Mungeri lal urf Raghuveer Yadav

बीते कुछ सालों के दौरान फ़िल्मी दुनिया के ढेरों ऐक्टर्स ने ओटीटी का रुख़ किया है, जो दर्शकों के लिये भी किसी सरप्राइज़ से कम नहीं है। दरअसल फ़िल्मों और टीवी शोज़ में मन मुताबिक काम न मिल पाने की वज़ह से बहुत से ऐक्टर्स ने वेब सिरीज़ के ज़रिये मनोरंजन के इस नये माध्यम को अपनाया है जो उनके करियर को ऊँचाई देने में एक अहम भूमिका निभाने के साथ-साथ उनके अभिनय को नये-नये आयाम देने का भी काम कर रहा है, और उन्हीं ऐक्टर्स में से एक हैं मल्टी टैलेंटेड आर्टिस्ट रघुबीर यादव, जिन्हें आज के दर्शक वेब सिरीज़ पंचायत' के 'प्रधानजी' यानी बृजभूषण दूबे के रूप में पहचानते हैं। हालांकि रघुबीर यादव की असल पहचान है उनके द्वारा निभाया किरदार 'मुंगेरी लाल', जो 90 के दशक के बेहद मशहूर धारावाहिक 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' का मुख्य किरदार था। उस दौर के दर्शक आज भी रघुबीर यादव को उसी नाम से जानते हैं। 
25 जून 1957 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में स्थित आधारताल नामक गाँव के एक मध्यवर्गीय किसान परिवार में जन्में रघुबीर यादव कुल पाँच भाई-बहन हैं, जिनमें से वे दूसरे नंबर पर हैं। रघुबीर यादव की पढ़ाई लिखाई उनके गाँव के पास स्थित रांझी गाँव के स्कूल 'लक्ष्मीनारायण यादव विद्या भवन' में हुई थी, जो कम उम्र में एक पागल कुत्ते के काटने की वज़ह से पागल होकर मर चुके उनके मामाजी की याद में उनके नानाजी ने बनवाया था। दोस्तों हर पिता की तरह रघुबीर के पिता का भी एक ही सपना था कि बेटा पढ़ लिखकर कोई अच्छी नौकरी कर ले, लेकिन रघुबीर का पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लगता था, उन्हें तो बस गाने का जुनून था, जिसके चलते पिता से उन्हें डाँट भी पड़ जाती थी। दोस्तों रघुबीर को गाने का शौक़ कैसे हुआ इसके पीछे बड़ी दिलचस्प कहानी है। दरअसल रघुबीर जब ढाई साल के थे तब उनके घर के पास एक पापड़ बेचने वाला आया करता था जो बहुत सुरीले ढंग से 'मूँग का पापड़ लो' बोलता था। रघुबीर दिन भर उसी सुर में घर में उसकी नकल किया करते थे। थोड़े बड़े हुआ तो कभी मंदिर में भजन सुनते तो कभी गाना गाकर भीख मांगने वालो को सुनते, धीरे-धीरे वे ख़ुद भी आस पास के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेने लगे और जहाँ भी मौक़ा मिलता गा लेते। रघुबीर बताते हैं कि एक तो उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था उस पर से उन्हें साइंस दिला दी गयी थी। साइंस में उन्हें समझ तो कुछ नहीं आता था लेकिन किसी तरह रट्टा मारकर वे इंटर तक पहुँच गये थे। रघुबीर को समझ आ गया था कि इंटरमीडिएट तक पहुँच तो गये हैं लेकिन पास होना अब मुश्किल है। उन्हें लगने लगा कि फेल हुआ तो बड़ी बदनामी होगी, घर पर मार पड़ेगी वो अलग। ऐसे में उनका एक दोस्त जो कई बार घर छोड़कर भाग चुका था उसने सलाह दी कि वे भी घर छोड़कर भाग जायें इसी में भलाई है। रघुबीर ने पूछा कि भाग तो जाऊँगा लेकिन कहाँ? तब उनके दोस्त ने कहा कि मैं भी ललितपुर भागने वाला हूँ मेरे साथ ही निकल चलो। बस फिर क्या था रघुबीर ने झोला उठाया और अगले दिन अपने दोस्त के साथ भाग निकले। रघुबीर बताते हैं कि ललितपुर जाने के दौरान उन्होंने पहली बार ट्रेन से यात्रा की थी।

