Prem Chand ki Shav Yatra

अकेले आदमी को दूसरा भी भीड़ होता है!

यह कृत्य कोई बनारसी ही कर सकता है। प्रेमचंद को सम्मानित करने के लिए अमृत राय को अपमानित कर सकता है। हिन्दी भाषा में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ जीवनी को झूठी और वाहियात कह सकता है। ख़ुद के ही मुंह पर कालिख पोत सकता है।
वह कुछ भी कह सकता है, जो खैनी दबाकर पान और प्रेमचंद पर एक सी त्वरा से बोल सकता है।

वह आज अख़बार की एक सिंगल कॉलम ख़बर के आधार पर अमृत राय और नंददुलारे वाजपेई को मिथ्यावादी कह रहा है। अमृत राय और नंददुलारे वाजपेई को व्योमेश शुक्ल झूठा ठहरा रहे हैं। लगता है जैसे सच का ठेका उठा लिया हो।

बनारस की छवि बचाने के लिए व्योमेश शुक्ल कुछ भी कर सकते हैं। बनारस के ठग मशहूर हैं, इस कहावत का परिमार्जन भी व्योमेश शुक्ल को करना चाहिए। हो सकता है भविष्य में करें।

बनारस ने प्रेमचंद का ही नहीं तुलसीदास का भी अपमान किया। लेकिन तब आज अख़बार प्रकाशित नहीं होता था।

कलम का सिपाही जैसी बेजोड़ जीवनी में अमृत राय प्रेमचंद की अंतिम यात्रा का जो वर्णन करते हैं वह बनारस ही नहीं सारी हिंदी पट्टी का यथार्थ है। यह सच्ची वेदना है जो कलम का सिपाही में व्यक्त हुई है। अमृत राय की लिखी प्रेमचंद की जीवनी प्रेमचंद की जीवनी है, वह कोई बनारस के विरुद्ध व्यक्तव्य नहीं है, जैसा व्योमेश शुक्ल समझ रहे हैं।

व्योमेश शुल्क आज अख़बार को बहुत महत्व दे रहे हैं, लेकिन वे बताएं कि उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की मृत्यु क्या एक कॉलम की ख़बर थी? यह क्यों नहीं कहा जा सकता कि आज अख़बार ने सिंगल कॉलम ख़बर छापकर प्रेमचंद का अपमान किया है।

ख़बर में लिखा है कि भीड़ थी तो बताया जाए कि भीड़ की परिभाषा क्या है? भीड़ कितने लोगों को कहते हैं? ख़बर में जो नाम छपे हैं उनके अनुसार भी पच्चीस तीस लोगों से अधिक प्रेमचंद की शवयात्रा में नहीं थे। 

कुछ दशक पहले जो लोग प्रेमचंद की बैंक पासबुक लेकर आए थे और प्रेमचंद की ग़रीबी और फटे जूतों को पाखंड बता रहे थे, मज़ाक उड़ा रहे थे, वही लोग अब दूसरे भेस में प्रेमचंद की शवयात्रा में भीड़ जुटा रहे हैं। यह शर्मनाक है।

लगता है प्रधानमंत्री नाम में ही कुछ गड़बड़ है, चाहे देश के प्रधानमंत्री हों या नागरी प्रचारणी सभा के, वे इतने महत्वकांक्षी हो जाते हैं कि लगभग मंदबुद्धि हो जाते हैं। बिना बात अज्ञात स्थानों पर सर्जिकल स्ट्राइक करने लगते हैं।

ध्यान रखा जाए। प्रेमचंद पर जितने आक्रमण होते हैं उतने ही वे प्रासंगिक होते जाते हैं। 

मेरे ध्यान में अमृत राय पर यह पहला गंभीर आक्रमण है। इस आक्रमण से कलम का सिपाही का महत्व और बढ़ जाएगा।

अख़बारों की ख़बरों से इतिहास नहीं लिखे जाते। मैं इस बेहूदा प्रकरण की निंदा करता हूं!
#कलम_का_सिपाही १.
कृष्ण कल्पित फेसबुक से साभार

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