Ramakatha Part-01

 रामायन सत कोटि अपारा (१)

-रवींद्र उपाध्याय

    समस्त एशियायी देशों को सांस्कृतिक एकता  के सूत्र में पिरोने में सर्वाधिक सशक्त भूमिका निभाने वाला एकमात्र महाकाव्य वाल्मीकि रामायण है।इस महाकाव्य का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि संस्कृत सहित सभी भारतीय भाषाओं में 300 से अधिक काव्य और नाटक लिखे गये।भारत के अलावा एशियाई देशों में भी रामाख्यान लिखे गये।उन देशों ने राम कथा को ऐसे अंगीकृत किया जैसे वह किसी दूसरे देश का नहीं वरन् उनका अपनी संस्कृति का अंग हो।

     रामकथा के थाई संस्करण रामकियेन  (Ramkien), कम्बोडियाई ख्मेर (Khmer) संस्करण रामकेर्ति (Ramakerti), मलयेशियाई संस्करण हिकायत सेरी राम  (Hikayet Seri Ram), लाओस का संस्करण फ्रा लक फ्रा लाम(Phra  Luk Phra Lam),इण्डोनेशियाई संस्हकरण प्राचीन जावा रामायण और बर्मा के कथानक याम प्वे (Yam Pve), श्री लंका के राजा कुमारदास कृत जानकीहरणम् आदि ने एशियाई देशों को साझा विरासत, सांस्कृतिक एकता और भ्रातृत्व का अमूल्य पुरस्कार दिया।रामकथा को अपनी संस्कृति में आत्मसात करने वाले देशों की रामायणों में स्थानीय परंपराओं, विश्वासोंके और लोक कथाओं के अनुरूप बहुत से परिवर्तन हो गये।

     प्राय: सभी विद्वान एकमत हैं वाल्मीकि रामायण में अयोध्या काण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक केवल पाँच काण्ड थे।बाद में बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड अन्य लोगों द्वारा जोड़ दिये गये लेकिन राम कथा का निर्मम विद्रूपीकरण बौद्धों और जैनियों ने किया जिनके सामने राम का उदात्त चरित्र एक चुनौती के रूप में उपस्थित था।उन्होंने सुनियोजित रूप से रामकथा को अपने धर्म में घसीट लाने का कार्य किया ताकि बुद्ध और महावीर को श्रीराम से ऊँचा आसन दिया जा सके।

    बौद्धों ने पालि भाषा के ‘दशरथ जातक’ में राम को गौतम बुद्ध, सीता को यशोधरा, भरत को आनन्द और दशरथ को शुद्धोदन बना दिया और सबसे बड़ा कुठाराघात यह किया कि राम और सीता को सहोदर भाई बहन के रूप में चित्रित कर दिया जो काशी के राजा दशरथ और उनकी रानी से उत्पन्न हुये।दशरथ जातक में किष्किंधा और लंका के प्रसंग नदारद हैं।

   जैनियों ने भी रामकथा की दुर्गति करने में कोई कसर नहीं बाकी रखी।श्वेतांबर विमल सूरि ने ‘पद्म चरित’ और दिगंबर गुणभद्र ने ‘उत्तर पुराण’ की रचना की।उन्होंने राम, लक्ष्मण, रावण आदि को जैन धर्मानुयायी बना दिया।जैनियों ने सीता को रावण की पुत्री बताया और लिखा कि राम की 8000 रानियाँ और लक्ष्मण की 16000 रानियाँ थीं।सभी वानर विद्याधर थे।रावण को राम ने नहीं बल्कि लक्ष्मण ने मारा क्योंकि राम जैन धर्म को मानने वाले अहिंसक थे।




