मौत की घाटी
अमेरिका स्थित डेथ वैली दुनिया का सबसे गर्म स्थान है। यहां के सरकने वाले पत्थर आज भी अबूझ पहेली बने हुए हैं। ये पत्थर आश्चर्यजनक रूप से इस घाटी की सतह पर एकदम सीधी पंक्ति में चलते हैं। ऐसा क्यों....
सम्पदा-समाचार
डेथ वैली उत्तरी अमेरिका का सबे गर्म. सूखा और विचित्र स्थान है। यह कैलिफोर्निया के दक्षिण-पूर्व में नोएडा की सीमा के पास है। इसकी लंबाई 225 कि.मी. है। अलग- अलग स्थानों पर इसकी चैड़ाई अलग-अलग है और यह 8 से 24 कि.मी. के बीच में यह है।
ऐसे बनी डेथ वैली
शुरू-शुरू में अमेरिका आने वाले लोगों को यह घाटी पार करके ही आना पड़ता था। इसके उच्च तापमान और सूखेपन के कारण बहुत से लोग घाटी के पार करने के दैरान मारे जाते थे। कैलिफोर्निया के आसपास के क्षेत्रों में सोने के भंडारों का पता लगाने के लिये जाने वाले बहुत से लोेग इस घाटी को पार करते समय मारे गए। इस भयानक परिस्थितियों के कारण ही इस घाटी का नाम ‘डेथ वैली’ यानी ‘मौत की घाटी’ पड़ गया। वर्ष 1870 में जब घाटी का अध्ययन किया गया, तो इसमें हजारों जानवरों और मनुष्यों की हड्डियों के ढांचेे मिले। वर्ष 1933 में इस वैली को अमेरिका का नेशनल माॅनूमेंट घोषित कर दिया गया। इसकी विचित्रता को देखने वर्ष चार-पाचॅ लाख लोग यहाॅ जाते हंै।
सरकने वाला रहस्यमय पत्थर डेथ वैली में रहस्यमय ढंग से सरकने वाले पत्थरों को देख गया है। इस पत्थरोें में कई तो 115 किलो ग्राम तक भारी हैं। बिना किसी मदद के या पत्थर आश्चर्यजनक रूप से इस घाटी की सतह पर एकदम सीधी पंक्ति में चलते हैं। वनज में भारी हाने के बावजूद ये पत्थर सैकड़ों फीट तक सरकते देखे गये हैं। पत्थरों का सरकना दुनिया भर के वैज्ञानिकों के अध्ययन का विषय बना हुआ हैं। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा तेज हवाओं और बर्फीली सतह पर होने वाली हलचल के कारण होती है। हालांकि वैज्ञानिकों की इस मान्यता से परे यहां पर पत्थर विभिन्न दिशावों में अलग-अलग गति से सरकते पाए गए हैं। सरकते हुए ये पत्थर अपने पीछे एक लंबी पटरी छोड़ जातें हैं, जिससे इसके सरकने का पता चलता है। माना जाता है कि यह पत्थर साल में सिर्फ ऐ दो बार ही सरकते हैं। इन्हें आज तक किसी ने सरकते हुए नहीं देखा है, सिर्फ इनके द्वारा पीछें छोड़ी गई पटरियों के कारण ही इनके सरकने पता चलता हैं।
रेगिस्तान में 90 मील प्रति घण्टे की गति से चलने वाली हवाएं, रात को जमने वाली बर्फ और सतह के ऊपर गीली मिट्टी की पतली परत, ये सब मिलकर पत्थरों को गतिमान करते होंगे। कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी वैसे-वैसे पत्थरों का खिसकना बन्द हो जायेगा। इस बारे में एक सिद्धांत यह बताया जाता हैं कि रेत की सतह के नीचे उठते पानी और सतह के ऊपर बहती तेज हवाओं के साथ के मेल के कारण पत्थर खिसकते है।
जलवायु
