Poet Master Ajij

भोजपुरी के रसखान : मास्टर अजीज

रे मन मूरख निपट अनारी
खोजत फिरे काबा काशी, लेके धरम लुकारी
मन मंदिर में राम बसत है, काहे दिहल बिसारी
रे मन मूरख निपट अनारी।

मास्टर अजीज के बारे में हमरा जानकारी मिलल रहे तैयब हुसैन पिड़ीत जी के किताब ' जियतार जिनिगी ' से जवन किताब हमरा यशवंत भइया से मिलल रहे । ओहि किताब से हम शीर्षक ले ले बानी आ किताब से ही कुछ जानकारी रउवा सभ के दे रहल बानी । आज के समय में जहाँ राम कृष्ण के ले के हिंदू मुसलमान हो रहल बा ओइसना समय में भोजपुरी के एह रसखान के बारे में रउवा सभ के जाने के चाहीं ।

मास्टर अजीज के जनम बिहार के सारन जिला के अमनौर के लगे कर्णपुरा गांव में 5 मार्च 1910 के भइल रहे । इहां के बाबुजी के नाव रसूल बख्श रहे आ कलकत्ता में टीटागढ में ठीकेदारी के काम करत रहनी । अजीज जी के लइकाईं कलकत्ते में बीतल आ शुरुवाती पढाई ओजुगे भइल । उर्दू-फारसी के बाद बंगाली में इहाँ के शुरुवाती शिक्षा मिलल । बाद में गांवे आवे के परल त एजुगा हिंदी के पढाई शुरु भइल । बाकिर हाईस्कुल ले पढ ना पवले । एह के बादो पढे के शवख मास्टर अजीज के उर्दू-फारसी आ बंगला के संगे संगे हिंदी आ संस्कृत के ज्ञान हो गइल । चुकि भोजपुरी मातृभाषा रहल त एहि से मास्टर अजीज के तकरीबन 6 गो भाषा के जानकारी हो गइल रहे जवना से धर्मगर्थन के पढे में उनुका सहूलियत मिलल आ उ कुरान, हदीस , रामायण , उपनिषद , पुराण , गीता , बाईबिल आदि पढे लगले ।

सेयान भइला प नोकरी-चाकरी के फेरा में मढौरा में मार्टिन मिल ( मिठाई बनावे के कारखाना ) में काम कइले । मढौरा से काम छोड़ के फेरु महोली ( युपी ) चीनी मिल में काम करे लगलन । ओजुगो मन ना लागल त फेरु बहेड़ी ( युपी ) चीनी मिल में काम करे लगलन । जब एजुगो ना जमल त फेरु राजमिस्तरी के काम करे लगलन । मोटा-मोटी मास्टर अजीज के जिनगी गरीबिए में बीतत रहे ।

लइकाईए से गावे बजावे के लकम पर गइल रहे , जहाँ जहाँ गइल गावे बजावे के संगत मिलत गइल । क गो भाषा के जानकार , बंगाल , बिहार , युपी में क जगह के घूमल , बुद्धि विचार से गोट होइये गइल रहले । काम धंधा नोकरी चाकरी घर बनावे के ठीका-ठंटा आदि में जब जमल ना त कीर्तन मंडली बनवले । पहिले के अनुभव रहे आ भगवान के दरबार में चहुंपले ना की दिन बदल गइल । दिन में राजमिस्तरी के रुप में करनी-बंसुली आ रात का तबला -ढोलक । जिनगी भर मास्टर अजीज कीर्तन मंडली के ले के चलले आ जबले जिअले तबले अपना कीर्तन मंडली के संगे गीतन के प्रस्तुति दिहले , गीत लिखत रहले । बाद में मास्टर अजीज के कैंसर हो गइल आ ओहि कैंसर के बेमारी से 5 मई 1973 में मास्टर अजीज के निधन हो गइल ।

कीर्तन मंडली के रुप में मास्टर अजीज मूल रुप से कथा वाचक रहले , भगवान राम , भगवान कृष्ण से लगायत समाज आदि से जुड़ल सामयिक विषयन प गीत लिखत रहले आ अपना मंडली के संगे जनता के दरबार में भगवान के दरबार में गावत सुनावत रहले ।

भगवान राम प लिखल मास्टर अजीज के गीत -

घर में कलह , बाहर जाता खरचा
कतहीं ना होता राम नाम के चरचा ।
मास्टर अजीज कइलs रामनाम में अरचा
जम्हपुर में , जब देखल जइहें परचा ।
सीताराम जप मन माया से हट के हो ।
नाहके मरत नर बेटा-बेटी रह के हो ।

