National Film Archive of India ने आज ये तस्वीर साझा की है। इस पोस्ट के मुताबिक या तस्वीर 15 दिसंबर 1972 को फिल्मफेयर में छपी थी और इसे "पखवाड़े की तस्वीर" का दर्जा दिया गया था। इसे पाल बजाज ने खींचा था।
इसे देखकर मन भर आया।
आशा भोसले और लता मंगेशकर गले लगी हुई हैं।
दो बहनों के गले लगने में कुछ भी ख़ास या अद्वितीय नहीं होता।
पर यहां गौर से देखें तो मानो छोटी बहन आशा भोसले ने दीदी लता को थामे रखा है। हमें नहीं पता कि यह तस्वीर किस मौके की है। हो सकता है कि कोई दुख का मौक़ा हो और जज़्बाती हुई दीदी को आशा थाम रही हों।
पर मीडिया में दोनों गायिका बहनों की आपसी प्रतिद्वंदिता को लेकर जिस तरह रस भरी चर्चा होती रही है, हमें यह तस्वीर उसके परे देखने की मोहलत देती है। अगर प्रतिस्पर्धा थी भी, या कोई निजी मामले थे भी, तो हमें कोई हक़ नहीं, ताकझांकी या टीका टिप्पणी करने का।
हम इन्हें दो महान गायिकाओं की तरह देखें।
आशा भोसले ने लता के प्रभा मंडल के पार अपनी गायकी की एक सजीली दुनिया रची। दोनों की आवाज़ की अपनी चमक, अपना लोच है, अपना असर है।
गुलज़ार साहब ने क्या खूब कहा था—"मेरे लिए वो दोनों नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन बज एलड्रिन की तरह हैं, जो एक के बाद एक पहली बार चांद पर पहुंचे थे. ये ऐसा था जैसे लता जी विंडो साइड पर हों और आशा जी उनके ठीक बगल में. उनमें कोई ज्यादा और कम नहीं है, इसलिए ये सवाल ही नहीं उठता कि दोनों में से बेहतर कौन है. ये कुछ इस तरह है कि कोई लंबा चलने वाला रिकॉर्ड हो और वो दोनों इसके दो साइड"...