स्मृतिशेष : रवींद्र श्रीवास्तव “ जुगानी भाई “
जन्मतिथि – 12 मई, 1942
पुण्यतिथि – 14 फरवरी, 2025
आखर परिवार भोजपुरी माटी के अनूठा रचनाकार ‘जुगानी भाई’ के सादर नमन करत बा.
देवेंद्र नाथ तिवारी जी के लिखल इ ‘ स्मृतिशेष “
आज दुपहरिया के बात ह। नबीन भइया के व्हाट्सएप मैसेज मिलल ह कि तनी पता करीं कि जुगानी भाई के बारे जवन सूचना मिलत बा उ सांच बा नू? हम गोरखपुर फोन कइनी ह। फिर कंफर्म भइल ह कि इ सूचना सांच बा। ‘जुगानी भाई’ के ना रहल बहुत खालीपन छोड़ गइल बा। स्मृति के वितान पर उहां के साथे अनेक भेंट के छवि बाइस्कोप जस चले लागल ह। पर, ‘जुगानी भाई’ के रहे? आज के ‘जेन-जी’ उहां के शख्सियत से अंजान होई। बाकि जे रेडियो सुनले होई उ जानत होई ‘जुगानी भाई’ के होखे के मतलब। रेडियो के माध्यम से भोजपुरी में तीन दूगो भाई एगो चाचा से भोजपुरिया जहान के परिचय भइल। पहिला रहलें ‘हरी भाई’, दोसर— ‘चतुरी चाचा’ आ तीसरा ‘जुगानी भाई।’ रवींद्र श्रीवास्तव उर्फ जुगानी भाई भोजपुरी भाषियन के बीचे 70 के दशक से लोकप्रिय रहनी । उहां के करीब 13 गो किताब आ चुकल बा। एक ठे काव्य संग्रह के अंग्रेजी अनुवाद भी हो रहल बा। 'जुगानी भाई' खाली भोजपुरी भाषा-साहित्य के ही समृद्ध नाहि कइनी बाकिर बल्कि विभिन्न काव्यमंचन प भोजपुरी के लोकप्रिय बनावे में भी उहां के खास मकाम रहल बा। जुगानी भाई के जन्म 12 मई, 1942 के गोरखपुर जनपद के ग्राम-भवाजीतपुर में भइल रहे। माई के नाम रहे सरस्वती देवी। बाबूजी सर्वदेव लाल श्रीवास्तव।
‘जुगानी भाई’ इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एमए कइले। ओहिजा फिराक साहब, भोलानाथ गहमरी आ मो। खलील के साथ मिलल। फिराक साहब के पारिवारिक परंपरा में जुगानी भाई रहनी। पड़ोसी।
कुछ साल पहिले आखर खातिर एगो इंटरव्यू हम करे गइल रहनी तो निजी बतकही में उहां के बतवनी। देवरिया से एक ठो पत्रिका निकलता रहे दिग्दर्शक। दिग्दर्शक के संपादक शास्त्री जी कहलें कि एगो कविता लिखऽ। हम भोजपुरी में कविता लिखनी बरगदवा से बोले उरवा चिरई... इ कविता संयोग से विद्यानिवास मिश्र जी के सोझा पड़ गइल। ऊंहा के संपादक के नामे एगो चिट्ठी लिखनी। शास्त्री जी ऊ चिट्ठी हमरा के दे दिहलें आ कहलें कि अब लिखल मत बंद करिहऽ। इ कविता बड़ा लोकप्रिय भइल आ अब पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के पाठ्यक्रम में शामिल बिया।
इ जान लिहल जावऽ कि जवने लइका के महतारी ना रहेली आ लड़िका के स्मगलिंग ऑफ लव मने तश्तरी प्रेम ना मिलेला तऽ उ लड़िका शुरुए से बागी हो जाला। तश्तरी प्रेम से हमार आशय दुलार के ओवर डोज से बा
फिराक़ साहब भोजपुरी में तऽ ना लिखलें बाकिर भोजपुरी पर जरूर लिखलें। अक्सर ऊ अपना कवनो प्रवचन में भोजपुरी में बोलस। उनकर एगो गजल बा, जवन ऊ भोजपुरी बिरहा से प्रभावित हो के लिखलें। जल में चमके चल्हवा मछरिया... इ ऊ स्वीकृति कइले बाड़ें।
फिराक़ गोरखपुरी के पिताजी गोरख प्रसाद 'तीव्रत गोरखपुरी' खुदे बहुत बड़ शायर रहलन। ऊ आ प्रेमचंद्र दूनों जाना बहुत करीबी दोस्त मित्र रहल लोग। फिराक साहब के इ स्थिति रहे कि ऊ जान जाए कि लइका एनिए के बा तऽ ओकरा से भोजपुरी में ही बात करस। भले ऊ अंग्रेजी के प्रोफेसर रहस। एह लोग से मुलाकात के बाद बुझाइल। एह लोग के लगे कवन ललक बा जवन आपन पहचान छुवावे ना ओकरा के बढ़ावे में लागल बा।