 ललितपुर पहुँचकर रघुबीर अपने दोस्त के साथ एक पारसी नाटक देखने गये और नाटक देखने के बाद बस स्टैंड पर रात बिताई जहाँ  उनके दोस्त ने बताया कि पास में उसके फूफाजी का घर है कल से वहीं रहेंगे। मज़े की बात कि रघुबीर का वह भगोड़ा दोस्त कुछ ही दिन में अपने फूफाजी के घर से भी भाग गया। ऐसे में रघुबीर को भी वहाँ से हटना पड़ा, जिसके बाद वे अपना झोला उठाये उसी पारसी थिएटर के मालिक के पास जा पहुँचे और उनसे विनती कर उनके थियेटर से जुड़ गये। रघुबीर ने बताया कि  उस थियेटर में दिग्गज ऐक्टर अनु कपूर के पिता की भी एक नाटक मंडली हुआ करती थी और वे ख़ुद भी एक कमाल के एक्टर थे।

थियेटर में रघुबीर को सीन चेंज होने के दौरान गाना होता था जिसके लिये उन्हें ढाई रुपये मिला करते थे। हालांकि वह बस कहने की बात थी कि ढाई रुपये रोज़ाना मिला करते थे, कई बार उन्हें एक रूपये या अठन्नी से ही काम चलाना होता था और उन्हीं से अपनी भूख मिटानी पड़ती थी। वहाँ बतौर ऐक्टर उन्हें पहली भूमिका एक सिपाही की मिली थी जिसमें उन्हें भाला लेकर बस खड़े रहना था। रघुबीर बताते हैं कि उस रोल के लिये उन्हें ढंग के कपड़े तक नहीं मिले थे। जिसकी वज़ह से उन्होंने ऐक्टिंग करने से मना भी कर दिया था, लेकिन सबके समझाने पर बाद में वे तैयार हो गये और धीरे-धीरे उन्हें अच्छे अच्छे किरदार मिलने लगे। रघुबीर बताते हैं कि "मैं कभी किसी एक्टर के सामने नर्वस नहीं हुआ हूँ, जिसकी सबसे बड़ी वज़ह पारसी थियेटर रहा है। वहाँ मेरा सामना एक से बढ़कर एक उस्तादों से हुआ है, जिनकी वज़ह से मेरी जुबान बेहतर हुई।" दरअसल रघुबीर बुंदेलखंडी बोलते थे और उनका उच्चारण सही नहीं था। लेकिन वहाँ उन्होंने काफी कुछ सीखा और ख़ुद को निखार लिया। रघुबीर अक्सर अपने इंटरव्यू में हँसते हुए बताते हैं कि जब पहली बार उन्होंने अपने थियेटर के मालिक को गाना सुनाया था तब उन्होंने कहा था कि गाते तो अच्छा हो लेकिन तलफ्फुज ठीक करना होगा। रघुबीर को लगा कि तलफ्फुज मतलब तबला या ताल जैसा कुछ होगा तो उन्होंने कहा कि "जी तबले के साथ गाऊँगा तो ठीक हो जायेगा।" रघुबीर की यह बात सुनकर उस वक़्त वहाँ मौजूद हर कोई हँसने लगा था। रघुबीर यादव इस ग्रुप में लगभग 6 सालों तक जुड़े रहे। इस दौरान वे कई शहरों में नाटकों के लिये जाते रहे और अपने थियेटर के सबसे ख़ास नाटक लैला मजनू में मजनू का मुख्य किरदार भी निभाया, जो तब एक उम्दा एक्टर को ही करने को मिला करता था।
बदलते दौर में पारसी थियेटर की हालत ख़राब होने लगी जिसके बाद रघुबीर लखनऊ चले आये और वहीं के मशहूर 'रंगोली कठपुतली थिएटर' से कुछ समय के लिए जुड़े। बाद में वे दिल्ली चले आए और कुछ दिनों तक वहां के थियेटर ग्रुप में काम किया, जहाँ उन्हें नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा यानि NSD के बारे में पता चला। इसके बाद रघुबीर ने साल 1974 में एनएसडी जॉइन कर लिया, जहाँ उन्होंने ऐक्टिंग के साथ-साथ स्टेज सजाने और सेट बनाने का काम भी सीखा। एक इंटरव्यू में रघुबीर यादव ने कहा था कि वे छोटे शहरों में घूमा करते थे, ऐसे में जब वह दिल्ली आए थे तो यहाँ के माहौल से डर गए थे। एनएसडी से 3 साल का ग्रैजुएशन पूरा करने के बाद रघुबीर NSD रिपर्टरी के ग्रुप से जुड़कर 10 साल तक थिएटर करते रहे और पूरी तरह से उसमें ही रम गये। दोस्तों मज़े की बात कि रघुबीर कभी नहीं चाहते थे कि वे फ़िल्मों में काम करें लेकिन अक्सर उनके नाटकों को देखकर उन्हें मुंबई आने के ऑफर मिलते रहते थे जिन्हें वे हमेशा टाल दिया करते थे। 