   यद्यपि इस लेख का उद्देश्य एशियाई देशों की रामकथाओं और वाल्मीकि रामायण की कथा की प्रमुख भिन्नताओं को सामने लाना है लेकिन बौद्धों और जैनियों की रामकथाओं का उल्लेख  करना इस कारण से आवश्यक हो गया कि उन देशों में रामकथा बौद्ध धर्म प्रचारकों के माध्यम से ही पहुँची और उन्होंने वही कथा प्रचारित की जिसमें राम को बोधिसत्व बताया गया था।उन देशों की रामकथाओं में स्थानीय तत्वों का समावेश भी प्रमुखता से किया गया।

(१)थाईलैण्ड-थाईलैण्ड का पुराना नाम स्याम था और 1350ई० से यहाँ की राजधानी अयुथ्या(अयोध्या)थी।रामकथा इस देश की आत्मा में इस तरह रची बसी है कि 1350 ई० से लेकर 1767ई० तक 37 राजाओं में अधिकांश ने अपना नाम ‘राम’ रखा।बर्मा की सेना ने 1767 में अयुथ्या पर हमला किया और नगर में आग लगा दी जिसके कारण मन्दिरों और बौद्ध विहारों को बहुत क्षति पहुँची।अयुथ्या को फिर से बसाया नहीं जा सका।सन् 1782 से थाईलैण्ड में ‘चक्री’ राजवंश की स्थापना सम्राट राम-1 ने की और वर्तमान में सम्राट राम-10 जिनका नाम ‘महा वाजीरोंगकोर्ण’ भी है का शासन है।अयुथ्या का जीर्णोद्धार चल रहा है और वह यूनेस्को द्वारा वर्ल्ड हेरिटेज सिटी घोषित है।

   थाई रामायण रामकियेन(Ramakien) की रचना का श्रेय सम्राट राम-1 (1782-1809) को जाता है।थाईलैण्ड का यही रामाख्यान हर दृष्टि से पूर्ण है।इसमें भी वाल्मीकि रामायण की तरह 7 काण्ड हैं।इसमें 50286 छंद हैं।

   इसमें एक कथा यह है कि रावण ने राक्षसी बेन्जकाई(Benjakai) को आज्ञा दी कि वह सीता का रूप धारण करके राम के निवास के निकट नदी में मृत शरीर की तरह उतराये जिससे राम समझें कि सीता अब जीवित नहीं रहीं।राम इस दृश्य को देख कर रुआँसे हो गये।वहाँ लक्ष्मण और हनुमान आ गये।हनुमान समझ गये कि यह कोई मायाविनी है।उन्होंने शव को उठा कर आग में झोंक दिया।वह राक्षसी आकाश में उड़ गई लेकिन हनुमान उसे खींच लाये।सुग्रीव ने उसे कोड़े मारे।उसने बताया कि वह विभीषण की बेटी है।राम ने हनुमान को आज्ञा दी कि वे उसे सकुशल लंका पहुँचा दें।रास्ते में हनुमान ने उससे संभोग किया जिससे उन्हें ‘असुरपद’ नामक पुत्र हुआ।

  एक अन्य कथा यह है कि रावण ने राम को मारने के लिये पाताल लोक के राजा मैयराब(Maiyarab) को बुलाया।उसने राम के शिविर में कोई ऐसा पाउडर छिड़क दिया जिससे सब सो गये।मैयराब राम को उठा कर पाताल ले गया और उन्हें खौलते पानी में डालने की तैयारी करने लगा।राम के शिविर में लोग जाग गये और राम को खोजने लगे।विभीषण को माजरा समझ में आ गया।उन्होंने हनुमान को पाताल लोक भेजा।रास्ते में हनुमान को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ा लेकिन वे पाताल लोक पहुँच गये और मैयराब के गोद लिये गये पुत्र ‘मच्छानु’ को मार कर राम को सकुशल वापस ले आये।यह घटना अहिरावण की कहानी से मिलती जुलती है।

