‘ई कइसन ठाट बनवले बाड़, ए मोती...’
- डॉ. देवेन्द्र
आज भोजपुरी साहित्य के 'मोती', श्रद्धेय मोती बी.ए. जी के 104वीं जयंती ह। मोती बी.ए. जी के जनम देवरिया जनपद के बरेजी गांव में भइल रहे। पढ़ाई- लिखाई काशी हिंदू विश्वविद्यालय से भइल। आ बनारस में जवन साहित्यिक माहौल मिलल ऊ 'पत्रकार' मोती बी.ए. के भारतीय सिनेमा में भोजपुरी के प्रवेश करावे वाला पहिला गीतकार बनावे में मदद कइल। मोती बी.ए. जी के पहचान खाली पत्रकारिता, गीतकार, साहित्यकार तक सीमित कइल उहां के साथे अन्याय होई। ऊहाँ के व्यक्तित्व के विशालता, व्यापकता के कवनो सीमा नइखे। एगो सुयोग्य शिक्षक, अनुवादक, निबंधकार, अभिनेता, किसान के रूप भी एही में समाहित बा। ऊहाँ के एगो मुक्तक बा-
‘ई कइसन ठाट बनवले बाड़, ए मोती
कवन रोजगार उठवले बाड़, ए मोती
बिद्ध करवा के सजी देंहि उहो हँसि हँसि के-
उनके अंगे जो लगवले बाड़, ए मोती’
आज़ादी के लड़ाई, अंगड़ाई ले रहे। अंग्रेजन के खिलाफ़ पूरे देश में माहौल गरम रहे। ओही दौर में मोती जी भोजपुरी भाषा में क्रांतिकारी गीत रच के आपन आपन भूमिका निभावत रहीं-
‘भोजपुरियन के हे भइया का समझेला
खुलि के आवा अखाड़ा लड़ा दिहे स
तोहरी चरखा पढ़वले में का धईल बा
तोहके सगरी पहाड़ा पढ़ा दिहे स’
अइसन क्रांतिकारी गतिविधियन के कई बार अंग्रेज़ी सरकार मोती जी के गिरफ़्तार कइलस। जेल भेजलस।
मोती बी.ए. होखे के मतलब मोटा-मोटी इहे समझीं कि ऊहाँ के एगो व्यक्ति ना अपने आप संस्थान रहनी। ऊहां मंच के शायद पहिला कवि होखब, जेकरा गीत पऽ पीछे बइठल लोग कोरस करत होखे। सिनेमा आ आकाशवाणी में भोजपुरी के दर्ज करावे में ऊहाँ के अहम भूमिका रहल बा।
ऊहाँ के गीत कब लोकगीत बन के रच में बस गइलें, इ आजो लोग के पता नइखे।
तुलसी विवाह आ मोती बी.ए. जी के गीत एक दूसरे के पूरक बन गइले। जइसे आजु शारदा सिन्हा जी के गीत आ छठ पर्व एक दूसरे में रच-बस गइल बा।
ऊहाँ के एगो उस्ताद के रूप में काव्य सृजन खातिर नया कवियन जइसे दूधनाथ शर्मा, श्याम, विचित्रजी, कवि समोसा, कवि अनुरागी, कवि भालचंद्र जइसन लोग के तैयार कइनी।
करीब साढे़ छव दशक के अपना साहित्यिक यात्रा में ऊहाँ के 80 से ऊपर फिल्म में सैकड़ों गीत लिखनी, हिंदी में 20, भोजपुरी में 8, अंग्रेज़ी में 3 आ उर्दू में 3 पुस्तक लिखनी।
सैकड़ों कवि सम्मेलन में अपना जौहर देखवनी। जानकार लोग तऽ इंहा तक कहेला कि कलकत्ता के कवि सम्मेलन में ऊहाँ के ऊपर मोहर लुटावल गइल रहे। मेघदूत जइसन महाकाव्य के भोजपुरी में अनुदित करनी, लिंकन नाटक के भोजपुरी में अनुवाद कइनी। ओहिजे जापानी हाइकू, अंग्रेज़ी के सॉनेट से भोजपुरी के पहिला संवाद करावे आ भोजपुरी में ओह के शामिल करे के पहिला प्रयास ऊंहे के रहे।
