Suraiya ki lokpriyta

सुरैया हिंदी सिनेमा की वह शख्सियत थीं जिन्हें जब भी याद किया जाएगा, पूरे सम्मान के साथ याद किया जाएगा। सोचिए, 1940 के दशक में न तो इंटरनेट था और न ही आज तकनीक विकसित हुई थी। फिर भी उस दौर में सुरैया को लेकर लोगों की दीवानगी का आलम आज के किसी सुपरस्टार से कम नहीं था। 
सुरैया के घर के बाहर उनके प्रशंसक हमेशा मंदराते रहते थे। केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान में भी सुरैया की फैन फॉलोइंग बहुत ज़बरदस्त थी। आज हम सुरैया के एक पागल पाकिस्तानी फैन की कहानी साझा करेंगे। इस कहानी को जानने के बाद आपको अंदाज़ा होगा कि सुरैया का रुतबा क्या था, और साथ ही, आपको सुरैया के उस पाकिस्तानी प्रेमी पर हंसी भी आएगी, जो पाकिस्तान से भारत आकर सुरैया के दरवाज़े पर बारात लेकर पहुंची थी, वह भी गाजे- बाजे के साथ।

मास्टर फिरोजदीन, अविभाजित भारत के लाहौर शहर में एक प्रसिद्ध लेडीज़ टेलर थे। उनका ख्वाब था कि किसी अभिनेत्री ने उनके हाथों सिले कपड़े पहने। उनकी यह इच्छा तब पूरी हुई जब एक फिल्म पत्रकार के साथ लाहौर की मशहूर अभिनेत्री नूरजहां उनकी दुकान पर आईं। फिरोजदीन ने नूरजहां के लिए महंगे शानदार कपड़े सिले कि वह खुश हो गई और उनकी तारीफ की। धीरे-धीरे, फिरोजदीन लाहौर फिल्म इंडस्ट्री की महिलाओं के बीच मशहूर हो गए। यह वह दौर था जब सुरैया अपने करियर के शिखर पर थीं और मास्टर फिरोजदीन उनके बड़े फैन थे। वह सुरैया से मिलने की ख्वाहिश पाल रखी थी। एक दिन, सुरैया और कुंडल लाल सहगल की फिल्म परवाना लाहौर में रिलीज़ हुई और दोनों सितारे लाहौर आए। फिरोजदीन किसी तरह एक फिल्म पत्रकार त्यागी से दोस्ती कर सुरैया से मिलने की जुगाड़ में लग गए। अंततः त्यागी ने उन्हें सुरैया से मिलवा ही दिया। फिरोजदीन सुरैया के लिए एक जोड़ा भी ले गए थे। सुरैया ने वह जोड़ा पहनकर देखा और हैरान रह गईं कि बिना किसी परेशानी के इतने फिट कपड़े कैसे सिल गए। फिरोजदीन ने जवाब दिया, "मैंने आपकी फिल्म अनमोल घड़ी बीस दफा देखी है। आपको पर्दे पर देखकर ही आपका नाप ले लिया।" यह सुनकर सुरैया काफी हैरान और खुश हुईं। हालांकि, सुरैया ने उनके साथ फोटो खिंचवाने से मना कर दिया, लेकिन अपना एक फोटो दस्तख़त करके फिरोजदीन को ज़रूर दिया। सुरैया से मिलते ही फिरोजदीन ने अपनी दुकान में बाकी सभी नायिकाओं की तस्वीरें हटा दीं और सुरैया की दी हुई फोटो को बड़ा बनाकर टांग दिया। सुरैया की दीवानगी इस कदर बढ़ गई कि वह सुरैया को प्रेमपत्र लिखने लगे, जिनकी शादी के प्रस्ताव भी होते थे। कुछ लोग इस दीवानगी का फायदा उठाने लगे। कोई बंबी जाने का रास्ता बदलकर उनसे निवास कराता है, तो कोई उन्हें नकली खत उल्लू बनाता है। आखिरकार, किसी ने खुद ही सुरैया के नाम से एक खत लिखकर फिरोजदीन को भेजा, जिसमें लिखा था कि "मैं शादी करने के लिए तैयार हूं। तुम जब चाहे बारात लेकर मुंबई मेरे घर आ जाओ।" यह ख़त भाग फिरोजदीन खुशी से पागल हो गए। उन्होंने शादी की तैयारियां शुरू कर दी और जल्दी से पासपोर्ट बनवाकर मुंबई चले गए। बंबई में आते ही फिरोजदीन ने अज़ीज़ कश्मीरी नाम के कहानीकार से मुलाकात की। जब उन्होंने अज़ीज़ को अपने आने का मकसद बताया, तो अज़ीज़ ने मना कर दिया और कहा, "मुझे माफ़ करो। ऐसे फ़िज़ूल काम में मैं तुम्हारे साथ कुछ नहीं दे सकता। बेहतर होगा कि तुम अपने घर को लगाओ और घर वापस जाओ।"सुरैया की मोहब्बत ने मास्टर फिरोजदीन को क्या-क्या ना करा दिया। उनकी यह दीवानगी आज भी याद की जाती है, और इस कहानी से हमें सुरैया के उस दौर के स्टारडम का भी पता चलता है।
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