बाल कृष्ण शर्मा 'नवीन'

#जन्मदिन
#हो_जाने-दे गर्क नशे में 
          आज से एक सौ बीस साल पहले 8 दिसम्बर 1897 में ग्वालियर के समीप सुजालपुर गाँव में स्वर्गीय पंडित बाल कृष्ण शर्मा का जन्म हुआ था .पिता वैष्णव धर्म में दीक्षित थे और भक्त इतने थे कि गांव छोड़ कर नाथद्वारा में आकर सपरिवार रहने लगे थे .माता  बालक    "बालकृष्ण" की शिक्षा अच्छै से हो जाए इसलिए ग्वालियर राज के शाजापुर में पढ़ाने के लिए ले आयी.
           उनकी रुचि न तो भक्ति में थी और न पढ़ाई में .होना कुछ और ही था.कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन के बारे में सुना सो देखने चले गए.
              अन्य लोगों के अलावा इनकी भेंट विद्यार्थी जी से हुई .उनका इतना प्रभाव पड़ा कि पडाई छोड़ कर उनके साथ ही काम करने लगे कानपुर में ही रह कर.
स्वतंत्रता का आन्दोलन आरम्भ था ही .,उसमें भाग लेने के कारण दिसम्बर 21मे जेल चले गए और 23 में बाहर आए.
         वे उस कालखण्ड के नौजवान थे जब नौजवानों में भारत को आजाद कराने के लिए कुछ भी करने का अदम्य उत्साह था चाहे जेल जाना हो चाहे फांसी के फन्दे पर झूलना हो ,लक्ष्य एक ही था मूल्य कुछ भी चुकाना पड़े .अनकों बार जेल गए और दो बार छह-छह साल की कारा का दण्ड भी मिला.
       उस समय कांग्रेस के साथ जो लोग थे और जिन्होंने आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान किया ,आजादी मिलने पर वे लोग आजाद भारत के निर्माण में पूरी तरह जुट गए  .आजाद भारत के पहले सामान्य चुनावों मे पण्डित बालकृष्ण शर्मा " नवीन " जी कानपुर से लोक सभा के सदस्य निर्वाचित हुए .57 के बाद आजीवन राज्य सभा के सदस्य रहे.
         "कुंकुम "से लेकर "हम विषपायी जनम के" तक अनेक काव्य -संग्रह प्रकाशित हुए.कानपुर से प्रकाशित "प्रभा "और "प्रभात " के प्रकाशन और संचालन में "नवीन" जी ने विद्यार्थी जी का सहयोग बड़े मनोयोग से किया .इन दोनों समाचर पत्रों को विद्यार्थी जी ने आरम्भ किया था .यह दोनों देश की आजादी के संघर्ष के वैचारिक ध्वज वाही थे.
        सन् 1934 में प्रसूत "उर्मिला" का प्रकाशन सन् 1957में हुआ . 600  पृष्ठों के इस प्रबन्ध काव्य के सर्जन में  बारह वर्ष  का समय लगा था. इस काव्य के माध्यम से "नवीन" जी ने उर्मिला का चरित्र कुछ इस तरह प्रस्तुत किया है कि वह भारतीय संस्कृति के गौरव की प्रतीक बन गयी है. 'मानस ' या 'साकेत' की उर्मिला से भिन्न उर्मिला है नवीन जी की।
इनका लक्ष्य था आजादी और केवल आजादी, सो उर्मिला (काव्य -संग्रह ) के कधानक को तत्कालीन परिवेश से जोड़ने का अत्यन्त अद्भुत सःयोजन किया है 'नवीन' जी ने. 
      इनकी रचनाओं में एक ओर राष्ट्रीयता शंखनाद कर रही हैं तो दूसरी ओर प्रणय की बांसुरी से निजता के संगीत का  घनीभूत स्वरों में प्रवाह हो रहा है.
          देश की स्वाधीनता के लिए जो लम्बी साधना की , उसकी अभिव्यक्ति इनकी राष्ट्रीय सांस्कृतिक कविता में ध्वनित हुई . भारतीय संस्कृति और इतिहास के गौरव का गान इनके काव्य में सहज निश्छल भाव से अभिव्यक्त हुआ है. सामाजिक वेदना की अभिव्यक्ति के साथ सुंदर भविष्य के निर्माण के लिए प्रयास है इनके काव्य में  .  एक बानिगी -
            कोटि कोटि कण्ठो  से निकली
                              आज यही स्वर - धारा है ,
            भारतवर्ष हमारा है , यह 
                              यह  हिन्दुस्तान  हमारा है।
            ×××××     ×××××     ×÷××× 
            जिस  दिन  नभ  में  तारे  छिटके
                               जिस दिन सूरज चांद बने ,
            तब से है यह देश हमारा,
                                  यह अभिमान हमारा है।
     राष्ट्रीय सांस्कृतिक कविता के इतर इनकी कविता का  एक और संसार है जो बिलकुल निजी है और निजी अनुभूतियों का संसार है .इस पक्ष की भी बानिगी देख लेते हैं -
  यों भुज भर कर हिए लगाना है क्या कोई पाप?
     या अधखुले दृगों का चुम्बन है क्या पाप कलाप?
         कुंतल  से क्रीड़ा  करना भी  है  क्या  कोई दोष?
           देवि  बताओ  तो  इसमें  है कहां  पाप  संताप?

   फक्कडपन और मस्ती की अभिव्यक्ति करते दिखते हैं तो कहीं  नशे में गर्क हो जाने की अभिव्यक्ति करते दिखते हैं -
हो जाने दे गर्क नशे में 
    मत पड़ने दे फर्क नशे में ।
 पाप पुण्य के भेद और अभेद की अभिव्यक्ति पर दृष्टि डालें तो लगता है "चित्रलेखा" की पूर्व पीठिका ,इनके काव्य मेंउपस्थित थी .मुझे यह कहने में भी संकोच नहीं कि "मधुशाला " के बीज भी यही उठते दिखते हैं.भगवती चरण वर्मा की आरम्भिक रचनाएँ "प्रताप"में ही प्रकाशित हुई थी.
      "नवीन " जी की रचनाओं में भावों का निर्बाध प्रवाह है .उन्होंने भाषा को ज्यादा महत्व नहीं दि या यों कहें कि कलात्मक परिष्कृत के लिए उनके पास समय ही नहीं था.वे तो स्वतंत्रता आन्दोलन के महायज्ञ में घ्रत्याहुतियां अर्पित कर ज्वाला को ज्वालामुखी बनाने में व्यस्त थे या कहूँ कि अस्त व्यस्त थे।हिन्दी का कोई दूसरा कवि स्वातंत्र्य क्रांति की ज्वाल में दैहिकता के स्तर पर इतना दग्ध हुआ हो मुझ अल्पज्ञ की ज्ञान में नहीं है.
        आज ही की तिथि को वे अवतरित हए थे .हमें गर्व है कि हमारे नायक थे कि वे हमारे पथ प्रदर्शक थे कि वे हमारे पूर्वज थे.
                        उनके चरणयुग्म पर माथा टेक कर विनीत श्रृद्धांजलि देकर हमें गौरव है।
          नमन शत -शत।
                                            वीके सिंह  यदुवंशी
                                      तिथि : 8 दिसम्बर 2023

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