ऊहाँ के एगो गीत ‘महुआबारी’ खूबे मशहूर भइल रहे। मोती बी.ए. जी जवना मंच पऽ काव्य पाठ ख़ातिर जायीं, ओहिजा अनिवार्य रूप से एह ‘महुआबारी’ के पाठ होखे। श्रोता से ले के मंच पर बइठल कवि लोग के भी इहे डिमांड रहे। मोती बी.ए. जी के साथे कई मंच पर मौजूद रहल कवि लोग एह बात के तस्दीक़ करेला।
जुगानी भाई से ले के, द्विवेदी जी, आचार्य मुकेश जी से हम कई बेर एह ‘महुआबारी’ के प्रशंसा सुनलें बानी। उनकर लिखल गीत ‘असो आइल महुआ बारी में बहार सजनी´ आ `सेमर के फूल´ जनमानस में खूबे लोकप्रिय भइल रहे। समूचा पूर्वांचल में लोक कलाकार, एह गीतन के आदर के साथे गवलें। ‘महुआबारी’ भोजपुरी के कालजयी रचना ह।
'महुआबारी' मानव जीवन के एगो आदर्श रूपक बा-
असों आइल महुआ बारी में बहार, सजनी।
कोंचवाँ मातल भुइयां छूवे,
महुआ रसे रसे चूवे,
जब से बहे भिनुसारे के– बयारि, सजनी ।
असों आइल महुआ बारी में…
पहिले हरकां पछुआ बहलि- झारि गिरवलसि पतवा,
गहना-बीखो छोरि के मुंड़वलसि सगरे मँथवा,
महुआ कुछू नाहीं कहले- जइसन परल, ओइसन सहलें,
तबले झांके लागल पुरुवा दुआरि, सजनी ।
असो आइल महुआ बारी में…
एइसन नसा झोंकलिस कि गदाये लागल पुलुई,
पोरे-पोरे मधू से- भराये लागल से कुरुई,
महुआ एइसन ले रेंगरइलें, जरी पुलुई ले कोंचइलें,
लागल डाढ़ी-डाढ़ी, डोलिया कहांर, सजनी
असो आइल महुआ बारी में…
गड्डी लागल रब्बी के- लदाइल खरीहनवाँ,
दंबरी खातिर ढहले बाड़े डंठवा, किसनवा।
रंस के मातल महुआ डोले, फुलवा खिरकी से मुँह खोले, घरवां छोड़े के हो गइलिया तयार, सजनी
असो आइल महुआ बारी में…
होत मुन्हारे डलिया-दउरी लेके, गइली सखियाँ
लोढ़े लगली फुलवा जुड़ावे लगली अँखियाँ
महुआ टप-टप फूल चुवावें, लड़के सेल्हा ले ले धावें,
अब त लागि गइल दूसरे बजार, सजनी
असो आइल महुआ बारी में…
कोंचवा के दूधवा गोदना, गोदावेली
से केहू जानी महुआ के लपसी, बनावेली
केहू भेजि दिहल देसावर - केहू, घरे सरावल चाउर
लागल चढ़े उतरे नसा आ खुमार, सजनी
असो आइल महुआ बारी में…
सैया खातिर बारी धनियां महुअरि पकावेली
केहू बनिहारे खातिर - तावा पर ततावे ली
महुआ बैल प्रेम से खावें, गाड़ी खींचे जोत बनावें
ई गरीबवन के किस-मिस अनार, सजनी
असों आइल महुआ बारी में…
ओखरी में मूड़ी डरलें - मूसर से कुटइलें,
लाटा बनिके बाहर अइलें हाथ-हाथें भइलें
केतना कइले कुरुवानी ! केतना कहीं ई कहानी
बहे अंखिया से लोहुवा के धार, सजनी
असो आइल महुआ बारी में…
दुनिया खातिर त्यागी भइल - जोगी रूप बनवलें,
आपन सम्पति दूनू हाथे सबके लुटवलें
जेतना होला ओतना देलें- बदला कुछू नाहीं लेलें,
करो के कलउ में एइसन उपकार, सजनी
असो आइल महुआ बारी में…
नरम नरम हरिअर हरिअर ओढ़ चदरिया,
फेरु से महुआ दुलहा भइलें बन्हले, पगरिया
जेइसे दिहलें ओइसे पवलें
कवि जी, कविता में ई गवलें
ए संसार में न चलेला उधार, सजनी
असों आइल महुआ बारी में…
जवने हाथे देवऽ पंचे ओ ही हाथ पइबऽ,
जवन जीनिस बोइबऽ तू ओही के ओसइब,
केहू काहें पछताला, केहू काहें घबराला!
