रामायन सत कोटि अपारा (२)
-रवींद्र उपाध्याय
[ लेख के भाग(१) में थाईलैण्ड के रामायण ‘रामकियेन’ का उल्लेख था।अब कम्बोडिया की रामकथा का विवरण प्रस्तुत है।]
(२) कम्बोडिया-कम्बोडिया या कम्पूचिया का प्राचीन पौराणिक नाम कम्बोज था।तेरहवीं शताब्दी में यहाँ बौद्ध धर्म के ‘थेरवाद’ का प्रवेश प्रवेश हुआ।इसके पूर्व चाहे यहाँ पहली सदी से शुरू हुआ ‘फूनान’ साम्राज्य रहा हो या नवीं शताब्दी में स्थापित ‘ख़्मेर’ साम्राज्य रहा हो, यहाँ के लोग हिन्दू धर्म के अनुयायी थे।यहाँ रामायण की कथा का प्रचार हिन्दू धर्म के साथ ही हो गया था।कम्बोडिया के स्टुएंग ट्रेंग प्रान्त में 7वीं सदी के एक शिलालेख से पता चलता है कि यहाँ रामायण की पाण्डुलिपि मौजूद थी जो किसी मन्दिर को भेंटस्वरूप दी गई थी।यहाँ के लोकप्रिय नृत्य-नाटक ‘ल्खोन खोल’(Lkhon Khol) में वानरों, राक्षसों और रामकथा के अन्य पात्रों का आनन्ददायक प्रदर्शन होता था और वहाँ के राज्याश्रित कलाकार राजमहल में भी इसका प्रदर्शन करते थे।’ल्खोन खोल’का अर्थ ‘वानर रंगशाला’(MonkeyTheatre) है।ख़्मेर साम्राज्य के उत्कर्ष काल में राजा यशोवर्मन-द्वितीय द्वारा बनवाया गया ‘अंगकोरवाट मन्दिर’ संसार का विशालतम विष्णुमंदिर है।उसमें रामायण की कथा का कलात्मक चित्रण है।
तेरहवीं शताब्दी में कंबोडिया में बौद्ध धर्म के थेरवाद का वर्चस्व स्थापित हो गया और अंगकोरवाट मंदिर को भी बौद्ध मंदिर बनाने का यत्न शुरू हो गया।आज भले ही कम्बोडिया के 97% लोगों ने बौद्ध धर्म अंगीकृत कर लिया हो, लेकिन उनके मन में हिन्दू देवी देवताओं और विशेषकर राम, सीता,लक्ष्मण और हनुमान के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति है।
कम्बोडियाई रामायण का नाम रामाकेर्ति (Ramakerti) है।इसके पहले भाग में 5034 छंद हैं जिनमें राम की किशोरावस्था से लेकर लंका के युद्ध में इंद्रजीत के मारे जाने तक का हाल है।इस भाग की रचना 16वीं से 17वीं शताब्दी तक हुई।उसके बाद 18वीं शताब्दी में रामाकेर्ति के दूसरे भाग की रचना हुई जिसमें 1774 छंद थे।इसमें राम राज्य, राम और सीता में मतभेद, सीता द्वारा नागलोक में आश्रय लेने और बाद में दोनों के बीच सुलह संबंधी विवरण हैं। विडम्बना ही है कि इतनी महत्वपूर्ण कृति के रचयितागण अज्ञात हैं।
जिसप्रकार हम विष्णु को नारायण कहते हैं वैसे ही कम्बोडिया में भी विष्णु को नाराय (Naraya) [अर्थात् जल में निवास करने वाला] कहा जाता है।नाराय,हरि और राम- ये तीनों शब्द समानार्थी हैं।रामकेर्ति की कथा में जब पृथ्वी राक्षसों के अत्याचार से पीड़ित हो जाती है तब उसकी प्रार्थना पर ‘नाराय’ कौशल्या के गर्भ से राम के रूप में अवतार लेते हैं।इसप्रकार कम्बोडिया की रामकथा में राम विष्णु के अवतार के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