रघुबीर कहते हैं मैं सिंगर बनना चाहता था लेकिन ऐक्टिंग मेरे गले पड़ गयी थी। ख़ैर रघुबीर ने सोच लिया था कि अगर फिल्म करेंगे भी तो मेन रोल वरना छोटे-छोटे रोल करने से अच्छा तो थियेटर ही है। इसी दौरान उन्हें एक फिल्म मिली जिसका नाम था 'मैसी साहब', इस फ़िल्म में अपने किरदार के बारे में जानकर वे इस बार इनकार नहीं कर सके। साल 1985 में आई इस फिल्म में रघुबीर यादव ने मुख्य किरदार निभाया था जिसे ख़ूब प्रसिद्धी भी मिली थी। इस फ़िल्म के बाद उन्होंने दोबारा पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस फ़िल्म में उनकी शानदार ऐक्टिंग के लिये उन्हें दो अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे।पहला साल 1987 के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिये और दूसरा 1986 के वेनिस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए फिपरेसी क्रिटिक्स अवार्ड से सम्मानित किया गया था। फिल्म 'मैसी साहब' के बाद 1988 में आयी फ़िल्म सलाम बॉम्बे जिसने दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते थे। दोस्तों रघुबीर यादव को सबसे ज्यादा पहचान मिली थी साल 1989-90 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुये प्रकाश झा द्वारा निर्देशित धारावाहिक 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने' से। यह धारावाहिक इतना लोकप्रिय हुआ था कि बाद में इसका सीक्वेल भी बना जिसका नाम रखा गया 'मुंगेरी के भाई नौरंगीलाल'। हालांकि इस बार नौरंगीलाल की मुख्य भूमिका में ऐक्टर राजपाल यादव को मौक़ा मिला था। रघुबीर इससे पहले भी साल 1986 में श्याम बेनेगल के धारावाहिक यात्रा में छोटी सी भूमिका निभा चुके थे।
बात करें अन्य मशहूर धारावाहिकों की तो रघुवीर ने मुल्ला नसीरुद्दीन और चाचा चौधरी जैसे लोकप्रिय धारावाहिकों में भी मेन रोल निभाये थे जो ख़ूब मशहूर भी हुए थे। रघुबीर की फ़िल्मों की बात करें तो उन्होंने ‘धारावी’, ‘रुदाली’, ‘माया मेमसाब’, ‘बैंडिट क्वीन’, ‘1942 ए लव स्टोरी’, ‘सरदार’, ‘खामोशी