Poet Balkrishna Bhatt

आधुनिक हिन्दी गद्य के निर्माता बालकृष्ण भट्ट की आज जयंती है । 3 जून 1844 को जन्में बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु युग के महत्वपूर्ण लेखकों में से एक थे ।
 उन्होंने उपन्यास, नाटक और निबन्ध  विधाओं में अपनी लेखनी से अमिट छाप छोड़ी । साथ ही पत्रकारिता और गद्य कविता में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है । गद्य काव्य का तो उन्हें जनक माना जाता है क्योंकि हिंदी में उनसे पहले किसी ने गद्यात्मक कविता नहीं लिखी । 
उनकी रचनाओं में नूतन ब्रम्हचारी, सौ अजान और एक सुजान, रहस्यकथा उपन्यास, साहित्य सुमन, भट्ट निबंध माला निबंध संग्रह, दमयंती स्वयंवर, चन्द्रसेन, बाल विवाह, रेल का  विकट खेल नाटक आदि हैं । भट्ट जी ने संस्कृत और बांग्ला की उत्कृष्ट रचनाओं मृच्छकटिक, वेणीसंहार आदि का हिंदी अनुवाद भी किया । उनकी भाषा अत्यंत प्रवाहपूर्ण और व्यंग्य से सराबोर रहती थी । अक्सर उनकी तुलना पाश्चात्य साहित्यकार चार्ल्स लैंब से की जाती रही है । 20 जुलाई 1914 को उनका निधन हुआ । सहज प्रवाही गद्य उनकी विशेषता थी जो उनके इस निबन्ध के संक्षिप्त अंश में देख सकते हैं -
जहाँ आदमी को अपनी ज़िंदगी मज़ेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की ज़रूरत है, वहाँ बातचीत की भी हमको अत्यंत आवश्यकता है। जो कुछ मवाद या धुवाँ जमा रहता है वह बातचीत के जरिए भाव बन बाहर निकल पड़ता है। चित्त हलका और स्वच्छ हो, परम आनंद में मग्न हो जाता है। बातचीत का भी एक ख़ास तरह का मज़ा होता है। जिनको बातचीत करने की लत पड़ जाती है, वे इसके पीछे खाना-पीना भी छोड़ देते हैं। अपना बड़ा हर्ज कर देना उन्हें पसंद आता है पर बातचीत का मज़ा नहीं खोया चाहते। राबिंसन क्रूसो का क़िस्सा बहुधा लोगों ने पढ़ा होगा जिसे सोलह वर्ष तक मनुष्य का मुख देखने को भी नहीं मिला। कुत्ता, बिल्ली आदि जानवरो के बीच में रह सोलह वर्ष के उपरांत उसने फ्राइडे के मुख से एक बात सुनी। यद्यपि इसने अपनी जंगली बोली में कहा था पर उस समय राबिंसन को ऐसा आनंद हुआ मानो इसने नए सिरे से फिरके आदमी का चोला पाया। इससे सिद्ध होता है कि मनुष्य की वाक्-शक्ति में कहाँ तक लुभा लेने की ताकत है। 

- बालकृष्ण भट्ट

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