गहमरी जी एगो किताब लिखलें 'अँजुरी भर मोती।' ओकर भूमिका केकरा से लिखावल जाए ऊ बड़ा परेशान रहलें। हम कहनी कि फिराक़ साहब से लिखवाल जाए। ऊ कहलें कि ऊ लिखिंहें! हमरे कहले पर ऊ फिराक साहब के लगे गइलें। फिराक़ साहब किताब के पांडुलिपि रख लिहलें आ कहलें कि दू दिन बाद अइहऽ आ ले जइहऽ। फिराक़ साहब भूमिका भोजपुरी में लिखलें आ गहमरी जी उनकर हैंडराइटिंग में ओह के अपना किताब में छपवलें।
इलाहाबाद में भोजपुरी के टीम बनल। एह टीम में भोलानाथ गहमरी, मोहम्मद खलील, वर्मा जी (अबहिन नाम इयाद नइखे आवत) रहलें। मो. खलील गहमरी जी के गीत गावें आ बाद में ओहिजा से खलील के झंकार पार्टी तइयार भइल। आ ऊ आगे बढ़ गइलें।
सवाल इ होला दू बात होले। रचनाकार हमेशा कुछ नया करेला।
नयापन बहुत जरूरी होला। हिंदी में भीड़ बा। जहां हम पैदा भइल हईं आ देखत हईं कि एहिजा कुल पिछड़ल स्थिति बा। भाषा आ भोजन के सवाल एक दूसरा से जुड़ल बा। भोजन मने खाली अनाज नाहीं, एकरा व्यापकता के समझीं। जवने इलाका के भाषा कमजोर होई ओहिजा के भोजन अपने आप गरीब हो जाला। हमार इलाका एह नाते गरीब बा कि इहां के भाषा गरीब बना दिहल गइल बिया। एक हजार समस्या हमरे आप के लगे होखे लेकिन ओह समस्या के व्यक्त करे के भाषा ना होखे तऽ तब सजो समस्या पर भारी इहे न पड़ गइल।
बहुत हो गइल वेदर रिपोर्टिंग, कजरवा... बजरवा... वेदर रिपोर्टिंग से किनारे हट के एगो नई धारा चलावे के शुरुआत भइल। ऊ काहें खातिर उहे बिरहा सुने जाई, जवन लोग पहिलहीं से गावत बा। देखीं, नयापन जब ले ना रही तब ले नई पीढ़ी रउआ से ना जुड़ी। भोजपुरी में नई कविता आइल। मोती (मोती बीए) जी से हमार परिचय एह से भइल कि ऊ भोजपुरी में सॉनेट लिखस, हाइकु लिखस। एह तरे नया जमीन पर भोजपुरी के स्थापित करे के कोशिश भइल।
हमन के इहां कलम चलावे मने शुरुए से कलमजीवी परिवार रहल बा। जनम भइल। संयोग से माता जी ना रहलीं। एह से हम अपने से गिरी आ उठीं। स्वावलंबन के भाव एही से आइल। हमार दादी हमके पोसलीं। कक्षा एक से पांच तक के पढ़ाई एही दुआरे के सोझा रावत पाठशाला से भइल। रावत पाठशाला में प्रेमचंद आ फिराक़ गोरखपुरी जइसन लोग पढ़ले बा। फेर पिताजी के साथे आगे के पढ़ाई खातिर देवरिया चल गइलीं, आ उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भइल। दर्जा सात में रहीं तऽ समस्या पूर्ति दियाइल रहे। ओहिजा से लेखन के शुरुआत भइल। हमके दर्जा सात में ही बाबूजी डिस्कवरी ऑफ इंडिया थमा दिहलें। ऊ रोज साँझ के ओकर पाठ हमसे सुनस। एह तरे किताब से इतर के जानकारी आसपास के परिवेश से मिलल।
हम छुट्टी में गांवे भाग जाईं। ओहिजा हमार हरवाह रहलें उनके साथे नाच देखे चल जाईं। इ जवन नाच-नौटंकी के छोट-छोट कलाकार होलें। उनसे बहुत कुछ सीखे के मिलल। एह कलाकार लोग के कला में कवनो तरे के मिलावट ना होखेला। ओकरे बारे में अब सोचल जाला तऽ आश्चर्य होखेला कि कवने तरे बिना कवनो अक्षर ज्ञान के ऊ कलाकार कवनो बात हास्य से व्यंग्य पर ला देला। इहे कला हऽ।
एगो अर्जित भाषा होखेले। जनन माई के दूध आ माटी के धूर के साथे मनुष्य जन्म से सीखेला। एगो चेष्टित भाषा होखेले। जवना के निर्माण चेष्टा वश होखेला। चेष्टित भाषा वाला लोग लोकज्ञता के नकारे के कोशिक करेला।
