Ramakatha Part-03

 रामायन सत कोटि अपारा (३)

-रवींद्र उपाध्याय

[पिछले दो भागों में थाईलैण्ड और कम्बोडिया की रामकथाओं का उल्लेख था।इस भाग में लाओस की रामकथाओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है।]

    लाओस-लाओस चारों ओर से चीन, वियतनाम, कम्बोडिया,थाईलैण्ड और बर्मा से घिरा हुआ है जिसकी जनसंख्या केवल 72 लाख है लेकिन क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश से थोड़ा ही कम है।इसके तीन-चौथाई भाग में जंगल और पहाड़ हैं।देश के पश्चिमी सीमा से होकर मेकांग(Mekong) नदी बहती है जो वहाँ की जीवन-रेखा है।जैसे हम लोगों के लिये गंगाजी हैं वैसे ही लाओस वालों के लिये मेकांग नदी है(Me=माँ, kong=गंगा) जिसके किनारे राजधानी वियेनतियेन (Vientiane) स्थित है।वियेनतियेन की आबादी क़रीब छह-सात लाख होगी।लाओस की दो तिहाई जनसंख्या बौद्ध धर्म के थेरवाद की अनुयायी है और एक तिहाई से थोड़े ही कम लोग विविध स्थानीय धर्मों को मानते हैं।’लाओ’ भाषा में संस्कृत, पाली और फ्रेन्च शब्दों की प्रचुरता है।यहाँ के लोग खेती पर निर्भर हैं और वे भीषण गरीबी, अशिक्षा, कुपोषण और साधनहीनता से संघर्ष कर रहे हैं।वर्तमान में यहाँ मार्क्स-लेनिनवादी एकदलीय समाजवादी सरकार है।

  प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र में भारत से हिन्दू व्यापारियों, सैलानियों, बौद्धमत  के प्रचारकों का आना जाना लगा रहा।डा.आर.सी. मजुमदार के अनुसार ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में ही यहाँ भारतीय संस्कृति का प्रवेश हो गया था।उस समय यह क्षेत्र ‘गांधार’ कहा जाता था।यहाँ हर जगह बौद्ध मंदिर हैं जिनकी दीवालों पर हिन्दू देवी-देवताओं और रामायण के प्रसंग चित्रित हैं।यहाँ प्राचीन काल से ही लोक नृत्यों,नाटकों, चित्रकला, मूर्तिकला तथा धार्मिक आख्यानों में रामायण की कथा की प्रधानता रही है।लाओस के रामाख्यानों पर कम्बोडिया और थाईलैण्ड की रामकथाओं का भी प्रभाव पड़ा अत: उसका स्वरूप बौद्ध धर्म, स्थानीय परिवेश और राष्ट्रीय चरित्र के साँचे में ढल कर वाल्मीकि रामायण से बिल्कुल भिन्न हो गया।

     लाओस की प्रमुख रामकथा ‘फ्रा लक फ्रा लाम’(Phra Lak Phra Lam=The August Lakshmana The August Rama) है।यह फुत्तफोचन (बुद्धघोष) नामक किसी बौद्ध की कृति है जो 1850 ईस्वी के कुछ वर्षों पहले की है।इसे ‘राम जातक’ भी कहते हैं।यह लाओस की संस्कृति,आचार-विचार, जीव-जन्तु और आस्था-विश्वास का विश्वकोष है।

    फ्रा लक फ्रा लाम के अनुसार यह कथा बुद्ध ने अपने शिष्यों को सुनाई और कथा के अंत में उन्होंने बताया कि पूर्व जन्म में वे ही फ्रा लाम (राम) थे, यशोधरा ही नाड्० सीदा(सीता) थीं तथा देवदत्त ही राफनासुअन(रावण) था।कथा अत्यंत विस्तृत है।इस लेख में केवल मुख्य अंशों का ही उल्लेख कर पाना संभव है।

   कथा के अनुसार दशरत्त(दशरथ) मेकांग नदी के तट पर स्थित सत्तनाकपुरी के राजा थे।उनकी रानी का नाम विशुद्धिसोता(विशुद्धि श्वेता) था।उनकी पुत्री नाड्०चन्द्रा  का अपहरण इंद्रप्रस्थ के राजा राफनासुअन (रावण) ने कर लिया।इससे क्षुब्ध होकर दशरत्त ने इंद्र की प्रार्थना की।उनके वरदान से दशरत्त को दो पुत्र फ्रा लाम(राम) और फ्रा लक(लक्ष्मण) हुये।जब दोनों भाइयों को अपनी बड़ी बहन नाड्०चन्द्रा के अपहरण की बात मालूम हुई तो वे इंद्रप्रस्थ गये और राफनासुअन को पराजित करके नाड्० चन्द्रा को वापस ले आये।राफनासुअन ने फ्रा लाम को किसी तरह मना लिया और उनकी शर्तों को स्वीकार कर लिया।इसके बाद राफनासुअन और नाड्० चन्द्रा का विवाह हो गया।

    बता देना ज़रूरी है कि राफनासुअन इन्द्रप्रस्थ नरेश विरुलह और उसकी पत्नी महालिका से उत्पन्न था।महालिका के गर्भ से ही इंद्रजीत और बिक-बी(विभीषण) भी हुये थे।दशरत्त राजा विरुलह के सगे बड़े भाई थे।इस प्रकार नाड्० चन्द्रा राफनासुअन की चचेरी बहन थी।लाओस के पुरुषों में वैवाहिक संबंधों की पवित्रता का पालन बहुत कम है, कदाचित् इसी का प्रभाव राफनासुअन के आचरण में दिखाई देता है यहाँ तक कि फ्रा लाम जैसे आदर्श नायक भी इससे नहीं बचे हैं।


