ज़ोरदार सिफारिश की.

👉👉इस लेख को लिखने का मेरा मक़सद सिर्फ़ और सिर्फ़ महान गायक मुकेश जी को उनकी 47वीं बरसी पर नमन करने के अलावा,उनकी फिल्मों की संख्या और गीतों को लेकर जो भ्रांतियां फैली हुई हैं उन्हें दूर करना है.
🙏🙏

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