रामकेर्ति में राम धनुष को तोड़ते नहीं हैं वरन् उसे उठा कर मोड़ देते हैं।उन्हें कैकेयी के दबाव में वन जाना पड़ता है।लक्ष्मण 14 वर्षों के लिये निद्रा का परित्याग कर देते हैं।थाई रामायण की भाँति रामकेर्ति में में भी लक्ष्मण और हनुमान के बीच युद्ध होने का उल्लेख है।एक विचित्रता यह भी है कि हनुमान कैलाश पर्वत उखाड़ कर लाते समय एक सरोवर का जल, पद्म पराग और पन्ना भी लाते हैं जिसे रावण गुप्त रूप से अपने तकिये के नीचे रख लेता है।मुझे लगता है ये वस्तुयें किसी तांत्रिक क्रिया से संबंधित होंगी।इस रामायण में भी एक यक्षिणी के उकसाने पर सीता रावण का चित्र बनाती हैं जो उनके निर्वासन का कारण बनता है।रामकेर्ति में भी राम अपने गुरु की आज्ञा से शूद्र तपस्वी शंबूक का वध करते हैं।
कम्बोडिया की रामकेर्ति तथा थाईलैण्ड के रामकियेन दोनों में हनुमान और सोवन मच्छा(सुवर्ण मत्स्य) का एक मनोरंजक प्रसंग है जो भारतीय रामायणों में नहीं है।लंका के लिये सेतुनिर्माण के समय हनुमान के नेतृत्व में सभी वानर पत्थर उठा-उठा कर समुद्र में फेंकते हैं।थोड़े समय बाद हनुमान को लगता है कि पत्थर कहीं गायब हो जा रहे हैं।पता लगता है कि यह ‘सोवन मच्छा’ और उसकी सहायिका मत्स्य कन्याओं की शरारत है।वे एक मत्स्यकन्या के पीछे तैरते हुये जाते हैं तो उन्हें ‘सोवन मच्छा’ मिल जाती है।वह बताती है कि वह रावण की बेटी है और वह वानरों को पुल नहीं बनाने देगी।हनुमान उसको समझाते हैं और उसकी ओर आकर्षित भी हो जाते हैं।सोवन मच्छा भी हनुमान के प्रेम में पड़ जाती है।मत्स्यकन्यायें पत्थरों को लौटा देती हैं।हनुमान उससे कामुक संबंध बनाने में भी सफल हो जाते हैं जिससे ‘सोवन मच्छा’ को ‘मच्छानु’ नामक एक पुत्र प्राप्त होता है।कम्बोडिया और थाईलैण्ड की चित्रकला में ‘सोवन मच्छा’ के बहुतेरे चित्र पाये जाते हैं।नृत्य-नाटिका में इस प्रसंग देख कर लोग बहुत आनन्दित होते हैं।
तेरहवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के प्रभाव से कम्बोडिया में राम को बोधिसत्व बना दिया गया।उनके विरोधी असुरों को ‘मार’ की संज्ञा दे दी गई।राम के व्यक्तित्व में बुद्ध की विशेषतायें आरोपित कर दी गईं।इसके बावजूद कम्बोडिया के पारम्परिक ‘ल्खोन खोल’ का स्वरूप पुराना ही रहा।इसमें बंदर राक्षसों को तंग करते हैं, उनसे छेड़खानियाँ करते हैं।इन्हें देख कर वहाँ की जनता बहुत आनन्दित होती है, लेकिन वे ही बंदर अपने स्वामी राम और लक्ष्मण की मौजूदगी में अनुशासन में रहते हैं।
कम्बोडिया की जनता ने भले ही बौद्ध धर्म अपना लिया हो, रामकथा उनके प्राणों में रची बसी है और पूरे देश में चाहे चित्रकला हो, मूर्ति कला हो, वास्तु कला हो या नृत्य-नाट्य हो-वहाँ हिन्दू और बौद्ध संस्कृति का ऐसा समन्वय देखने को मिलता है जैसा अन्यत्र दुर्लभ है।
(क्रमश:)
[अगले भाग में लाओस की रामकथा]