कितनी तक़लीफ़देह है रेत की मछली का समापन।
धर्मवीर भारती ने दो शादियाँ की थीं । दोनों पत्नियां उनके मरने तक जिंदा थीं । पहली पत्नी कांता भारती थीं । कांता भारती का पूरा परिवार भारत पाकिस्तान बंटवारे के समय शरणार्थी होकर भारत के इलाहाबाद नगर पहुँचा था । उस समय वह कांता कोहली थीं ।कांता कोहली का जन्म 19 अगस्त 1935 में हुआ था ।
उपेंद्रनाथ अश्क की पत्नी कौशल्या ने धर्मवीर भारती से कांता की शादी करवायी थी । 1954 में कांता कोहली कांता भारती बन गयीं थीं । यह शादी ज्यादा दिन तक नहीं चली थी । कहते हैं कि संस्कार वैमनस्य के कारण इनका संबंध विच्छेद हो गया था । लेकिन असल कहानी कुछ और थी ।
धर्मवीर भारती ने एक उपन्यास " गुनाहों का देवता " लिखा था । उपन्यास के छपते हीं लोगों ने इस किताब को हाथों हाथ लिया था । इस किताब को पढ़कर लोग अपना तकिया भिंगोने लगे थे । मैंने भी इसे पढ़ा था और तकिया भिगोया था । बुढ़ापे में जब दुबारा पढ़ा तो मुझे आश्चर्य हुआ कि इस उपन्यास को पढ़कर मैं रोया क्यों था ?
धर्मवीर भारती की पहली पत्नी कांता भारती ‘गुनाहों का देवता’ की सुधा मानी जाती हैं । चंदर के किरदार के रुप में खुद स्वंभू धर्मवीर भारती हैं । धर्मवीर भारती से अलग होने के बाद कांता भारती ने एक उपन्यास लिखा - ‘रेत की मछली’। कांता को दुःख इस बात का था कि उपन्यास " गुनाहों का देवता " मे सुधा का चरित्र चित्रण सही ढंग से नहीं किया गया है ।
" रेत की मछली " उपन्यास में तीन किरदार हैं - शोभन , कुंतल और मीलन । शोभन को धर्मवीर भारती और कुंतल को आप कांता भारती कह सकते हैं । उपन्यास के नायक शोभन को मीलन राखी बाँधती है । मतलब शोभन मीलन का राखीजात भाई था । इसी राखीजात भाई के साथ मीलन को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था एक दिन कुंतल ने । रंगे हाथों पकड़े जाने पर भी शोभन की बेशर्मी की परकाष्ठा देखिए । वह कहता है --
‘एकात्म हो जाने दो। कुंतल आओ। हम सब एकात्म हो जाएँ। मैं, मीनल और तुम। हम सब में उस सुख को बहने दो।’
कुंतल का हृदय यह देख सुनकर चीत्कार कर उठता है । कुंतल कहती है --
‘क्षोभ और हताशा से मेरा तन मन काँप रहा था। सचमुच मेरा सर टूट गया था। जहाँ सिन्दूर की रेखा होती है, ठीक वहीं से उसके दो टुकड़े हो गए थे। आह! शोभन! यह कैसे हुआ ? वह मीनल थी न तुम्हारी बहन । रिश्ते का यह कैसा अपवाद ? मरियम कहा था न तुमने मीनल को ? और आज यह नीला प्रसंग ! शोभन नहीं! नहीं’! "
इसके बाद कुंतल की अक्सर पिटाई होती रही। उसके सर बार-बार फूटते रहे और एक दिन उससे जबरन अलगाव -पत्र पर हस्ताक्षर करा लिया गया था । इसके बाद कुंतल को बदनाम करने का सिलसिला भी जारी हो गया । उस पर दुष्चरित्र होने के आरोप लगाए जाने लगे । एक दिन सौ रुपए देकर कुंतल को घर से निकाल दिया गया ।
कुंतल ने उपन्यास में कहा है --',
"यह रेत है सामने। कहते हैं रेत से घर नहीं बनता। अच्छा है कि घर नहीं बनता। कितनी सम्मोहक है ये रेत। घर नहीं बनाने देती। लेकिन हर रखा हुआ पाँव कोमलता से समेट लेती है। फिर उतनी ही कोमलता से उसे छोड़ भी देती है। इसकी तपन मन को नहीं, तन को जलाती है। मुझे और चाहिए भी क्या रिश्तों की आग में जहाँ मन जला था, वहाँ तो कुछ नहीं उगेगा अब। लेकिन इस तपती रेत में अब जो जलता है, वहाँ कुछ उग रहा है। देखो कहीं वह मैं तो नहीं। उफ़! कितना तक़लीफ़देह है रेत की मछली का समापन। "
कुंतल बेटी परमिता को लेकर जॉब के लिए दर-दर भटकने लगी । बाद में कांता भारती को जाॅब मिली थी । आकाशवाणी और दूरदर्शन में लंबे समय तक उन्होंने काम किया। दूसरी शादी भी की थी । नई सदी में कांता जी ने इस जहाँ को अलविदा कह दिया।
Er S D Ojha.