मैं प्यार का राही हूं ......
(जब आशा भोंसले की गलती के कारण
इस सबसे अच्छे गीत को फिल्म से हटाना पड़ा )
आशा भोंसले गीतमाला ( भाग 32)
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आज इस शुभ स्थान पर बचपन में देखी गई एक यादगार फिल्म "एक मुसाफिर एक हसीना" के गीतों के बारे में चर्चा करूंगा । प्रतिभाशाली निर्देशक राज खोसला के कुशल निर्देशन , हिंदी सिनेमा की सुंदरतम जोड़ी जॉय मुखर्जी और साधना , ओ पी नैय्यर के संगीत राजा मेंहदी अली खां और एस एच बिहारी के गीतों से सजी 1962 में आई "एक मुसाफिर एक हसीना" सिनेमा हालों की टिकट खिड़कियों में धूम मचा दी थी । यह उस साल की सफलतम फिल्मों में गिनी गई । फिल्म के सभी गीत एक से बढ़कर एक थे और ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स की भी रिकॉर्ड तोड बिक्री हुई । इसकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश के मेरे छोटे से गृह नगर छतरपुर के इकलौते सिनेमाघर गोवर्धन टाकीज में यह फिल्म 8 हफ्ते चली थी और जिसके पहले दो हफ्ते यह फिल्म हाउसफुल गए थे । खासकर मुझे इस फिल्म के शुरुवाती तीन गाने बेहद पसंद आए थे और आज भी हैं , ये गीत हैं :
1. बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी ... (रफ़ी और आशा)
2. आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे ...(रफ़ी और आशा)
3. मैं प्यार का राही हूं .... (रफ़ी और आशा )
इन तीन में भी जो गीत सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ और इस दौर में रेडियो पर खूब बजा वो था रफी साहेब और आशा जी का गाया डुएट सॉन्ग "मैं प्यार का राही हूं....." लेकिन यही गीत फिल्म में नहीं था । क्यों नहीं था , ये बात बचपन में तो मुझे मालूम नहीं चल सकी थी लेकिन बाद में इसके हीरो जॉय मुखर्जी से मुझे मालूम हुई थी जिसका जिक्र मैं यहां करने जा रहा हूं और जो वाकई इस फिल्म की कहानी से कोई कम रोचक नहीं ।
इस गीत के जारी 78 आरपीएम के रिकॉर्ड संख्या
N 54066 (जिसके दूसरी तरफ... "बहुत शुक्रिया बड़ी मेहरबानी ... " गीत है) को अगर ध्यान से सुनेंगे तो इस गीत में रिकॉर्डिंग के दौरान आशा भोंसले जी से हुई गंभीर चूक को जान सकेंगे और यह चूक निश्चय ही आपको माथा पकड़ कर बैठ जाने के लिए विवश कर देगी । मैनें इस गीत के दोनों अंतरों में हुई गलती को स्पष्ट करने के लिए नीचे गीत के वही बोल लिखे हैं जो रिकॉर्ड में गाए गए हैं और इतने सालों से हम सुनते आ रहे हैं । अब जानिए चूक कहां हुई !!!!!
पहले अंतरे में रफी और आशा जब गाते हैं ....
रफ़ी: तेरे बिन जी लगे न अकेले
आशा: हो सके तो मुझे साथ ले ले
रफ़ी: नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी
छोड़कर ज़िन्दगी के झमेले
नाज़नीं ....
इसके बाद आशा को गाना था :
आशा: न मैं हूँ नाज़नीं
न मैं हूँ महजबीं
आप ही की नज़र है दीवानी
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ....
लेकिन आशा जी ने घबराहट में (जिसका कारण भी आगे लिखूंगा ) गलती से यहां गा दी
दूसरे अंतरे की ये लाइनें
आशा: जब भी छाए घटा
याद रखना ज़रा
सात रंगों की मैं हूं कहानी
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ.....
फिर दूसरे अंतरे में जब रफी और आशा गाते हैं
रफ़ी: प्यार की बिजलियाँ मुस्कुराएं
आशा: देखिये आप पर गिर न जाएं
रफ़ी: दिल कहे देखता ही रहूँ मैं
सामने बैठकर ये अदाएं
दिल कहे....
इसके बाद आशा को गाना था
आशा: जब भी छाए घटा
याद रखना ज़रा
सात रंगों की मैं हूं कहानी
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ.....
लेकिन यहां आशा जी ने गलती से गा दी पहले अंतरे की ये लाइनें:
आशा: न मैं हूँ नाज़नीं
न मैं हूँ महजबीं
आप ही की नज़र है दीवानी
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ....