   रामकियेन की कथा में एक जगह लक्ष्मण और हनुमान में लड़ाई हो जाती है लेकिन बाद में सुलह हो जाती है।इसमें सीता मंदोदरी की पुत्री के रूप में जन्म लेती हैं।ज्योतिषियों के कहने पर रावण उन्हें एक मंजूषा में रख कर नदी में फेंक देता है लेकिन समुद्री देवी उन्हें बचा लेती हैं और राजा जनक को सौंप देती हैं।वे जनक के खेतों में हल जोतती हैं।राम और सीता एक दूसरे को खिड़की से देखते हैं और उनके बीच प्रेम हो जाता है जैसा कि तमिल के कम्बन रामायण में दिखाया गया है।कम्बन रामायण की ही तरह दशरथ की अंत्येष्टि शत्रुघ्न करते हैं।

    रामकियेन के हनुमान मौका पाते ही स्त्रियों से कामुक संबंध बनाने लगते हैं,यहाँ तक कि वे रावण के वेष में मंदोदरी के साथ भी सहवास कर लेते हैं।हनुमान विनोदी भी हैं, वे मंदोदरी के शयन कक्ष में घुस कर उसकी चोटी को रावण की चोटी से बाँध देते हैं।हनुमान गौतम ऋषि की पुत्री के पुत्र  हैं जो 30 माह गर्भवास के बाद जब जन्म लेते हैं तो 16 वर्ष के लगते हैं।वे अमर हैं और रूप बदलने में कुशल हैं।

    मंदोदरी को बालि भी थोड़े दिन के लिये अपने पास रख लेता है जिससे वह गर्भवती हो जाती है।रावण की मृत्यु के बाद वह विभीषण की पत्नी हो जाती है।

    एक विचित्रता यह है कि परशुराम यहाँ ऋषि नहीं है , वे ‘रामासुर’ नामक राक्षस हैं।

   सीता के परित्याग की कथा यह है कि सूपर्णखा की पुत्री रूप बदल कर सीता की सेविका हो जाती है।उसके फुसलाने पर सीता रावण का चित्र बनाती हैं जिसे देख कर राम क्रोधित हो जाते हैं और लक्ष्मण को आज्ञा देते हैं कि वे सीता को वन में ले जाकर मार डालें लेकिन लक्ष्मण जब देखते हैं कि सीता गर्भवती हैं तो वे ऐसा जघन्य कृत्य नहीं करते।वे एक हिरण के रक्त से सने शस्त्र को दिखा कर राम को संतुष्ट कर लेते हैं।

    सीता के दोनों पुत्र हनुमान, भरत और शत्रुघ्न को युद्ध में हरा देते हैं। राम सीता से आग्रह करते हैं कि वे उनके साथ अयोध्या चलें लेकिन सीता इन्कार कर देती हैं।बाद में उन्हें राम के देहान्त की सूचना मिलती है तब वे अयुथ्या जाती हैं लेकिन जब वे पाती हैं कि राम जीवित हैं तब वे क्रोधित हो जाती हैं और माता पृथ्वी से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें आश्रय दें।सीता पाताल लोक पहुँचती हैं।राम हनुमान को पाताल भेजते हैं ताकि वे सीता को समझा बुझा कर ले आवें लेकिन सीता राम के पास जाने से मना कर देती हैं।बाद में ईश्वर(इंद्र) के हस्तक्षेप से सीता मान जाती हैं और राम के साथ रहने के लिये राज़ी हो जाती हैं।

   बताया जाता है कि रामकियेन की कथा थाईलैण्ड में सीधे भारत से नहीं बल्कि 900 साल पहले इण्डोनेशिया से पहुँची।स्थानीय तत्वों के मिश्रण से कथा में विचित्रता आ गई फिर भी वाल्मीकि रामायण के मुख्य घटनाक्रम का निर्वाह कुछ हद तक संभव हो सका।

                         (क्रमश:)

    (अगले भाग में कम्बोडिया, लाओस आदि की राम कथा)

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