आगे एगो गीत बा -

अंखिया में जादो भरी, बिजुलिया अइसन हँसी।
सुनs ए साँवर दुलहा ॥
क्रीट मुकुट सोभे , आउर तीर तरकशी ।
सुनs ए साँवर दुलहा ॥
सिंह जइसन सीना, ढोरीं थोरी थोरी धंसी ।
सुनs ए साँवर दुलहा ॥

कृष्ण प , चुड़िहारिन गीत आ राधा कृष्ण के उहे दृश्य जवन लोक में महेंदर मिसीर के लेखनी में पढले आ बाद में सुनले बानी जा बाकि एगो नया कलेवर में -

सौकिन बा से पहिरी चुड़िया हमारी।

जोड़ा ना लागी एकर सहर बजारी ॥
पेन्हला पर मिल जइहें कृष्णमुरारी ॥
सौकिन बा से पहिरी चुड़िया हमारी॥

धइके बाँह चूड़ी पेन्हावस मुरारी ।
राधिका का हो गइल सक का बीमारी ॥
सौकिन बा से पहिरी चुड़िया हमारी॥

ए चुड़्हारिन तू नर हउअ कि नारी ।
औरत का भेस में बारs मरदा सिकारी ॥
सौकिन बा से पहिरी चुड़िया हमारी॥

कृष्ण भगवान आ गोपी लो के हारा-हुंसी त जगजाहिर बा आ ओह हारा-हुंसी से मास्टर अजीज भी नइखन बच पवले । अपना मातृभाषा में मास्टर अजीज लिखत बा‌डे -

गगरी मोर फोर देले कनहइया ।
सारी मोर फारी देले , गारी से तारी देलें ।
बहियाँ दिहले झकझोर ॥
कहत अजीज सनिचर के दिन रहे ।
करब पंचायत बटोर ॥

कृष्ण भगवान से जुड़ल गीतन में सिंगार आ वियोग दुनो बहुतायत में मिलेला । मास्टर अजीज के एगो रचना -

छोरी के भवनवाँ श्याम , गइले मधुबनवाँ ।
परनवाँ कइसे राखब हो श्याम ॥
कहतs अजीज उनकर सांवली सुरतिया ।
घवाहिल कइले छतिया हो श्याम ॥

सिंगार के गीतन में मास्टर अजीज के सिरजना अदभुत रहल बा । एगो बानगी

पहिले ओहिले हम अइली गवनवां , शरम लागेला
मोरा बारी रे उमिरिया , शरम लागेला ।
लिलरा पर चमके नन्हकी टिकुलिया , शरम लागेला
झूले नाक के झूलनिया , शरम लागेला ।
चलत अंगनवा में बाजे पैजनिया , शरम लागेला ।
खनके हाथ के कंगनवा , शरम लागेला ।
जेठकी गोतिनिया मारे टिटकरिया , शरम लागेला ।
कनखी मारेले सेजरया , शरम लागेला ।
ननदी ओसारा सउते , सासु रे अँगनवाँ , शरम लागेला ।
मोरा सुते ना सजनवाँ , शरम लागेला ।
रतिया बिरतिया के खोलेला केंवरिया, शरम लागेला ।
गंवे घुसेला महलिया , शरम लागेला ।
नन्हकी दलिचिया से झांकेली अँजोरिया, शरम लागेला ।
ताना मारेले कोइलिया , शरम लागेला ।
टूटी गइले गजरा, सूखी गइले कजरा, शरम लागेला ।
धूमिल भइले चुनरिया , शरम लागेला ।
अपना जिनगी के अनुभव के मास्टर अजीज भोजपुरी के टकसाली रुप में बड़ा नीमन से रचले बाड़े , एक तरह से जनगीत , मजदूरन के गीत आ आपन अनुभव के एह गीत में आकार देले बाड़े -

किस्मत से जाके पूछs काहें बांझ हो गइल ।
रहिया के ताकते ताकत साँझ हो गइल ॥
रकत जरा के खान कारखाना बनाई हम ।
रोटी सूखल बा नून के मोहताज हो गइल ॥
अजीज कोठा अमारी नित ओके बनाई हम ।
पीये के खून हमार, ओकर काज हो गइल ॥

