Shahjahanpur ki krantikari jamin

 शाहजहाॅपुर की क्रान्तिकारी जमीं 

                             मोनिका त्यागी 

                          सम्पदा विशेष-प्रतिनिधि, 

                             शाहजहाॅपुर से 

सत्याग्रह आन्दोलन का स्थगित होना कारण बना काकोरी काण्ड का।

आन्दोलन के वापसी से क्षुब्ध उग्र दल ने पकड़ा क्रान्ति का रास्ता। 

केन्द्र बना शाहजहाॅपुर। 

आज शानदार आजादी का पैगाम का परचम जो लहरा रहा है उसमें शामिल है अनगिनत क्रान्तिकारियों की शहादत और बलिदान की दास्ताॅ जो भारत का कण-कण कहता है। इसी पावन स्थलों की श्रॅृखला में प्रस्तुत है हमारी विशेष प्रतिनिधि मोनिका त्यागी की शाहजहाॅपुर से वहाॅ की मिट्टी की दास्तान -सम्पादक 

    क्रान्तिकारियों शचीन्द्र नाथ सान्याल के अनुसार क्रान्तिकारियों ने राष्ट्ीय मुक्ति   संहर्ष को आगे बढ़ाने के लिये उत्प्रेरक की भूमिका निभाई। शाहजहाॅपुर के इतिहास में बहुत से क्रान्तिकारियों ने जन्म लिये और अपनी ऐतिहासिक कृत छोड़ गये। 9 अगस्त 1925 में काकोरी ट्ेन की डकैती भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन में एक विशिष्ट स्थान रखता था। यह सिर्फ ब्रिटिश सरकार पर क्रान्तिकारी और राजनैतिक हमला नहीं था बल्कि 1922 में महात्मा गाॅधी द्वारा अचानक से असहयोग आन्दोलन स्थगित करने के परिणाम स्वरूप उस खालीपन को भरने और युवकों में उत्पन्न निराशा का परिणाम था। असहयोग आन्दोलन की समाप्ति के बाद संयुक्त प्राॅत में क्रान्तिकारी गतिविधियों ने शचीन्द्र नाथ सान्याल के नेतृत्व में पुनः अॅगड़ाई ली। इलाहाबाद में इनकी भेंट देवनारायण भारतीय से हुई और फिर महावीर त्यागी की सहायता से शाहजहाॅपुर में रामप्रसाद बिस्मिल और असफाक उल्ला खाॅ से हुई। ज्ञातव्य हो कि दिसम्बर 1923 में गया में हो रहे काॅग्रेस के अधिवेशन में रामप्रसाद बिस्मिल और असफाक उल्ला खाॅ और प्रेम किशन खन्ना ने भी भाग लिया था। जुलाई 1923 में योगेश चन्द्र चटर्जी ढाका अनुशीलन समिति के प्रतिनिधि के रूप में संयुक्त प्राॅन्त में आये। क्रान्तिकारी दल को सक्रिय करने के लिये उन्होंने प्राॅन्त के अनेक नगरों में भ्रमण किया। 1924 में कई बार शाहजहाॅपुर आये। बिस्मिल के माध्यम योगेश दा असफाक उल्ला खाॅ, रोशन सिंह, प्रेम किशन खन्ना के सम्पर्क में आये और यहीं से काकोरी ट्ेन डकैती के भूमिका का श्रीगणेश हुआ। हालाॅकि डकैती डालना असामाजिक और अवैधानिक कार्य था परन्तु दल के अन्तिम लक्ष्य को देखते हुए बस प्रकार के कार्य गम्भीर नहीं थे। ये क्रान्तिकारी, देश की स्वतन्त्रता के लिये संघर्ष का कार्य कर रहे थे और इसके लिये उनके पास साधनों का अभाव था। अतः डकैती डालने का निर्णय उन्हें मजबूरी में लेना पड़ा था। शहजहाॅपुर के क्रान्तिकारियों ने काकोरी ट्ेन उकैती के पूर्व कई डकैतियाॅ डाली थीं, जैसे-23 जून 1918 को हरदोई के थाना शहाबाद के परेली में एक विधवा ब्राहमणी के घर डकैती डाले। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार डकैती में 10,000 रूपये लूटे गये। इस डकैती में बिस्मिल के अतिरिक्त राजराम भारती, गया सिंह चन्देल भी शामिल थे। 


