●गीतकार गोपाल सिंह नेपाली
"दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अखियाँ प्यासी रे..."
हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि और हिंदी फिल्मों के प्रसिद्ध गीतकार गोपाल सिंह नेपाली जी को श्रद्धांजलि
गोपाल सिंह नेपाली जी का जन्म 11 अगस्त 1911 को बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के बेतिया में हुआ था।
1944 में वे शशधर मुखर्जी के कुख्यात फिल्मिस्तान स्टूडियो में शामिल हो गए। उन्होंने फिल्मिस्तान की 'मजदूर' के लिए गीत लिखे और गीत तुरंत लोकप्रिय हो गए। 1945 में उन्हें इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार का पुरस्कार मिला। उन्होंने 'सफर', 'गजरे', 'बेगम शिकारी', 'जय भवानी', 'तुलसीदास', 'नाग पंचमी', 'नरसी भगत', 'समाधि' और 'नई राहें' जैसी कई अन्य फिल्मों के लिए गीत लिखे।
गोपाल सिंह नेपाली द्वारा लिखा गया यह गीत ‘कभी याद करके गली पार करके चली आना हमारे अंगना’ 1946 में रिलीज हुई फिल्म ‘सफर’ में चितलकर और बीनापानी मुखर्जी द्वारा गाया गया युगल गीत था।
देश के प्रति उनका प्यार उनकी देशभक्ति रचनाओं से स्पष्ट था। उनकी कविता ‘दिल्ली चलो’ को धीरे-धीरे फिल्मिस्तान के बैनर तले बनी फिल्म ‘समाधि’ में बदल दिया गया। उनके द्वारा लिखा गया एक और गीत जिसने बहुत ध्यान आकर्षित किया, वह था ‘नई राहें’ का ‘मुसाफिर बता दे कहां तुझको जाना’।
1948 में रिलीज हुई ‘गजरे’ का ‘बरस बरस गई बाली बिखर गई अब कब आओगे बलमा’ और ‘दूर पपीहा बोला रात आही रह गई’ प्रख्यात कवि द्वारा लिखे गए दो उल्लेखनीय ट्रैक हैं। अनिल बिस्वास द्वारा रचित और सुरैया द्वारा गाए गए ‘गजरे’ में गोपाल सिंह नेपाली द्वारा रचित कुछ कालजयी धुनें थीं।
उनकी बहुमुखी प्रतिभा उनकी भक्ति कविताओं से भी स्पष्ट थी। फिल्म ‘नरसी भगत’ (1957) का गीत “दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अखियाँ प्यासी रे” उनकी भक्ति रचना का एक बेहतरीन उदाहरण है। सुधा मल्होत्रा, हेमंत कुमार और मन्ना डे ने रवि के संगीत निर्देशन में फिल्म ‘नरसी भगत’ के लिए मिलकर यह गीत गाया था।
उन्होंने 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान कई देशभक्ति कविताएँ लिखीं। ‘तुम कल्पना करो नवीन कल्पना करो’ या ‘युग युग ज्योति जगाई रे’ मातृभूमि को समर्पित उनकी कुछ कविताएँ हैं।
हिंदी फिल्म उद्योग से उनका जुड़ाव लगभग दो दशकों तक रहा, जो 1944 में शुरू हुआ और 1963 में उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हुआ।
गोपाल सिंह ने सात किताबें लिखीं और 54 हिंदी फिल्मों के लिए 400 से अधिक गीत लिखे।
गोपाल सिंह की मृत्यु 17 अप्रैल 1963 को बिहार के भागलपुर स्टेशन पर हुई, जब वे 1962 में भारत पर हुए चीनी आक्रमण के विरुद्ध देश के विभिन्न भागों का दौरा कर रहे थे।