इतनी बड़ी गलती हो गई लेकिन इस पर न ध्यान आशा भोंसले का गया , न रफी साहेब और न रफी साहेब का । दुर्भाग्य से इस गीत के गीतकार राजा मेंहदी अली खान भी उस दिन स्टूडियो में मौजूद ही नहीं थे अन्यथा यह अनर्थ होने से बच जाता ।
अब आशा की इस घबराहट का कारण भी बताता हूं । इस गीत में आशा को एक शब्द "घबराऊं" ने काफी परेशान कर रखा था उनके मुंह से बार बार " घबराऊ " ही निकल रहा था । ये "घबराऊं" ठीक करने के चक्कर उनका दिमागी संतुलन बिगड़ा और अंतरे की लाइनें उलट पलट कर गा दी, जिसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया । इस दिमागी असंतुलन का कारण इस गीत की रिकॉर्डिंग शुरू होने के पहले की एक और घटना भी थी जिसने उस दिन ओ पी नैय्यर समेत सभी का मूड खराब कर दिया था । इस गीत में जिन्हें तबला और ढोलक बजाना था वो समय पर नहीं पहुंच सके और ओ पी नैय्यर समय के बड़े पाबंद थे । उन्होंने उनका इंतजार किए बिना स्टूडियो रूम के दरवाजे अंदर से बंद कर दिए और उपलब्ध साजिंदों से ही गीत रिकॉर्ड करने का निर्णय ले लिया साथ ही इसके बाद किसी को भी अंदर न आने दिया जाए , ये हिदायत दे दी । फलस्वरूप देर से आए तबला और ढोलक वादकों को बाहर ही बैठना पड़ा । इस तरह ये गीत हिंदी सिनेमा के उन बिरले गीतों में शामिल हो गया जिसमें प्रमुख भारतीय वाद्य यंत्रों ढोलक और तबले का लेशमात्र भी उपयोग नहीं हुआ ।
लेकिन इस घटना ने सबका मूड खराब कर दिया था जिससे गीत की रिकॉर्डिंग में हुई इतनी गंभीर गलती की तरफ ध्यान किसी का भी नहीं गया । इतना ही नहीं समय की कमी के कारण संगीतकार ओ पी नैय्यर ने उसे दोबारा सुने बगैर फिल्म के निर्माता एस मुखर्जी के माध्यम से वही रिकॉर्डिंग एचएमवी को रिकॉर्ड बनाने के लिए भेज दी ।कुछ दिनों बाद रिकॉर्ड जब बनकर आया तो उसे सुनकर गीतकार राजा मेंहदी अली खां ने माथा पीट लिया और इसकी जानकारी फौरन बल्कि आनन फानन में ऐसे वक्त पर दी जब ओ पी नैय्यर और फिल्म के निर्माता एस मुखर्जी , निर्देशक राज खोसला और जॉय मुखर्जी फिल्म को रिलीज करने की तैयारी से जुड़ी गुफ्तगू में व्यस्त थे । दरअसल तब तक फिल्म रिलीज होने की तारीख भी मुकर्रर हो चुकी थी जिसे आगे बढ़ाना मुमकिन नहीं था । अब ऐसी हालत में इस गीत को फिल्म से हटाने का निर्णय लेने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा था और उसे हटा भी दिया गया। उल्लेखनीय है कि उन दिनों आज की तरह एडिटिंग की तकनीक उतनी विकसित नहीं थी कि एडिटिंग करके इस गलती को ठीक किया जा सके । इसलिए जो लोकप्रिय गाना इतने सालों से हम सुनते आ रहे है रेडियो पर वो वास्तव में गलत है लेकिन गीत की धुन के माधुर्य की वजह से किसी का ध्यान उस तरफ नहीं गया । करोड़ों रेडियो श्रोताओं का भी नहीं । इसलिए सोचा कि इस रोचक जानकारी को अपने संगीत प्रेमी मित्रों के साथ सांझा की जाए ।
ये गीत कैसा होना चाहिए था उसकी ऑडियो रिकॉर्डिंग भी मैं यहां अपने मित्रों को इसके अगली पोस्ट में शेयर कर रहा हूं । इसके अलावा अपने पसंदीदा शेष दो गीत भी शेयर करूंगा । आज बस इतना ही । सादर
रफ़ी:मैं प्यार का राही हूँ
तेरी ज़ुल्फ़ के साए में
कुछ देर ठहर जाऊँ
आशा: तुम एक मुसाफ़िर हो
कब छोड़के चल दोगे
ये सोच के घबराऊँ
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ
रफ़ी: तेरे बिन जी लगे न अकेले
आशा: हो सके तो मुझे साथ ले ले
रफ़ी: नाज़नीं तू नहीं जा सकेगी
छोड़कर ज़िन्दगी के झमेले
नाज़नीं ....
आशा: जब भी छाए घटा
याद रखना ज़रा
सात रंगों की मैं हूं कहानी
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ.....
रफ़ी: प्यार की बिजलियाँ मुस्कुराएं
आशा: देखिये आप पर गिर न जाएं
रफ़ी: दिल कहे देखता ही रहूँ मैं
सामने बैठकर ये अदाएं
दिल कहे....
आशा: न मैं हूँ नाज़नीं
न मैं हूँ महजबीं
आप ही की नज़र है दीवानी
रफ़ी: मैं प्यार का राही हूँ....
फिल्म : एक मुसाफिर एक हसीना (1962)
संगीत : ओ पी नैय्यर
गीत : राजा मेंहदी अली खां
स्वर : रफी और आशा
------ कृष्ण कुमार शर्मा: 20 सितंबर 2024 -------