     संडाखेरा तिलहर थाना निगोही में जून 1918 में ग्राम प्रमुख के घर डाका डालने के उद्देश्य से गये परन्तु ग्रामवासी सतर्क हो गये और खाली हाथ आना पड़ा। 

      ढकिया, हमीदनगर, पुवायाॅ, शाहजहाॅपुर में29 ाितम्बर 1918 में डकैती डाली गयी जो विफल रही। 

    क्रान्तिकारियों ने गा्रम बमरौली पीलीभीत में 25 सितम्बर 1924 को बलदेव प्रसाद के मकान पर डकैती डाली जिसमें 600 रूपया नगद और 4000 के गहने इन्हें मिले।      

     क्रान्तिकारियों ने गा्रम बिचपुरी पीलीभीत में 9 मार्च 1925 को टोटी नामक सेठ के मकान पर डकैती डाली। 

     काकोरी ट्ेन डकैती-

     9 अगस्त 1925 की शाम को दस क्रान्तिकारी 8 डाउन यात्री गाड़ी में शाहजहाॅपुर स्टेशन से सवार हुए। गिनती में ये दस फौलादी इरादों के साथ आगे बढ़ रहे थे। दल का नेतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल कर रहे थे। इनके अलावा दल के अन्य सदस्यों में राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, असफाक उल्ला खाॅ, मन्मथ नाथ गुप्त, चन्द्र शेखर आजाद, बनवारी लाल, मुकन्दी लाल, मुरारी लाल, केशव चक्रवर्ती, शचीन्द्र नाथ बख्शी थे। योजना के अनुसार तीन लोग राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, असफाक उल्ला खाॅ और शचीन्द्र नाथ बख्शी द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में सवार हुए। इनका काम था निश्चित जगह पर जंजीर खींच कर गाड़ी रोकेगें। इस टुकड़ी का नेतृत्व असफाक उल्ला खाॅ कर रहे थे। जब ट्ेन काकोरी स्टेशन से लखनऊ की ओर जाने लगी तो लगभग एक मील आगे द्वितीय श्रेणी में मौजूद क्रान्तिकारियों ने जंजीर खींच दी और ट्ेन रुक गयी। ट्ेन के रुकते ही गार्ड उतरकर जिस डिब्बे से जंजीर खीची गयी थी उस डिब्बे का पता करते हुये आगे बढ़ा। क्रान्तिकारी भी तत्काल बाहर आ गये और उन्होंने एक हवाई फायर करते हुये तत्काल यात्रियों को अपने डिब्बे में वापस चले जाने को कहा, साथ ही ये घोषणा की गयी कि किसी को कोई हानि पहुॅचाने का इरादा इनका नहीं है। ये केवल सरकारी सम्पत्ति को लूटना चाहते हैं। क्रान्तिकारियों के लिये ये आदेश था कि किसी भी व्यक्ति पर गोली न चलायें। केवल रुक-रुक कर हवाई फायर करते रहें। फिर भी हरदोई का एक व्यक्ति अमजद अली अपनी मूर्खता के कारण मारा गया। दल के अन्य सदस्य गार्ड के डिब्बे में चढ़ गये और उसमें रखा सन्दूक उतार लिये। जिस समय असफाक उल्ला खाॅ सन्दूक तोड़ रहे थे उसी समय दूसरी लाईन पर एक और ट्ेन तेजी से आ रही थी। क्रान्तिकारियों को शंका हुई कि कहीं गाड़ी यहाॅ रुक गयी तो क्या होगा, पर ट्ेन तेजी से निकल गयी। दस मिनट के अन्दर ही सन्दूक तोड़कर उसमें से सब थैले निकाल कर पोटलियाॅ बना ली गयीं। इसके बाद सारा पैसा लेकर वे चैक के तरफ से लखनऊ में प्रवेश कर गये। इस क्षेत्र में वेश्याओं का मुहल्ला होने के कारण यहाॅ रात भर चहल पहल रहती थी। यहाॅ किसी के सन्देह होने की सम्भावना नहीं थी। इस रेलवे डकैती के सफलता पर राम प्रसाद बिस्मिल ने लिखा है,‘‘साधारणतयाः बहुत से लोग इस बात पर विश्वास करने में भी संकोच करेगें दस नवयुवको ने गाड़ी खड़ी कर अंग्रेजी सम्पत्ति को लूट लिया।’’

