"मेरा गीत अमर कर दो.."
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गीतकार इंदीवर सिने-जगत के उन नामचीन गीतकारों में से एक हैं जिनके लिखे सदाबहार गीत आज भी बड़ी शिद्दत व एहसास के साथ सुने व गाए जाते है.कौन भूल सकता है संगीत सागर के इन अनमोल मोतियों को ?'.."बड़े अरमान से रखा है बलम तेरी कसम..' '..होंठों से छू लो तुम,मेरा गीत अमर कर दो..", "..चंदन सा बदन चंचल चितवन..", "..फूल तुम्हें भेजा है ख़त में..", "..प्रभु जी मेरे अवगुन चित ना धरो..', '..कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे..', '..है प्रीत जहाँ की रीत सदा..', '..जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे..', 'दुश्मन न करे दोस्त ने जो काम किया है', '..छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए..' जैसे सुपरहिट सदाबहार गीत देने वाले स्वतंत्रता -सेनानी कवि इंदीवर की आज 26वीं बरसी पर आइये उनके जीवन की कुछ बातों का ज़िक्र कर उन्हें याद करें..उनका नमन करें.
चार दशकों में लगभग 300 से अधिक फिल्मों में क़रीब 1000 सुपर डुपर गीत लिखने वाले इंदीवर उत्तर प्रदेश के झाँसी जनपद मुख्यालय से बीस किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित बरूवा सागर कस्बे में जन्म कलार जाति के एक निर्धन परिवार में 15 अगस्त, 1924 में जन्मे थे. इनका मूल नाम श्यामलाल बाबू राय है. गीत लिखने व गाने का शौक श्यामलाल को बचपन से ही था.जल्द ही उन्हें स्थानीय 'कवि सम्मेलनों' में शिरकत करने का मौक़ा मिलने लगा.स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में सक्रिय भाग लेते हुए उन्होंने ‘आजाद' नाम से भी कई देश-भक्ति के गीत लिखे.
श्यामलाल के सिर से पिता श्री हरलाल राय माँ का साया बाल्यकाल में ही उठ गया था. बहनोई और बहन ने सहारा देना चाहा पर स्वाभिमान आड़े आ गया. उन्हीं दिनों बरूवा सागर में एक 'फक्कड़ बाबा' कहीं से आकर एक विशाल पेड़ के नीचे अपना डेरा जमाकर रहने लगे.वे कहीं भिक्षा माँगने नहीं जाते थे.धूनी के पास बैठे रहते थे.चंग पर गाते और आलाप लेते रहते. राह चलते लोग उनकी स्वर लहरी के प्रभाव में उनपर सिक्कों के बरसात कर देते पर वह उन्हें छूते तक नहीं थे.श्यामलाल फक्कड़ बाबा के सम्पर्क में आये. गाहे बगाहे श्यामलाल उन बाबा के लिए 'गकड़ियां' (कण्डे की आग में सेंकी जाने वाली मोटी रोटी) बना दिया करते..स्वयं भी खाते और बाबा को भी खिलाते.फिर बाबाजी चिमटा लेकर जैसे ही गाने लगते श्यामलाल भी उनके साथ स्वर से स्वर मिलाकर स्वलिखित गीत एवं भजन गाने लगते.यहीं उनकी कलम ने धार पाई. उनको मट्ठा पीने और बाँसुरी बजाने का बहुत शौक था.वे बेतवा नदी के किनारे, बरूवा तालाब के किनारे घण्टों बाँसुरी बजाते हुए मदमस्त रहते थे.इसी बीच 'कालपी' के एक विद्यार्थी सम्मेलन में श्यामलाल ‘आजाद' कविता पाठ किया तो श्रोताओं द्वारा उन्हें काफी सराहा गया और बतौर कवि उन्हें इक्यावन रूपया की राशि भेंट की. इन इक्कयावन रूपयों से सबसे पहले उन्होंने नई हिन्द साइकिल खरीदी जो उन दिनों छत्तीस रूपये में आती थी.सम्मेलनों में जाने योग्य अचकन और पाजामा सिलवाये. शीध्र ही श्यामलाल ‘आजाद' की शोहरत स्थानीय कवि सम्मेलनों में बढ़ने लगी और उन्हें झाँसी, दतिया, ललितपुर, बबीना, मऊरानीपुर, टीकमगढ़, ओरछा, चिरगाँव, उरई में होने वाले कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा जिससे इन्हें कुछ आमदनी होने लगी.
