भीख मांगने पर मजबूर हुए
'किस्मत' फ़िल्म के गायक खान मस्ताना
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
माहिम की दरगाह पर एक भिखारी ने अचानक संगीतकार नौशाद को आवाज़ लगाई......
"नौशाद साहब आए हो तो
फ़क़ीर को भी कुछ देते हुए जाना।"
आवाज़ और चेहरा देखकर नौशाद साहब हक्के-बक्के रह गए क्योंकि माहिम की दरगाह के बाहर भीख मांगने वाला ये शख्स कोई मामूली इंसान नहीं बल्कि गुज़रे दौर का मशहूर फ़िल्म अदाकार, गायक और संगीतकार खान मस्ताना था। 30 और 40 के दशक में जिसकी तूती बोलती थी। आज हाथ फैलाए खड़ा था।
शोले' से पहले सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी 'किस्मत' । 1942 में आई इस फ़िल्म में 'दूर हटो ए दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है' गीत गाकर ब्रिटिश सरकार की चूल हिला देने वाला खान मस्तान ही था। ये गाना ज़ोहरा बाई और खान मस्ताना ने गाया था। जिसे इंदौर के पास बड़नगर के रहने वाले कवि प्रदीप ने लिखा था। इस गाने पर बहुत विवाद हुआ था। जेल की हवा तक खाना पड़ी थी गीतकार प्रदीप को।
मस्ताना की मधुर आवाज का ये आलम था कि सहगल साहब् और जी0एम0 दुर्रानी जैसे गायकों से इनकी बराबरी की जाती थी। 1918 में आगरा में जन्मे हाफ़िज़ खान उर्फ खान मस्ताना की सुरीली आवाज सुनकर हैदराबाद के निजाम ने इन्हें हैदराबाद बुलवा लिया।
बस यही से खान मस्ताना की उल्टी गिनती शुरू हो गई।
हैदराबाद के निजाम ने अपनी बेग़म को संगीत सिखाने के लिए खान मस्ताना के पास छौड़ दिया। संगीत की तालीम देने के बाद खान मस्ताना बम्बई लौट आए।
अचानक एक दिन हैदराबाद के निजाम और उनकी बीवी के बीच खान मस्ताना को लेकर भयंकर झगड़ा हो गया।
निज़ाम को शक था कि रानी और खान मस्ताना के बीच कुछ चक्कर है। शातिर निज़ाम ने खान मस्ताना को बहाने से हैदराबाद बुलाया और कैद कर लिया। बरसों तक खान मस्ताना हैदराबाद के निज़ाम की कैद में रहे।
वक्त बदला।
आज़ादी का सूरज निकला।
हैदराबाद की निज़ामशाही भी खत्म हो गई ।
खान मस्ताना आज़ाद होकर बम्बई लौटे। लेकिन तब तक फ़िल्म दुनिया का मंज़र बदल चुका था। सहगल और दुर्रानी का ज़माना लद चुका था।
मुकेश , मोहम्मद रफी और किशोर जैसे नए गायकों ने फिल्मी दुनिया पर कब्जा जमा लिया था। लिहाजा खान मस्ताना को पहले जैसा काम मिलना बंद हो गया।
बड़ी जद्दोजहदके बाद
'वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो' गाना उन्हें मोहम्मद रफी के साथ जरूर मिला। कुछ फिल्मों में संगीत देकर खान मस्तान अपना काम धकाने लगे । बाद में उन्हें काम मिलना बिल्कुल बंद हो गया।
इस सदमे से उबरने के लिए खान मस्ताना ने नशे को गले लगा लिया। निजाम के बाद नशे ने बर्बाद कर दिया। नतीजन घर-मोटर गाड़ी सब कुछ दाव पर लग गया।
हालात ऐसे हो गए कि नशाखोरी के लिए गुजरे जमाने के स्टार खान मस्ताना को भीख तक मांगना पड़ी। बम्बई की माहिम स्थित दरगाह और जामा मस्जिद के बाहर खान मस्ताना सुरीली आवाज में सदा लगाते और भीख मांगते।
नौशाद साहब ने तरस ख़ाकर फ़िल्म एसोसिएशन से गुजारिश करके खान मस्ताना की 300 रुपए महीना पेंशन बनवा दी।
एक दिन मोहम्मद रफी ने खान मस्ताना को फटे हाल देखा। रहमदिल रफी साहब खान मस्ताना को अपनी कार में बैठाकर घर ले आए।उन्हें नहलाया-धुलाया , खाना खिलाया और नए कपड़े देने के बाद हर महीने माली मदद भी करने लगे ताकि मस्ताना को भीख ना मांगना पड़े।
लेकिन नशे की आदत ने मस्ताना को फिर हाथ फैलाने पर मजबूर कर दिया था। फ़िल्म एसोसिएसन और मोहम्मद रफी की हर महीने मिलने वाली पेंशन के बावजूद खान मस्ताना भीख मांगते रहे।
खान मस्ताना की 1942 में आई मुकाबला फ़िल्म में एक गाने के बोल है।
मेरी झोली भर दे खाली रे
तेरी राम करे रखवाली........
ये गाना खान मस्ताना पर ही फिल्माया गया था।
किस्मत से इस गीत को संगीतबद्ध भी इन्होंने किया और गाने को आवाज भी दी।
बदकिस्मती देखिए ये गाना उन्हीं पर फिट हो गया।
माहिम की दरगाह और जामा मस्जिद के बाहर भीख मांगते हुए इस होनहार फ़नकार का इंतक़ाल सन 1972 में महज़ 54 साल की उम्र में हो गया।
कहते है कामयाबी हासिल करना मुश्किल है और उससे भी ज्यादा मुश्किल है उसे बनाए रखना।
एक कदम फिसला कि ऊंचाई से नीचे आने में देर नहीं लगती।
javedshahkhajrana