       ब्रिटिश सरकार पूरी तरह आश्वस्त थी कि रेल डकैती क्रान्तिकारियों का कार्य है क्योंकि डकैती का राजनैतिक उद्देश्य स्पष्ट हो चुका था। सरकार ने डकैती में शामिल किसी भी अभियुक्त को पकड़ने में मदद करने वाले को 5000 रूपये ईनाम देने की घोषणा कर दी। लखनऊ में गोविन्द चरणकर को गिरफतार किया गया तो उनके कमरे से पार्टी के संविधान का पीला कागज प्राप्त हुआ। 26 सितम्बर 1925 को ऐ साथ संदिग्ध लोगों के घर छापे डाले गये। मन्मथ नाथ गुप्त को बनारस में गिरफतार किया गया। उनके मकान की तलाशी में दि रिवोलयुशनरी पर्चे के टाईप अंश मिले। राम प्रसाद बिस्मिल को उनके निवास स्थान से गिरफतार किया गया। उसी दिन प्रेम किशन खन्ना, इन्द्र भूषण मित्र, हरगोविन्द और बनारसी लाल को पकड़ लिया गया। ठाकुर रोशन सिंह भी पुलिस की पकड़ में आ गये। कानपुर में काॅग्रेस कार्यालय सहित क्रान्तिकारी वीरभद्र तिवारी और प्रताप समाचार पत्र के सहायक सम्पादक सुरेश चन्द्र भट्टाचार्या के यहाॅ छापे मारे गये। राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के यहाॅ छापे मारे गये पर ये बम बनाने की ट्ेनिंग करानेे कलकत्ते चले गये थे। राजकुमार सिन्हा को गिरफतार किया गया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के जिस कमरे में वो रहते थे उस कमरे की तलाशी में दो राईफलें पकड़ी गयीं। राम कृष्ण खत्री पूना में पकड़े गये। भूपेन्द्र नाथ सान्याल इलाहाबाद में पकड़े गये। शचीन्द्र विश्वास को लखनऊ में, विष्णु शरण को मेरठ में, शिव चरण लाल को मथुरा में, बनवारी लाल को रायबरेली में, मुकुन्दी लाल को बनारस में, असफाक उल्ला खाॅ को दिल्ली से गिरफतार किया गया। कुन्दन लाल और चन्द्र शेखर आजाद को फरार घोषित किया गया। 