इसी बीच इनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उनका विवाह झाँसी की रहने वाली पार्वती नाम की लड़की से करा दिया गया. उसके बाद से वह अनमने रहने लगे.और एक दिन अचानक बीस वर्षीय श्यामलाल बम्बई (मुम्बई) चले गए. दो वर्ष तक सिने-जगत कठिन संघर्ष किया. 1946 में प्रदर्शित फिल्म ‘डबल फेस' में उनके लिखे गीत पहली बार लिए गए. किन्तु फ़िल्म सफल नहीं हो सकी और श्यामलाल बाबू ‘आजाद' से ‘इंदीवर' के रूप में बतौर गीतकार अपनी खास पहचान नहीं बना पाए. निराश हो वापस अपने पैतृक गाँव बरूवा सागर वापस चले गए.
वापस आने पर इन्होंने कुछ माह अपनी धर्मपत्नी के साथ गुजारे. इस दौरान इन्हें अपनी पत्नी पार्वती से विशेष लगाव हो गया जो अंत तक रहा.पार्वती के कहने से ही ये पुनः मुम्बई आने जाने लगे और 'बी' व 'सी' ग्रेड की फ़िल्मों में भी अपने गीत देने लगे. यह सिलसिला लगभग पाँच वर्ष तक चला. इनकी मेहनत की हिना रंग लाई और वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘मल्हार' के गीत ‘बडे़ अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम' ने सिने जगत में धूम मचा दी और इंदीवर बतौर गीतकार स्वयं की पहचान बनाने में सफल हुए.
1963 में बाबू भाई मिस्त्री की संगीतमय फिल्म ‘पारसमणि' की सफलता के बाद इंदीवर शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुँचे. इंदीवर के सिने-कैरियर में उनकी जोड़ी निर्माता निर्देशक मनोज कुमार के साथ ख़ूब जमी. मनोज कुमार ने सबसे पहले इंदीवर से फिल्म ‘उपकार' के लिए गीत लिखने की पेशकश की. कल्याण जी आनंद जी के संगीत निर्देशन में फिल्म उपकार के लिए इंदीवर ने ‘कस्में वादे प्यार वफा...' जैसे दिल को छू लेने वाले गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया. इसके अलावा फिल्म ‘पूरब और पश्चिम' के लिये भी इंदीवर ने ‘दुल्हन चली वो पहन चली' और ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे' जैसे सदाबहार गीत लिखकर अपने अंदाज़-ए बयां पर एक अलग ही गीतकार की मोहर लगा दी.
वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म जॉनी मेरा नाम में ‘नफ़रत करने वालों के सीने में.....' ‘पल भर के लिये कोई मुझे...' जैसे रूमानी गीत लिखकर इंदीवर ने श्रोताओं का दिल जीत लिया.मनमोहन देसाई के निर्देशन में फिल्म ‘सच्चा झूठा' के लिये इंदीवर का लिखा एक गीत ‘मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां..' को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है. इसके अलावा राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म ‘सफर' के लिए इंदीवर ने ‘जीवन से भरी तेरी आँखें...' और ‘जो तुमको हो पसंद....' जैसे गीत लिखकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया.
जाने माने निर्माता निर्देशक राकेश रोशन की फिल्मों के लिये इंदीवर ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. उनके सदाबहार गीतों के कारण ही राकेश रोशन की ज़्यादतर फिल्में आज भी याद की जाती है. इन फिल्मों में ख़ासकर कामचोर, ख़ुदग़र्ज़, ख़ूनभरी मांग, काला बाज़ार, किशन कन्हैया, किंग अंकल, करण अर्जुन और कोयला जैसी फिल्में शामिल हैं. राकेश रोशन के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता निर्देशकों में फ़िरोज़ ख़ान प्रमुख रहे हैं.