नाड्० चन्द्रा को वापस लाने जाते समय फ्रा लाम(राम) ने मणिग्रोध वृक्ष का वर्जित फल खा लिया जिससे वे तीन वर्षों के लिए बन्दर हो गए! उस पेड़ पर तोत्तम(गौतम) की पुत्री फोंग-सी(Phong Si) नामक वानरी से उनका संबंध हो गया जिससे महापराक्रमी हनुमान का जन्म  है।

     इस कथा में फ्रा लाम वियेनतियेन के पराक्रमी राजा हैं जिनका राज्य विशाल क्षेत्र में फैला है।वे राजनैतिक लाभ के लिए वैवाहिक संबंधों का भी उपयोग कर लेते हैं।इस दृष्टि से देखा जाय तो लाओस के राम की छवि एकपत्नीव्रती मर्यादा पुरुषोत्तम की नहीं बन सकी है।भारत के लोगों को इससे धक्का लगना स्वाभाविक है।

    इस रामायण के अनुसार राफनासुअन अत्यंत बलशाली, मायावी, विलक्षण शक्तिसम्पन्न तथा क्रोधी था।वह अपनी पत्नी नाड्०चन्द्रा और कुटुम्बियों के साथ लंका नामक निर्जन द्वीप में चला गया जहाँ उसने बहुत शक्तिशाली राज्य की स्थापना की।

        राफनासुअन अपने पिछले जन्म में एक विकलांग शिशु के रूप में उत्पन्न हुआ था।वह इतना मेधावी था कि उसने अपनी प्रतिभा से इंद्र का मन जीत लिया।इंद्र उसे स्वर्गलोक ले गये जहाँ उसे बार बार दैवी-गुणों के साँचों में ढाला गया।इंद्र के साँचे में ढल कर उनके जैसा ही हो गया और इन्द्र पत्नी सुजाता का शीलहरण कर बैठा।सुजाता ने उससे प्रतिशोध लेने के लिये पृथ्वी पर राफनासुअन की ही पुत्री नाड्०सीदा (सीता)के रूप में जन्म लिया।ज्योतिषियों के कहने पर राफनासुअन ने उस कन्या को एक मंजूषा में रख कर समुद्र में बहा दिया।जम्बूद्वीप के एक ऋषि कस्सप(कश्यप) ने उस मंजूषा को खोला और उस कन्या का नाम नाड्० सीदा रखा।

    इसके बाद नाड्०सीधा के विवाह के लिये धनुष-परीक्षा का प्रसंग है जिसमें फ्रा लाम को सफलता मिली।फ्रा लाम और नाड्० सीदा का विवाह हो गया जिससे क्षुब्ध होकर राफनासुअन ने नाड्० सीदा को पतिगृह जाते समय रास्ते से ही अपहृत कर लिया।यहाँ स्वर्णमृग का प्रसंग भी वर्णित है।

    लाओस के लोग हास्यविनोद के दृश्यों का खूब आनंद लेते हैं।हनुमान से जुड़े प्रसंगों को उनकी रुचि के अनुसार ही चित्रित किया गया है।उदाहरणार्थ जब वे नाड्० सीदा को खोजने के लिये छलांग लगाने को तत्पर होते हैं तो उन्हें लगता है कि कहीं धरती धँस न जाय।यदि वे पेड़ से छलांग लगायेंगे तो पेड़ का नामोनिशान नहीं बचेगा।यह देख कर फ्रा लाम कहते हैं-‘हनुमान ! तुम मेरी जाँघों पर खड़े होकर छलांग लगाओ!’ हनुमान इतनी ज़ोर से कूदते हैं कि वे लंका के भी पार नारद ऋषि के आश्रम में पहुँच जाते हैं।रात को सोने के लिये वे कंबल माँगते हैं तो ऋषि उन्हें एक छोटा सा रूमाल थमा देते हैं।हनुमान कहते हैं कि मैं भारी भरकम हूँ, रूमाल मेरे किस काम का है?ऋषि कहते हैं-तुम्हारे लिये यही बहुत है! जब हनुमान उस रूमाल को ओढ़ते हैं तो वह फैलता चला जाता है।एक अन्य दृश्य में हनुमान के खाने का प्रबंध करने के लिये ऋषि पेड़ों के ऊपर उड़-उड़ कर फल तोड़ते हैं।नृत्यनाटक में यह सब देख कर वहाँ की भोली भाली जनता बहुत आनंदित होती है।

     इस कथा में सूपर्णखा वाली घटना का उल्लेख नहीं है।कैकेयी,भरत,शत्रुघ्न तथा राम बनवास का भी उल्लेख नहीं है।लंका दहन का काम हनुमान और अंगद मिल कर संपन्न करते हैं।एक और विचित्रता यह है कि राफनासुअन से युद्ध और नाड्० सीदा को वापस लाने के बाद हनुमान मनुष्य के रूप में बदल जाते हैं परंतु बाद में संन्यासी हो जाते हैं।यहाँ भी सीता के परित्याग का कारण उनके द्वारा राफनासुअन का चित्र बनाना है जैसा कि दक्षिण पूर्व एशिया की अधिकांश रामकथाओं में है।

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