Firaq Grakhpuri

रह-रह कर सिगरेट के कश भरना, चुटकी बजाकर राख को झाडऩा, बीच-बीच में बड़ी-बड़ी चमकती आंखें फैलाकर अपने तर्क की मजबूती से सामने वाले को निरुत्तर कर देना। मुशायरों और अदबी आयोजनों में अनूठे अंदाज में शिरकत से कभी दार्शनिक दिखना तो कभी खालिस शायर। कहने की जरूरत नहीं कि हम उर्दू अदब की दुनिया के उस अजीम शख्सियत की बात कर रहे हैं, जिसका नाम फिराक गोरखपुरी था। 
               फिराक का यह अनूठा अंदाज गोरखपुर की फिजाओं में आज भी मौजूद है। तभी तो उनकी चर्चा से उस दौर के लोगों की आंखें चमक जाती हैं, जिन्होंने उन्हें देखा और महसूस किया है। चर्चा छिड़ते ही वह खो जाते हैं उन संस्मरणों में, जो महज संस्मरण नहीं बल्कि दस्तावेज हैं फिराक की शख्सियत के।

फिराक तबीयत से बागी जरूर थे मगर उनका एक पक्ष जिंदादिली और नेकदिली भी था, जिसकी झलक उनकी शायरी में कोई भी आसानी से महसूस कर सकता है। वह उर्दू शायरी के ऐसे अजीम शायर के रूप में मशहूर हुए, जिन्होंने उर्दू की रवायती अदब में बिना छेड़छाड़ किए नए लहजे की शायरी की अनूठी मिसाल पेश की। खुद को लेकर फिराक का आत्मविश्वास किस कदर था, उसे उनके ही एक शेर से समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है- 'आने वाली नस्लें तुम पर फख्र करेंगी हमअसरों, जब उनको मालूम ये होगा तुमने फिराक को देखा है'।

फिराक के निकट सहयोगी रहे शायर जमीर अहमद पयाम लाहौर से निकलने वाले अखबार 'इमरोजÓ के संपादक अहमद नदीम कासमी के हवाले से बताते हैं कि लायलपुर कॉटन मिल, पाकिस्तान में आयोजित एक मुशायरे में फिराक भी आमंत्रित थे। उन दिनों अली सरदार जाफरी के साथ फैज अहमद फैज ने पत्र-पत्रिकाओं में कुछ ऐसे बयान दे डाले थे जिसपर फिराक खफा थे। नदीम के अनुसार शेरवानी के बटन खोले फिराक उनके अखबार के दफ्तर में धड़धड़ाते हुए पहुंच गए। नदीम ने बड़े अदब से जब उनके सामने चाय की पेशकश की तो उन्होंने गुस्से से बोला पहले फैज को बुलाओ। फैज आए तो फिराक ने उनसे पूछा कि मेरे मजमून में कौन सी गलती हो गई कि नुक्ताचीनी कर बैठे। इस पर फैज ने तत्काल माफी मांगकर सरेंडर कर दिया। फिराक का गुस्सा ठंडा हो गया और नदीम से बोले अब चाय मंगा सकते हो, फैज ने हथियार डाल दिए हैं। बाद में जब नदीम ने फैज से पूछा कि आपने इतनी जल्दी हथियार क्यों डाल दिया तो वह बोले- आप नहीं जानते नदीम साहेब, यह शख्स अदब की बला है बला। उसने उर्दू, फारसी, ङ्क्षहदी और अंग्रेजी को घोलकर पी रखा है। हार हमारी ही होती, सो सरेंडर करने में ही भलाई थी।

ठुकरा दिया राज्यसभा सदस्य बनने का प्रस्ताव

पयाम बताते हैं कि इंदिरा गांधी फिराक गोरखपुरी को राज्यसभा का सदस्य बनाना चाहती थीं। एक बार लालकिले पर होने वाले मुशायरे में भाग लेने के लिए फिराक दिल्ली गए हुए थे तो इंदिरा जी ने अपने आवास पर बुलाकर उनके सामने यह प्रस्ताव रखा। फिराक ने यह कहकर अनुरोध ठुकरा दिया कि मोती लाल नेहरू के जमाने से उनके आनंद भवन से गहरे रिश्ते रहे हैं। आपका जो स्नेह मिला है, वह मेरे लिए एक नहीं सौ बार राज्यसभा सदस्य बनने के बराबर है।

फिराक की अनमोल कृतियां

गुल-ए-नगमा, बज्मे जिंदगी, रंगे शायरी, मशअल, रूहे कायनात, नगमा-ए-साज, गजलिस्तान, शेरिस्तान, शबनमिस्तान, रूप, धरती की करवट, गुलबाग, रम्ज व कायनात, चिरागा, शोअला व साज, हजार दास्तान, हिंडोला, जुगनू, नकूश, आधीरात, परछाइयां और तराना-ए-इश्क, सत्यम शिवम सुंदरम। इसके अलावा फिराक ने एक उपन्यास 'साधु और कुटियाÓ तथा कई कहानियां भी लिखीं।

फिराक को मिले ये सम्मान

साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में सन् 1968 में पद्मभूषण

'गुल-ए-नगमाÓ के लिए साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ और सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार

1970 में साहित्य अकादमी के सदस्य भी नामित हुए।

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