Kumkum

आदरणीय ध्रुव गुप्त से साभार
एक थी कुमकुम /

कल यूट्यूब पर पुरानी फिल्म 'मदर इंडिया' के राजेन्द्र कुमार और कुमकुम पर फिल्माए एक बहुत ही प्यारे गीत 'घूंघट नहीं खोलूंगी सैया तोरे आगे ' सुनते हुए उस दौर की एक बहुत खूबसूरत और प्रतिभाशाली अभिनेत्री कुमकुम की बहुत याद आई। हिंदी फिल्मों में अभिनय के क्षेत्र में बिहार के योगदान की बात होती है तो बात शत्रुघ्न सिन्हा, मनोज वाजपेयी, पंकज त्रिपाठी, संजय मिश्रा, अखिलेन्द्र मिश्रा और अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा पर जाकर ठहर जाती है। लोग उस बिहारी अभिनेत्री को भूल जाते हैं जिसने पिछली सदी के पांचवे और छठे दशक में अपने अभिनय और नृत्य प्रतिभा से धूम मचा रखी थी। सौ से ज्यादा फिल्मों में नायिका और सहनायिका के तौर पर अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाली अभिनेत्री कुमकुम को वह यश नहीं मिला जिसकी वे हकदार थीं। कुमकुम उर्फ़ जेबुन्निसा का जन्म 1934 में बिहार के हुसैनाबाद (वर्तमान शेखपुरा जिला) में हुआ था। उनके पिता सैयद मंजूर हसन वहां के बड़े जमींदार हुआ करते थे। आज़ादी के बाद ज़मींदारी ख़त्म होते ही नवाब ने कलकत्ता जाकर दूसरी शादी की और अपनी नई पत्नी के साथ पाकिस्तान चले गए। कुमकुम की मां खुर्शीद बानो जेबुन्निसा की नृत्य के प्रति प्रबल आकर्षण देखते हुए बच्चों के साथ कलकत्ता से बनारस आई और वहां जेबुन्निसा को नृत्यगुरु शम्भू महाराज से नृत्य की शिक्षा दिलाने के बाद मुंबई को अपना ठिकाना बना लिया।

जेबुन्निसा को कुमकुम नाम से फिल्मों में सबसे पहले ब्रेक दिया सोहराब मोदी ने 1954 की अपनी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म 'मिर्ज़ा ग़ालिब' में, लेकिन फिल्म के छोटे-से किरदार में किसी ने उनका नोटिस नहीं लिया। इसी साल रिलीज़ गुरूदत्त की फिल्म 'आर-पार' में उनपर फिल्माए गीत 'कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र' ने उन्हें पहचान दी। उसके बाद अपने 20 साल के करियर में कुमकुम ने सौ से ज्यादा फिल्मों में गुरुदत्त, किशोर कुमार, दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, धर्मेंद्र समेत कई बड़े सितारों के साथ काम किया। 'कोहिनूर' में दिलीप कुमार की सहनायिका की भूमिका में उन्होंने प्रभावित किया। इस फिल्म के गीत 'मधुबन में राधिका नाचे रे' और 'जादूगर क़ातिल, हाज़िर है मेरा दिल' पर उनके अद्भुत नृत्य  ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया था। अपनी फिल्म 'मदर इंडिया' में उनके काम से प्रभावित होकर महान निर्देशक महबूब खान ने अपनी अगली फिल्म 'सन ऑफ इंडिया"' में उन्हें नायिका की भूमिका दी। किशोर कुमार के साथ 'मिस्टर एक्स इन बॉम्बे' और 'गंगा की लहरें' सहित कई फिल्मों में वे नायिका बनीं। धर्मेंद्र की पहली फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' और बाद में  एक फिल्म 'ललकार' में वे उनकी हीरोइन थीं। नायिका और सहनायिका के रूप में उनकी कुछ दूसरी चर्चित फिल्में थीं -  मिस्टर एंड मिसेस 55,  हाउस नंबर 44, सीआईडी,, फंटूश,  प्यासा, नया दौर, शरारत, उजाला, एक सपेरा एक लुटेरा, राजा और रंक, आंखें, गीत और एक कुंवारा-एक कुंवारी। वर्ष 1963 में जब भोजपुरी फिल्मों की शुरुआत हुई थी तो उसकी दो बेहतरीन आरंभिक फिल्मों - गंगा मैया तोहे पियारी चढ़ईबो और लागी नाहीं छूटे राम कीनायिका वे बनी। उनकी आखिरी फिल्म 'जलते बदन' साल 1973 में आई जिसमें उनके हीरो थे किरण कुमार। 

वर्ष 1975 में फिल्मों को अलविदा कह वे लखनऊ के सऊदी अरब स्थित व्यवसायी सज्जाद अकबर खान से शादी कर सऊदी अरब चली गई। वहां लगभग बीस साल गुज़ारने के बाद 1995 में वे पति और बेटे-बेटी के साथ भारत लौटी। सुखद था कि अपने गांव हुसैनाबाद से उनका नाता आजीवन बना रहा। मेरे लिए यादगार है कि इस दौरान उनसे मेरी दर्जनों  बार फोन पर बात हुई थी। संयोग से ही यह हुआ। उन्हें गांव के एक ज़मीनी विवाद के संबंध में अपने जिले के एस.पी से कुछ बात करनी थी लेकिन गलती से मुझ मुंगेर के एस.पी को फोन लग गया। मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के कारण मैं उनकी बहुत मदद तो नहीं कर सका लेकिन उनसे बातों का सिलसिला लंबा चला। मैंने उनसे उनके फिल्म कैरियर के बारे में  भी कुछ जिज्ञासाएं  की थी जिनके जवाब उन्होंने बहुत साफ़गोई और आत्मीयता के साथ दिए थे। बढ़ी उम्र में भी उनकी आवाज़ में वही खनक, वही नज़ाकत, वही नफ़ासत थी जो उनकी फिल्मों में महसूस हुआ करती थी।

28 जुलाई 2020 को 86 साल की उम्र में कुमकुम का देहांत हो गया।

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