द म्यूजिकल’, ‘दिल से’, ‘लगान’, ‘डरना मना है’, ‘गायब’, ‘दिल्ली 6’, ‘पीपली लाइव’, ‘पीकू’, ‘सुई धागा’ और ‘चेहरे’ जैसी 70 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम कर अपनी ऐक्टिंग का लोहा मनवाया है। दोस्तों रघुबीर हमेशा चुनिंदा किरदार ही निभाते हैं और जो किरदार उनको पसंद नहीं आते उसे करने से वे साफ इनकार कर देते हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब वे मुंबई आये थे तो साल 1992-93 के दौरान अपने गुज़ारे के लिये फ़िल्म उधार की ज़िन्दगी में एक उटपटांग सा किरदार कर लिया था जो उन्हें भी बिल्कुल पसंद नहीं था, लेकिन फ़िल्म के रिलीज़ के बाद कुछ ऐसा वाकया हुआ कि उनकी सोच हमेशा के लिये बदल गयी। दरअसल एक पार्टी के दौरान एक महिला उनसे नाराज़ होते हुए बोली कि "आपको शर्म आनी चाहिए आपने हम सबको कितनी तकलीफ़ दी है।" रघुबीर घबरा गए उन्होंने पूछा कि "मैंने ऐसा क्या कर दिया आपके साथ?" तब उस महिला ने कहा हम सब आपके काम को कितना पसंद करते हैं लेकिन इस फ़िल्म में आपके रोल को देखकर बहुत दुःख पहुँचा। आख़िर क्या ज़रूरत थी आपको ऐसा काम करने की?" रघुबीर ने बताया कि मुंबई में खर्च निकालने के लिये उन्हें जो काम मिला करना पड़ा। इस पर उस महिला ने कहा कि "भले भूखे मर जाना लेकिन ऐसे रोल कभी मत करना।" रघुबीर के दिल पर उस महिला की बात कुछ ऐसी लगी कि उसके बाद उन्होंने कभी भी कोई ऐसा किरदार नहीं किया कि जिससे कि उनके फैन्स को निराशा हो।
वेब सीरीज की बात करें तो रघुबीर यादव ने ‘पंचायत’ के अलावा ‘रे’, ‘कौन बनेगी शिखरवती’ और ‘द ग्रेट इंडियन मर्डर’ जैसी मशहूर सीरीज में भी काम किया है। वेब सिरीज़ पंचायत' में उनके द्वारा निभाये 'प्रधानजी' के किरदार को लोगों ने ख़ूब पसंद किया है। अपनी तारीफ़ को लेकर रघुबीर कहते हैं कि 'हमें इन तारीफों से बहुत खुश नहीं होना चाहिए। इतना खुश कभी नहीं होना चाहिए कि आप आनेवाले काम को बिगाड़ दें, जैसा कि अक्सर होता है। मैं ऐसा सोचता हूं कि आगे का काम हमें और जिम्मेदारी सें निभाना चाहिए।'

