इंदौर के मंडलोई जी ने बनाई थी रानी रूपमती फ़िल्म
✍️ जावेद शाह खजराना (लेखक)
वैसे तो हमारे इंदौर में फिल्मों की शुटिंग की इब्तिदा सन 1950 में भारत की पहली टेक्नीकलर फ़िल्म 'आन' से हो चुकी थी। बाद में भी कई सुपर हिट फिल्मों की शूटिंग यहाँ हुई। किस्मत की बात है कि इंदौर और आसपास फिल्माई गई सभी फिल्मों ने गौरवशाली इतिहास रचा है।
इंदौर और खजराना में 'आन' की शूटिंग के बाद देवास के शाजापुर में श्री 420 और भोपाल के बुधनी में नयादौर की शूटिंग हुई। ये सभी बेहद कामयाब फ़िल्में थी।
ऐसे में इंदौर के प्रोड्यूसर कैसे खामोश बैठते?
रानी रूपमती के गढ़ निमाड़ अंचल से ताल्लुक़ रखने वाले मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मरहूम श्री भगवंतराव मंडलोई साहब के परिवार से जुड़े इंदौर निवासी जनाब आर0एन0 मंडलोईजी ने सन पचास के दौर में सती नागकन्या, महासती सावित्री, राम -हनुमान युद्ध से लेकर जय गणेश तक आधा दर्जन धार्मिक ऐतिहासिक फि़ल्में बनाईं थी लिहाज़ा उन्होंने अपने इलाके की मशहूर प्रेमकथा को पर्दे पर साकार करने का इरादा किया।
जी हाँ दोस्तों 1957 की सुपरहिट फिल्म रानी रूपमती के प्रोड्यूसर आर0एन0मंडलोई इंदौर से है। इसी सन में
इनके रिश्तेदार भगवंत राव मंडलोई मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे।
1955-56 में मांडव में फिल्माई गई ऐतिहासिक फ़िल्म 'रानी रूपमती' के निर्माता इंदौर के तत्कालीन एसडीएम और बाद में राजगढ़ के कलेक्टर रहे नीरज मंडलोई जी के काका साहब लगते हैं। जनाब आर0एन0 मंडलोई साहब इंदौर में ही गीता भवन इलाके के एक अपार्टमेंट में रहते हैं।
एस. एन त्रिपाठी ही मंडलोई साहब की इन सभी फिल्मों के निर्देशक और संगीतकार भी रहे।
जय गणेश का निर्देशन स्वयं मंडलोई साहब ने किया।
अस्सी से नब्बे के दशक से जिन्हें हमारी पीढ़ी ने ममतामयी माँ और सभ्य सासू माँ की भूमिका में सैकड़ों हिंदी फिल्मों में देखा उन निरुपा राय से मंडलोई साहब के घर की सदस्य की तरह रिश्ते रहे..
इंदौर स्थित उनके घर के हर एक शादी ब्याह में निरुपाजी शामिल होती रहीं। रानी रूपमती फिल्म की मांडवगढ़ के अलावा राजगढ़ जिले के सारंगपुर और शाजापुर जिले के शुजालपुर में भी शूटिंग हुई थी।
हमारे गौरवशाली इतिहास को लेकर पचास साल पहले या उसके बाद पैदा हुए लोग आज चाहे लाख कंफ्यूज हों कि क्या करें, क्या न करें, किसे नेता बनायें, किसे नहीं, जिसे बना दिया उसकी सुने या उसका विरोध करते रहें यानी हमारे देश के मौजूदा हालात डांवाडोल जरूर है,
लेकिन अतीत तो खासा समृद्ध ही रहा है।
ऐसे ही बेशुमार दिलकश और यादगार किस्सों से लबरेज़ हैं हमारे मालवा का इलाका। इंदौर से महज 100 किलोमीटर दूर मांडव हिंदू-मुस्लिम तहज़ीब का मरकज़ रहा है जहां हिंदू रानी रूपमती और मुस्लिम राजा बाज बहादूर की पाक मोहब्बत और अदब की कहानियाँ आज भी घर-घर में सुनाई जाती है।
मांडव के सुल्तान बाज बहादूर और धरमपुरी की सुंदरी रूपमती की पाक मोहब्बत की कहानी को लेकर सन 1957 में सुपरहिट फिल्म बन चुकी है। इस फ़िल्म से निरूपा राय रातों-रात स्टार बन गई थी।
लेकिन पहचान मिली रानी रूपमती से, जो लोगों के जेहन में आज भी जिंदा है।
फिल्म रानी रूपमति का गीत भी रोज ही यहां आने वाले पर्यटकों को सुनाया जाता है।
'आ लौट के आजा मेरे मीत...।
इसके गाने आज भी लोगों को सुकून देते हैं। सबसे ज्यादा चर्चित गाना आ अब लौट के आजा मेरे मीत काफी चर्चित रहा और लोगों ने सुकून का अहसास किया।
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