मौसम विज्ञानिकों ने डेथ वैली को विश्व के सबसे गर्म स्थान का दर्जा दिखा है। डब्लू एम ओ के पैनल ने यह निष्कर्ष निकाला है। डेथ वैली की गहराई और आकार उसके गर्मियों के तापमान को प्रभावित करते हैं। इसकी तली सबसे नीचे है। यह घाटी समुंद्र तल से 282 फीट (86 मी.) नीचे एक लंबे, संकरे बेसिन के रूप में है, जबकि इसके चारों ओर ऊंची और सीधी खाड़ी पर्वत मौजूद हैं। स्पष्ट, शुष्क हवा और पेड़ पौधों के अभाव के कारण सूरज की गर्मी इसकी रेगिस्तानी सतह को काफी गरम कर देती है। गर्मियों की रात में भी ज्यादा राहत नहीं मिलती हैं क्योंकि रात का तापमान केवल 86 सीमा तक ही गिरता है। इस घाटी के अत्यंत गरम हवा बहती रहती है जिसके कारण तापमान काफी अधिक हो जाता है। इस वैली का तापमान 49 संेटीग्रेड तक पहुॅच जाता है। यहां वर्षा नाम-मात्र की होती है। साल में औसत वर्षा केवल 5 से.मी के लगभग होती है। घाटी में पानी का निशान तक नहीं है। यदि कहीं-कहीं पानी है भी, तो बहुत ही खारा। सारी घाटी में बालू ही बालू है।
जीव जंतु
यद्यपि यह सारी घाटी ही रेगिस्तान है, लेकिन फिर भी यहां खरगोश, गिलहरी, कंगारू, चूहे आदि बहुत से जानवर मिलते हैं। वर्ष 1890 में किए गए एक सर्वे में बताया गया था कि यहां 78 प्रकार के पक्षी भी हैं। टिम्बिश जनजाती के लोग पिछले एक हजार वर्षों में डेथ वैली रह रहे हैं।
इतिहास
डेथ वैली मूल निवासी अमेरिकियो की तिम्बिशा नामक जनजाति का घर है, जिन्हें पूर्व मे पैनामिंट शोशोन कहा जाता था। वे पिछले कम से कम 1000 वर्षं से यहा निवास कर रेह हैं। इस घाटी को तिम्बिशावासी तुंपिसया नाम से पुकारते हैं, जिसका अर्थ है ‘राॅकपेंट (पत्थर का रंग) यह एक लाल गंरुए रंग की तरफ इशारा करता है, जिसे घाटी में पाई जाने वाली एक प्रकार की मिट्टी से बनाया जाती हैं। कुछ परिवार अब भी घाटी के फनेस क्रीक पर निवास करत हैं। एक अन्य गांव स्काॅटीज कैसल के वर्तमान स्थान के निकट गे्रपवाइन कैन्यन में स्थित था, इसे तिम्बिशा भाषा में माहुनू कहा जाता था। जिसका अर्थ है अनिश्चित। हालांकि यह ज्ञात है की हुनू का अर्थ है ‘कैन्यम’। इस घाटी का अंग्रेजी नाम 1849 में कैलिर्फोनिया गोल्ड रस के दौरान पड़ा। सोने के खदानो तक पहुंचने के लिए घाटी को पार करने वाले लोागों द्वारा डेथ वैली (मौत की घाटी) कहा जाता था। 1950 के दशक के दौरान इस घाटी से सोने और चाँदी को प्राप्त किया गया था। 1880 के दशक में बोरेक्स की खोज की गई और खच्चर द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियो पर लादकर उसे निकाला गया।
डेथ वैली को 11 फरवरी, 1933 को राष्ट्रपति हुवर द्वारा राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया और इस क्षेत्र को संघीय सुरक्षा के तहल डाल दिया गया। 1994 में इस स्मारक को डेथ वैली नेशनल पार्क घोषित करने के साथ-साथ इसका काफी अधिक विस्तार किया गया और सेलाईन तथा युरेका घाटियों को भी इसमें शामिल कर लिया गया।