मास्टर अजीज के लिखल बारहमासा के हई लाइन आजुओ ओतने सामयिक बा -

अगहन आग लगाइ गइले , जिया धनकाइ गइले हो ।
गंगा मइया पूसवा में फूसवा जुरत नइखे,
मड़ई दहाई गइले हे॥
माघ महीना घरे आई गइले देह ढिढराई गइले हे ।
मइया लुगरिया के गांथत गुदरिया
उमरिया ओराई गइले हे ।

आज भी सम-सामयिक बा इ गीत जवन आज से चालीस-पचास साल पहिले लिखाइल रहे आ एह गीत में कबीर के झपसी लउकत बा -

मंदिर में राम, मसजिद में रहीम ।
दाढी-जनेउ के झूठे इ नकेल बा ॥
पढत कुरान कोई बाँचत पुरान बा ।
एके समझावहीं में दूनो गोइंया फेल बा ॥

एगो अउरी -

साधू लोग भुलाइल बा जटा-जूट-झूल में
हमनी भुलाइल बानी चाम पटी-चूल में ॥
औरत लोग भुलाइल बा आइरिन कनफूल में ।
लरिका लोग भुलाइल बा बेसिक स्कूल में ॥

नोआखाली कांड के बाद अजीज जी के कलम से निकलल रहे-

सिर पर चढल सुराज के गगरिया ।
डगरिया सम्हार के चलिहs ना ॥
एक दरिया दुई नाव चलत बा ।
बीच ही तानल बा चदरिया ॥
डगरिया सम्हार के चलिहs ना ॥
एक पुरुब एक पछिम भइले ।
बीचहीं फाटल चदरिया ॥
डगरिया सम्हार के चलिहs ना ॥

मास्टर अजीज के कुछ अउरी रचना -

केहू-केहू का होखे राम नाम के चरचा
कहीं-कहीं चढ़ल बाटे घरे-घरे घरे-चरचा,

केहू-केहू का, जोड़ाता रात-दिन के खरचा।
घोंसरिये में निकलल बा घर-घर के लरछा,
केहू-केहू का, निकले आपसे में बरछा।

गाँवे-गाँवे बाँटल जाला खेतवे के परचा,

केहू-केहू का, मिले पिये के ना तरछा।
पूरबी का चूक से सोहात नइखे चरचा,

केहू-केहू का, जइसे धूकल जाला मरिचा।
‘मास्टर अजीज’ गावस रामनाम के चरचा,
केहू-केहू का, फाटल मिलत नइखे गमछा।

बोलऽ बोलऽ कागा तूहूँ साम के खवरिया, कइसन बाड़े ना ?
मोरा मन के मोहनवाँ, कइसन बाड़े ना ?

सखिया-सलेहर रोये, रोये धेनु गइया, कइसन बाड़े ना ?
साँवर साम के सुरतिया, कइसन बाड़े ना ?

खेत-खरिहान रोये, रोये मधुवनवाँ, कइसन बाड़े ना ?
उनकर बाँस के बँसुरिया, कइसन बाड़े ना ?

सिकहर टांगल रोये माखन के मटुकिया, कइसन बाड़े ना ?
नन्हकी बाँह के अँगुरिया, कइसन बाड़े ना ?

जहिया देब कागा साम के खबरिया, बरदानवा देबि ना ?
जुग-जुग जिओ तोहर जोड़िया, वरदनबा देबि ना ?

‘मास्टर अजीज’ जिया कुहु-कुहु कुहुके, कोइलिया कुहुके ना ?
जइसे भोर-भिनसहरा, ई कोइलिया कुहुके ना ?

आ अंत में एगो टिबोली मास्टर अजीज के ओर से -

कविता के जे मरम ना जाने ऊहो कवि कहाता ।
लय छंद के बात कहीं त तनिको ना सोहाता ॥

सोचीं सभे अइसन कतने भोजपुरिया , भोजपुरी साहित्य आ भोजपुरी भाषा में आपन जिनगी खपा देबे वाला हमनी के चहुंप से दूर बा ।

( भोजपुरी साहित्यांगन प फोटो में लागल किताब रउवा सभ के मिल जाई । एह किताब में मास्टर अजीज के लिखल भोजपुरी के सैकड़न गो भक्ति गीत आ कुछ फुटकर गीत के संकलन बा । )

- नबीन कुमार

साभार : तैयब हुसैन पीड़ित जी - जियतार जिनगी , दैनिक जागरण , कविता कोश

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