    इस प्रकार कुल गिरफतारियाॅ तो हुयीं उनमें शाहजहाॅपुर से, ‘‘राम प्रसाद बिस्मिल, बनारसी लाल, प्रेम किशन खन्ना, असफाक उल्ला खाॅ, लाला हरगोविन्द, इन्द्र भूषण मित्र, ठाकुर रोशन सिंह’’, कानपुर से ‘‘बीरभद्र तिवारी, रामदुलारे त्रिवेदी, गोपी मोहन, राजकुमार सिन्हा,  सुरेश चन्द्र भट्टाचार्या’’, इलाहाबाद से, ‘‘शीतला सहाय, भूपेन्द्र नाथ सान्याल, ज्योति शंकर दीक्षित’’, बनारस से, ‘‘दामोदर स्वरूप सेठ, मन्मथ नाथ गुप्त, इन्द्र विक्रम सिंह, मुकन्दी लाल, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, शचीन्द्र नाथ बख्शी, रामनाथ पाण्डेय, डीडी भट्टाचार्या’’ आगरा से, ‘‘चन्द्रधर जौहरी, शिव चरण लाल शर्मा, चन्द्र भाल जौहरी’’ एटा से, ‘‘बाबूराम वर्मा’’ लखनऊ से, ‘‘हरनाम सुन्दर लाल, शचीन्द्र नाथ विश्वास, गोविन्द चरणकर’’ लाहौर से, ‘‘मोहन लाल गौतम’’, बंगाल से, ‘‘शरद चन्द, कालिदास बोष’’ मेरठ से, ‘‘विष्णु चरण दुबलिस’’, पूना से ‘‘राम कृष्ण खत्री’’, रायबरेली से ‘‘बनवारी लाल‘‘, कलकत्ता से, ‘‘योगेश चन्द्र चटर्जी’’ पकड़े गये। 

    जेल पहुॅचते ही गुप्तचर विभाग ने ऐसी व्यवस्था की कि सब अभियुक्त एक दूसरे से अलग रखे जाॅय। पुलिस सरकारी गवाह बनाने की जी तोड़ प्रयत्न कर रही थी और अन्त में अपने हथकण्डे में सफल हो गयी। शाहजहाॅपुर से बनारसी लाल और इन्द्र भूषण मित्र गिरफतार होते ही सरकारी गवाह बन गये। शचीन्द्र नाथ सान्याल जो देशद्रोह के अपराध के कारण दो साल के लिए जेल में थे, उन्हें बंगाल से मुकद्दमे के लिये लखनऊ लाया गया। इसी प्रकार राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को बंगाल की जेल से लखनऊ लाया गया। यह केश सरकारी अभिलेखों के अनुसार काकोरी केस किंग बनाम रामप्रसाद बिस्मिल के नाम से जाना जाता है। इस केस में चार क्रान्तिकारियों को 19 दिसम्बर 1927 को फाॅसी देने का फैसला आया लेकिन ये अफवाह फैल गया कि 18 दिसम्बर को गोंडा जेल से राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी के भगा ले जाने का प्रोग्राम है इस कारण इन्हें 17 दिसम्बर 1927 को गोंडा जेल में फाॅसी दे दी गयी। 19 दिसम्बर 1927 को सुबह गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल को फाॅसी दे दी गयी। फाॅसी देते समय इनके हाथ में गीता और होंठों पर वन्देमातरम् था।  19 दिसम्बर 1927 को ही सुबह फैजाबाद जेल में असफाक उल्ला खाॅ को फाॅसी दे दी गयी। फाॅसी पर जाते समय इनके हाथ में कुरानेपाक का बस्ता था और होंठों हाजियों की तरह आयत पढ़ते हुये ये फाॅसी पर  चढ़ गये। 19 दिसम्बर 1927 को सुबह इलाहाबाद जेल में ठाकुर रोशन सिंह को फाॅसी दे दी गयी। फाॅसी देते समय इनके हाथ में गीता और होंठों पर ओम् वन्देमातरम् था। 

      ‘‘मालिक तेरी रजा रहे, तूॅ ही तूॅ रहे, 

       बाकी न मैं रहूॅ, न मेरी आरजू रहे, 

       जब तक जाॅ में जाॅ लहू में लहू रहे, 

       तेरा ही जिक्र हो या तेरी जुस्तजू रहे।’’ -राम प्रसाद बिस्मिल


      ‘‘तंग आकर हम भी उनके जुल्म के बेदाद से, 

       चल दिए सू-ए अदम् जिन्दाने फैजाबाद से।’’ - असफाक उल्ला खाॅ

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