बॉलीवुड में कई ऐसे सितारें हैं जिनकी जिंदगी परदे पर तो बहुत अच्छी रही है, लेकिन अपने असल जीवन में उन्हें बहुत ही कम खुशियां मिलीं। ऐसे कलाकार जिन्होंने परदे पर तो बहुत अच्छी फिल्में दीं, उन्हें प्यार देने वाले बहुत प्रशंसक थे। लेकिन असल जिंदगी में अपने परिवार के प्यार से वो बिलकुल वंचित रहे।
इन्हीं कलाकारों में शामिल थे अभिनेता प्रदीप कुमार। 1952 में फिल्म 'आनंद मठ' से अपनी शुरुआत करने वाले प्रदीप कुमार ने हिंदी सिनेमा के अलावा बंगाली सिनेमा में भी खूब काम किया। इसके साथ ही उन्होंने अंग्रेजी भाषा वाली फिल्मों में भी काम किया।
17 साल की उम्र में अभिनय करने का लिया था निर्णय
प्रदीप कुमार का जन्म 19 जनवरी 1925 को कोलकाता में हुआ था। उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था। 17 साल की कम उम्र में उन्होंने यह निर्णय ले लिया था कि वो अभिनय के क्षेत्र में अपना करियर बनाएंगे। एक बांग्ला नाटक में बांग्ला फिल्मों के निर्देशक 'देवकी बोस' ने उनके अभिनय को देखा और बहुत प्रभावित हुए। देवकी बोस ने अपनी फिल्म 'अलकनंदा' में बतौर नायक उन्हें अवसर दिया। हालांकि, वह फिल्म तो हिट नहीं हुई लेकिन उनकी भूमिका को दर्शकों ने नोटिस किया। बतौर नायक प्रदीप कुमार की दूसरी बांग्ला फिल्म "भूली नाय" ने सिल्वर जुबली मनाई। प्रदीप कुमार ने फिर हिन्दी फिल्मों की तरफ रुख किया और कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा
आज के सिनेमा में अगर कोई अभिनेत्री एक अभिनेता के साथ पांच या सात फिल्मों में भी काम कर ले तो शायद वो निर्देशक और निर्माता के लिए बड़ी बात हो जाए। अभी के दौर में निर्माता एक अभिनेता और अभिनेत्री की जोड़ी को बहुत अधिक दोहराने से घबराते हैं। लेकिन अपने समय में प्रदीप कुमार ने अभिनेत्री मधुबाला के साथ आठ फिल्मों में और मीना कुमारी के साथ सात फिल्मों में काम किया। इसमें अधिकतम फिल्में सुपरहिट हुईं। मधुबाला के साथ की गई फिल्मों में राज हाथ, शिरीन-फरहाद, गेटवे ऑफ इंडिया, यहूदी की लड़की सहित कई फिल्में शामिल हैं, तो वही मीना कुमारी के साथ उन्होंने आदिल-ए-जहांगीर, चित्रलेखा, बहु-बेगम, भीगी रात और आरती जैसी कई फिल्मों में काम किया।
बीमारी की हालत में छोड़ा बच्चों ने साथ
प्रदीप कुमार को फिल्मी परदे पर जितना अधिक प्यार मिला, उनका निजी जीवन उतना ही दुख भरा रहा। उनके बच्चों ने उन्हें लकवे की हालत में अकेला छोड़ दिया। बच्चों के द्वारा छोड़े जाने के गम में प्रदीप कुमार अक्सर खामोश रहते थे। एक बातचीत में खुद प्रदीप कुमार ने अपने बीते दिनों को याद किया और अपने घर-परिवार के बारे में बताया। उन्होंने बताया था कि उनकी पत्नी गुजर चुकी हैं। उनकी तीनों बेटियों-बीना, रीना, मीना और बेटा देबी प्रसाद में से कोई भी उनकी पत्नी के निधन के बाद कभी उनसे मिलने तक नहीं आया।
प्रदीप कुण्डलिया ने दिया अपने घर में आश्रय
लकवे की हालत से जूझ रहे प्रदीप कुमार की जिंदगी में एक ऐसा समय भी आया जब बीमारी की हालत में उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। उस समय कोलकाता के एक बड़े कारोबारी ने उन्हें अपने रामायण रोड स्थित जनक बिल्डिंग के अपने एक फ्लैट में आश्रय दिया। प्रदीप कुण्डलिया ने उनकी देख-रेख के लिए सागर चौधरी नामक एक लड़के को वहां रखा हुआ था, जो दिन-रात बीमारी की हालत में प्रदीप कुमार की सेवा करता था।
अधिकतर परदे पर निभाई राजा-महाराजा की भूमिका
प्रदीप कुमार ने कई रोमांटिक और ऐतिहासिक फिल्मों में काम किया। उन्होंने परदे पर अधिकतर राजा-महाराजा और शहंशाह की भूमिका निभाई। प्रदीप कुमार को उर्दू भाषा बोलने में महारथ हासिल थी। पचास-साठ के दशक में प्रदीप कुमार के अभिनय का डंका बजता था। लंबी बीमारी के बाद उनका 27 अक्टूबर 2001 में निधन हो गया। जिन्हें लोगों ने परदे पर राजा-महाराजा और शहंशाह के रूप में हमेशा देखा उनका असल जीवन मुफलिसी में गुजरा।
प्रदीप कुमार के बुरे दौर में भले ही उनके अपने बच्चों ने उनका साथ छोड़ दिया हो, लेकिन कोलकाता में उनकी देखभाल करने वाले सागर चौधरी ने उनके निधन के बाद भी उनका साथ नहीं छोड़ा। सागर चौधरी कोलकाता के पार्क सेंटर के एक दफ्तर में नौकरी करते हैं। इसके अलावा वो दफ्तर से छूटने के बाद वह कहीं सफाई करते हैं ताकि 4 जनवरी को वो धूमधाम से हर साल अपने प्रदीप पापा का जन्मदिन मना सकें। सागर अब तक कुंवारे हैं और उनके जीवन में बस प्रदीप कुमार की यादें हैं। सागर उन्हें प्यार से प्रदीप पापा बुलाया करते थे। हर साल बड़े ही प्यार से वो उनका जन्मदिन मनाते हैं। कोलकाता में बहुत लोग उन्हें सनकी भी समझते हैं। लेकिन सागर किसी की परवाह किए बिना प्रदीप कुमार की यादों को जिंदा रखते हैं।