ऐसे 'पंजाब की आवाज' बनी लोक गायिका सुरिंदर कौर, छह दशक के करियर में गाए 2000 से ज्यादा गाने
भारतीय इतिहास की वह सिंगर जिन्हें ‘पंजाब की आवाज’ और ‘पंजाब की कोयल’ जैसे नामों से बुलाया जाता था, और कोई नहीं सुरिंदर कौर थी। सुरेंद्र कौर को बचपन से ही संगीत का शौक था, लेकिन उनके घर वालों ने उन्हें इजाज़त नहीं दी। उन्होंने बहुत मुश्किल से अपने घर वालों को मना लिया, फिर मास्टर इनायत हुसैन और मास्टर पंडित मणि प्रसाद से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने शुरु कर दी थी। संगीत की शिक्षा पूरी होने के बाद सुरिंदर कौर ने पहली बार साल 1943 में लाहौर रेडियो के लिए ऑडिशन दिया था। जहां उनका एक गाना 'मावां ते धीयां रल बैठियां' काफी पॉपुलर हुआ था। इस गाने ने सुरिंदर को रातों-रात स्टार बना दिया था। फिर 1947 में विभाजन के बाद सुरिंदर का परिवार दिल्ली आकर रहने लगा था और बाद में वे लोग मुंबई जाकर बस गए थे। यहां सुरिंदर कौर ने फिल्म इंडस्ट्री में बतौर प्लेबैक सिंगर काम करना शुरू किया।
फिर कुछ समय बाद सुरिंदर की शादी जोगिंदर सिंह सोढ़ी से हुई जो यूनिवर्सिटी में साहित्य के प्रोफेसर थे। पति ने सुरिंदर का साथ दिया और दोनों ने मिलकर ‘चन कित्था गुजारी एई रात वे’, ‘लठ्ठे दी चादर’, ‘शौंकण मेले दी’ ‘गोरी दिया झांझरां’ और ‘सड़के-सड़के जांदिये मुटियारे नी’ जैसे कई सुपरहिट गाने लिखे। अपने 6 दशक से ज्यादा के समय में सुरिंदर कौर ने 2000 से भी ज्यादा गाने गाए। साल 2006 में भारत सरकार ने सुरिंदर को चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘पद्मश्री‘ से भी सम्मानित किया था। लेकिन फिर 77 साल की उमर में बीमारी के कारण उनका निधन हो गया और उनकी सुरीली सी मनमोहक आवाज़ हमेशा के लिए शांत हो गई।