इंदीवर के पसंदीदा संगीतकार के तौर पर कल्याणजी आनंदजी का नाम सबसे ऊपर आता है.कल्याण जी आनंदजी के संगीत निर्देशन में इंदीवर के गीतों को नई पहचान मिली. सबसे पहले इस जोड़ी का गीत-संगीत वर्ष 1965 में प्रदर्शित फिल्म ‘हिमालय की गोद' में पसंद किया गया. इसके बाद इंदीवर द्वारा रचित फ़िल्मी-गीतों में अक़्सर कल्याण जी आनंदजी का ही संगीत हुआ करता था.ऐसी फिल्मों में 'उपकार', 'दिल ने पुकारा','सरस्वती चंद्र', 'यादगार', 'सफर', 'सच्चा झूठा', 'पूरब और पश्चिम', जॉनी मेरा नाम, पारस, उपासना, कसौटी, 'धर्मात्मा , 'हेराफेरी', 'डॉन', 'कुर्बानी', 'कलाकार' आदि फिल्में शामिल हैं.कल्याणजी आनंदजी के अलावा इंदीवर के पसंदीदा संगीतकारों में बप्पी लाहिरी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जैसे संगीतकार शामिल हैं.
इंदीवर के सिने कैरियर पर यदि नज़र डाले तो अभिनेता जितेन्द्र पर फ़िल्माए उनके रचित गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ करते थे.इन फिल्मों में 'दीदारे यार', 'मवाली', हिम्मतवाला, जस्टिस चौधरी, 'तोहफा', 'कैदी', 'पाताल भैरवी', 'ख़ुदग़र्ज़', 'आसमान से ऊँचा', 'थानेदार' जैसी फिल्में शामिल हैं. वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म 'अमानुष' के लिए इंदीवर को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का 'फिल्म फेयर पुरस्कार दिया मिला था.
इन्दीवर से उनका पैतृक गाँव बरूवासागर क्रमशः छूटने लगा और उनके लिखे गीत नित नई-नई ऊँचाइयाँ पाने लगे.नाम,शोहरत, शराब और पैसे ने इन्हें क्रमशः भटकाया भी.पंजाबी मूल की एक स्त्री इनके जीवन में आई जिससे बाद में अनबन हुई और पुत्र के उत्तराधिकार के लिए मुक़द्दमेबबाज़ी भी हुई. फिर दूसरी महिला जो गुजराती मूल की थी एवं मलयालम फिल्मों की हीरोइन भी रही और जिसके पहले से एक बेटी भी थी, इंदीवर के जीवन में आई- जिसने इनको प्यार किया व समर्पित भी रहीं. फिर भी इंदीवर अपनी पहली धर्मपत्नी पार्वती को नहीं भूल पाए. पार्वती बहुत स्वाभिमानी स्त्री थी, उसने इंदीवर के लाख चाहने पर भी कभी भी उनसे एक पैसा अपने भरण-पोषण के लिए नहीं लिया और इनकी प्रतीक्षा में बरूवा सागर में एक छोटी-सी दुकान आजीवन चलाकर अपना गुज़र-बसर किया. बताते है कि इंदीवर ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की हैसियत से मिलने वाली पेंशन पार्वती के नाम कर दी थी.पार्वती का निधन 2005 में हो चुका है.वह निःसंतान थी. इंदीवर 26 फरवरी, 1997 को अपने पैतृक नगर बरूवा सागर में होने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में सम्मिलित होने मुम्बई से आ रहे थे तभी रास्ते में उन्हें हार्ट-अटैक आया और वह वापस मुम्बई लौट गये.पर दो दिन बाद ही 27 फरवरी 1997 को सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गए.
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