बाद में पंडित विद्यानिवास मिश्र जी से संपर्क भइल। फिर हमरा लागल कि हम सही रास्ता पर बानी। एतना रिच हमार लोकगीत बा, हमार संस्कार बा। एकरा के नकारे के चेष्टित प्रयास हमरा के ठीक ना लागे। एक तरफ शास्त्रज्ञता रहे। एक तरफ लोकज्ञता रहे। शास्त्रज्ञता के राह आसान रहे, लोकज्ञता के राह में तमाम तरह के संकट रहे। बाद में लोकज्ञता आपन राह बनावत चली गइल।
साहित्य के ओर उहां के रुझान विद्यार्थी जीवन से ही रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उनके प्रोफेसर रहे रघुपति सहाय 'फिराक गोरखपुरी' के बड़ योगदान रहे। फिराक साहब पूर्वी उत्तर प्रदेश के विद्यार्थियों से भोजपुरी में ही बात करत रहलन। उहां के देख के जुगानी भाई सोचलें कि जब अतना बड़ प्रोफेसर आपनी माटी से एह तरे जुड़ल बा तो फिर हमरो कुछ करे के चांही।
एमए कइले के बाद उहां के गोरखपुर आकाशवाणी केंद्र द्वारा शुरू भइल 'ग्राम जगत' कार्यक्रम के जरिए पूर्वांचल के खेत-खरिहान तक आपन पहचान बनवनी। एही कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रसारक साथी (श्री हरिराम द्विवेदी उर्फ हरी भैय्या) उहां के ‘जुगानी भाई’ नाम दिहनी। इ अतना लोकप्रिय भइल कि उहां के असल नाम रवींद्र श्रीवास्तव लगभग गुमे हो गइल।
जुगानी भाई, आकाशवाणी गोरखपुर खातिर तकरीबन 500 से अधिक लघु नाटिका के लेखन आ निर्देशन भी कइनी। आजो भोजपुरी के इतिहास में ‘जुगानी भाई’ आ खड़ी बोली में ‘लपटन साहेब’ के नाम लोग जुबान पर चढ़ गइल।
जुगानी भाई ‘राष्ट्रीय सहारा’ दैनिक गोरखपुर में साप्ताहिक रूप से "बेंगुची चलल ठोंकावे नाल" नाम से एक कालम भी लिखत रहनी। उहां के 2003 में कार्यक्रम अधिकारी के रूप में आकाशवाणी से रिटायर भइनी। एकरे बाद उहां के गोरखपुर में रहत रहनी ह। साहित्य जगत में लगातार सक्रिय रहनी ह। हाले में उहां के यायावरी के भोजपुरी महोत्सव में सम्मान मिलल रहल ह। उहां भोजपुरी के पहिला मनई रहनी ह जेकरा ‘लोकभूषण सम्मान’ मिलल।
जुगानी भाई के प्रकाशित किताब
• मोथा अउर माटी (काव्य-संग्रह)
• गीत गांव-गांव (काव्य-संग्रह)
• नोकियाति दुबि (काव्य-संग्रह)
• अखबारी कविता (काव्य संग्रह)
• फुन्सियात सहर (काव्य-संग्रह)
• अगली बगली (गद्य-संग्रह)
• खिरकी त खोलों (काव्य-संग्रह)
• लेट द विण्डो बी ओपेण्ड (अंग्रेजी अनुवाद)
• भोजपुरी कवितई कऽ पंचामृत (काव्य-संग्रह)
• ई कइसन घवहा सन्नाटा (काव्य-संग्रह)
• गोरखपूरियत के बहाने (गद्य-संग्रह)
• अबहिन कुछ बाकी बा (भोजपुरी काव्य संग्रह)
• कलम बना के बाँसुरी (काव्य-संग्रह)
• भोजपुरी कs बेटा (मानग्रंथ)
जुगानी भाई के मिलल सम्मान
• संस्कार भारती सम्मान-2001
• लोक भूषण सम्मान-2002
• भोजपुरी-रत्न सम्मान लखनऊ-2004
• भोजपुरी वैभव सम्मान दिल्ली-2005
• लोकरत्न सम्मान (गुरुहनुमान संस्थान)
• भोजपुरी विभूषण सम्मान मुम्बई-2005
• चेतना कवि सम्मान-2006
• सरयू रत्न सम्मान-2011
• उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राहुल सांकृत्यायन सम्मान-2012
• भिखारी ठाकुर सर्जना सम्मान-2015
• लोक भूषण सम्मान-2017
• श्यामनारायण पाण्डेय कविता सम्मान मऊ-2013
• विद्यानिवास मिश्र लोक कवि सम्मान वाराणसी-2014
• यायावरी शिखर सम्मान-2023
आखर परिवार भोजपुरी माटी के अनूठा रचनाकार ‘जुगानी भाई’ के सादर नमन करत बा.
