"अरे, ये तो बावरा लगता है बावरा। ये कहां फिल्मों के गीत लिख पाएगा।" ये बात गुलशन बावरा के बारे में एक फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर ने कही थी। उस वक्त गुलशन जी को सट्टा बाज़ार नाम की एक फिल्म के लिए गीत लिखने की ज़िम्मेदारी मिली थी। विकीपीडिया पर सट्टा बाज़ार गुलशन बावरा जी की बतौर गीतकार पहली फिल्म बताई जाती है। लेकिन ये गलत है। पहली फिल्म जिसके लिए गुलशन बावरा जी ने कोई गीत लिखा था वो थी 1959 में रिलीज़ हुई चंद्रसेना। संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी वाले कल्याणजी भाई विरजी ने गुलशन बावरा जी को बतौर गीतकार पहला मौका दिया था।
जबकी मीना कुमारी व बलराज साहनी स्टारर सट्टा बाज़ार भी 1959 में ही रिलीज़ हुई थी। और ये फिल्म भी गुलशन बावरा जी को कल्याणजी-आनंदजी ने ही दिलाई थी। इसी फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर ने गुलशन जी को बावरा कहा था। दरअसल, गुलशन जी के रंग-बिरंगे कपड़ों और बेतरतीब बालों को देखकर उस डिस्ट्रीब्यूटर को यकीन नहीं हुआ था कि ये आदमी कोई गीतकार भी हो सकता है। और विधि का विधान देखिए। उस आदमी का खुद को बावरा कहना गुलशन जी को बुरा नहीं, अच्छा लगा। क्योंकि तभी से उन्होंने अपना नाम गुलशन कुमार मेहता से गुलशन बावरा कर लिया।
आज गुलशन बावरा जी की पुण्यतिथि है। 07 अगस्त 2009 को 72 साल की उम्र में गुलशन बावरा जी का निधन हुआ था। जबकी गुलशन जी जन्मे थे 13 अप्रैल 1938 को लाहौर के नज़दीक स्थित शेखुपुरा में। इंटरनेट पर अधिकतर जगह गुलशन जी के जन्म की तारीख 12 अप्रैल 1937 बताई जाती है। अभी तक तो हम भी इसी तारीख को सही मानते आए थे। लेकिन आज गुलशन जी का एक बहुत पुराना रेडियो इंटरव्यू सुनने को मिला। उस इंटरव्यू में गुलशन बावरा जी ने अपनी जन्मतिथि 13 अप्रैल 1938 बताई है। हमें खेद है कि हम अपने पेज के माध्यम से गुलशन जी की जन्मतिथि 12 अप्रैल एक दफा बता चुके हैं।
गुलशन बावरा जी फिल्म इंडस्ट्री के उन लोगों में से एक थे जिन्होंने विभाजन का दर्द सबसे ज़्यादा झेला था। विभाजन के वक्त हुए सांप्रदायिक दंगों में गुलशन बावरा जी के माता-पिता की हत्या कर दी गई थी। किसी तरह वो व उनके भाई जान बचाकर अपनी बड़ी बहन के पास जयपुर आ गए। उनकी बड़ी बहन कौशल्या देवी की अपने पति सरदारी लाल के साथ जयपुर में ही उन दिनों रहा करती थी। जयपुर में रहकर गुलशन जी ने पढा़ई-लिखाई की। शुरुआत में पढ़ाई करने में उन्हें बहुत दिक्कतें आई थी। क्योंकि विभाजन से पहले वो उर्दू माध्यम से पढ़ाई कर रहे थे। इसलिए हिंदी भाषा तब उनके लिए एकदम नई थी।
जब गुलशन की के बड़े भाई बनारसीदास मेहता को दिल्ली में नौकरी मिल गई तो गुलशन उनके पास दिल्ली आ गए। मैट्रिक उन्होंने दिल्ली से ही की थी। फिर एक वक्त आया जब गुलशन बावरा जी को रेलवे में गुड्स क्लर्क की नौकरी मिल गई। 1955 में नौकरी की खातिर वो मुंबई(तब बॉम्बे) आ गए। उस ज़माने में इनकी तनख्वाह हुआ करती थी 137 रुपए 8 आने। जिस वक्त गुलशन मुंबई आए थे तब अपने जीजा से उन्होंने साठ रुपए उधार लिए थे। इसलिए पहली तनख्वाह हाथ में आते ही उन्होंने साठ रुपए अपने जीजा को मनी ऑर्डर से भिजवाए।
गुलशन बावरा जी को लिखने का शौक उस ज़माने से था जब वो अविभाजित भारत में एक स्कूली छात्र हुआ करते थे। इनकी माता जी बहुत धार्मिक थी। वो भजन मंडलियों में खूब जाती थी। और कई दफा वो गुलशन को भी अपने साथ ले जाती थी। मां की संगत का ही असर था कि गुलशन जी को भजन बहुत पसंद आते थे। ये भी अपनी मां के साथ भजन गाते थे। और किसी-किसी भजन में अपनी तरफ से भी एक-दो लाइनें जोड़ देते थे। यानि उसी वक्त से गुलशन जी के भीतर एक गीतकार तैयार होने लगा था।इसलिए जब गुलशन जी मुंबई में रेलवे की नौकरी कर रहे थे तब ही वो गीतकार के तौर पर काम करने के लिए फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से मिलने लगे थे। उनकी मेहनत रंग लाई और कल्याणजी भाई विरजी ने उन्हें गीत लिखने का पहला मौका दिया जिसका ज़िक्र शुरू में किया जा चुका है।
गुलशन बावरा जी को ख्याति मिली थी मनोज कुमार की फिल्म उपकार के कालजयी गीत 'मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती।' इस शानदार गीत के लिए गुलशन बावरा जी को 15वें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में बेस्ट लिरिसिस्ट अवॉर्ड दिया गया था। ये गीत महेंद्र कपूर जी ने गाया था। महेंद्र कपूर जी को भी इस गीत के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1973 की ज़ंजीर गुलशन बावरा जी के करियर की एक और बड़ी फिल्म थी। इस फिल्म में गुलशन जी ने सिर्फ एक गीत 'यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी' लिखा था। ये गीत सुपरहिट रहा था। इस गीत के लिए भी गुलशन बावरा जी को फिल्मफेयर बेस्ट लिरिसिस्ट अवॉर्ड मिला था। इस फिल्म के एक गीत 'दीवाने हैं दीवानों को ना घर चाहिए' में गुलशन जी ने अभिनय भी किया था।
पंचम दा के साथ गुलशन बावरा जी की बहुत अच्छी दोस्ती थी। उनके लिए गुलशन जी ने कई गीत लिखे थे। और उन्हीं के ज़रिए किशोर दा संग भी गुलशन बावरा जी की दोस्ती हो गई थी। ये तीनों अक्सर साथ बैठकर गीत-संगीत पर चर्चा करते थे। सोचिए, क्या शानदार महफिल होती होगी वो जिसमें ये तीन हस्तियां साथ होती थी।