दोस्तों रघुबीर यादव ने अपने हर किरदार में अपनी एक अलग छाप छोड़ी है। उनका अभिनय किस दर्जे का है इसका अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि वे भारत के पहले ऐसे ऐक्टर हैं जिन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के रूप में 'सिल्वर पीकॉक' जैसे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इस पुरस्कार के अलावा रघुवीर यादव के नाम एक और  रिकॉर्ड दर्ज है। रघुबीर भारत के इकलौते ऐसे अभिनेता हैं जिनकी कुल 8 फ़िल्मों को ऑस्कर के लिए नामांकित किया जा चुका है और वो फ़िल्में हैं, साल 1985 में आई सलाम बॉम्बे, 1993 में आयी रुदाली, 1993 में आई बैंडिट क्वीन,1999 में आई अर्थ, 2001 में आई लगान, 2005 में आई वाटर, 2010 में आई पिपली लाइव और 2017 में आई न्यूटन। 

दोस्तों रघुबीर आज भी थियेटर से जुड़े हुए हैं अबतक वे 70 नाटकों के 2500 से अधिक शो कर चुके हैं। जैसा कि हमने बताया कि रघुबीर बनना तो गायक चाहते थे लेकिन बन गये ऐक्टर फिर भी वे संगीत से कभी दूर नहीं हुए। फ़िल्म पीपली लाइव में उनके गाये गीत ‘महंगाई डायन खाए जात है’ को लोगों ने बहुत पसंद किया था। पीपली लाइव के अलावा उना राम जी लंदन वाले और 'क्लब 60' जैसी फिल्मों में भी गाने गाए हैं। दोस्तों रघुबीर यादव गायन के साथ-साथ कई तरह के साज बजाने का हुनर भी रखते हैं साथ ही वे अपने हाथों से बाँसुरी भी बना लिया करते हैं। इसके अलावा रघुबीर यादव म्यूजिक कंपोजर और सेट डिजाइनर भी हैं।

लगान फ़िल्म में रघुबीर यादव ने एक बेहद ख़ास किरदार निभाया है। लेकिन जिन्होंने भी यह फ़िल्म ध्यान से देखी है उन्होंने ग़ौर किया होगा कि लगान के गीत 'मधुबन में जो कन्हैया' में सभी किरदार नज़र आये हैं लेकिन रघुबीर नदारद हैं। दरअसल इस गाने की शूटिंग से कुछ दिन पहले रघुबीर के पेट में दर्द उठा था जो फूड प्वाइजनिंग की वज़ह हुआ था लेकिन डॉक्टर बिना किसी जाँच के यह कह दिया कि यह अपेंडिक्स का दर्द है ऑपरेशन करके निकालना होगा। बस फिर क्या था आनन-फानन में पास के अस्पताल में ऑपरेशन का इंतजाम किया गया क्योंकि मुंबई जाना संभव नहीं था। मज़े की बात कि ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर ने पूरी यूनिट को सारी प्रक्रिया समझाने में इतना वक़्त लगा दिया कि रघुबीर पर बेहोशी का असर कम होने लगा और उनकी आँख खुल गयी। अब इतनी जल्दी दोबारा उन्हें बेहोश तो किया नहीं जा सकता था ऐसे में जल्दी से ऑपरेशन किया गया और टाँके लगाये गये जिसे मजबूरी में रघुबीर मुट्ठी भींच दर्द सहते हुए देखते रहे। इस ऑपरेशन के बाद लगभग 20 दिनों तक रघुबीर को बेड रेस्ट लेना पड़ा और इसी बीच गाने की शूटिंग पूरी कर ली गयी थी। हालांकि रघुबीर बताते हैं कि इस ऑपरेशन के बाद भी वे साल भर पेट दर्द से परेशान रहे और पेट की उनकी बीमारी जानलेवा रूप ले चुकी थी लेकिन ईश्वर की कृपा से वे ख़तरे से बाहर निकल आये।

रघुबीर यादव की पर्सनल लाइफ काफी विवादित रही है।  रघुबीर की शादी साल 1988 में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्यांगना पूर्णिमा खरगा से हुई थी लेकिन उनका रिश्ता ज़्यादा दिनों तक नहीं चल पाया और साल 1996 में दोनों में अलगाव हो गया। दोनों के एक बेटे हैं जिनका नाम अचल यादव है और वे अपनी मां के साथ ही रहते हैं। अचल पेशे से म्यूजिक कम्पोज़र हैं।ख़बरों के मुताबिक रघुबीर यादव ने काफी सालों से लिव इन में रहने के बाद ऐक्ट्रेस रोशनी अचरेजा से दूसरी शादी कर ली है। रोशनी ऐक्टर संजय मिश्रा की पहली पत्नी हैं और सीरियल बनेगी अपनी बात के लिये जानी जाती हैं। 

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