एइसन जीनिगी में मिली ना सुतार, सजनी
असो आइल महुमा बारी में…
कोंचवाँ मातल भुइयां छूवे महुआ रस रसें चूवे,
जब से बऽहे भिनुसारे के– बयारि,
सजनी असो आइल महुआ बारी में बहार सजनी…
- मोती बी.ए.
महुआ के केंद्र रखि के मोती बी.ए. जी पूरा जीवन-दर्शन के एह गीत के माध्यम से रखि दिहले बानी।
मोती बी.ए. जी, महुआ के गुण के बखान करत- एह के किशमिश बतवले बानी। इ ग्रामीण परिवेश में महुआ के महत्त्व के रेखांकित करत बा। महुआ के चर्चा खाली भोजपुरिये नाहिं बलुक दोसरो प्रदेश के लोक साहित्य में मिलेला। महुआ, आदिवासी आ गंवईं खानपान में आजो रचल-बसल बा।
इ गीत धरोहर बा कम से पच्चास गो अइसन शब्द एह गीत में मिली, जवन हाल-फ़िलहाल प्रचलन में नइखे। लोग भूला, बिसार दिहले बा।
मशहूर साहित्यकार जुगानी भाई के मोती बी.ए. जी से आत्मीय संबंध रहल बा। आकाशवाणी से ले के कई मंचन पर ऊहाँ के साथे काव्यपाठ कइले बानी। जुगानी भाई के लगे मोती जी से जुड़ल खूब संस्मरण बा। ऊहाँ से एक बेर हम पूछनी कि रउआ मोती जी के कइसे याद करब, तो ऊहाँ के बतवनी- 1973 में हम किरन मिश्र के साथे बंबई में चित्रगुप्त जी से मिलनी। हमरा खातिर इ आश्चर्य के बात रहे कि परिचय होते चित्रगुप्त जी सबसे पहिले हमरा से मोती बी.ए. के सलामती के बारे में पूछलन।
भोजपुरी माटी के मूल स्वभाव गीताई ह। एह बानगी मोती जी एह गजल में देखल जा सकत बा-
हमरे मन में दुका भइल बाटे
चोर कवनो लुका गइल बाटे
कुछ चोरइबो करी त का पाई
दर्द से दिल भरल पुरल बाटे
आँखि के लोरि गिर रहल ढर ढर
फूल कवनो कहीं झरल बाटे
सुधा ढरकि गइल त का बिगड़ल
हमके पीए के जब गरल बाटे
दर्द दिल के मिटे के जब नइखे
चोर झुठहू लगल - बझल बाटे
मोती बीए के एगो किताब बा- ‘सेमर के फ़ूल’। एह में भोजपुरी क्षेत्र के वरनन एतना सटीक भइल बा जइसे केमरा में फोटो खींचल होखे। एह में एगो रचना बा ‘निझरि गइलें अमवाँ’। एह रचना के तनि देखल जाव-
निझरि गइलें अमवाँ
आइ हो रामा,
निझरि गइलें अमवाँ
ताके पतइया, डॅहके टहनियाँ
कुहुके कोयलिया त निकसे परनवाँ
आइ हो रामा,
निझरि गइलें अमवाँ
सोने के मोजरि, रूपे के टिकोरा
आन्ही के जोगवल, दइब के निहोरा,
एक दिन ऊ आइल ई सगरी बिलाइल
फूटि गइल एइसन कि फूटे करमवाँ
आइ हो रामा,
निझरि गइलें अमवाँ
डाढ़ी में झूलत रहल लटकेना-
सेन्दुरिया, नौरंगिया, पियरका, फुलेना,
वेसरि आ भुलनी, झुमकवा आ हरवा
एक दिन ऊ आइल छोराइल गहनवाँ
आइ हो रामा,
निझरि गइलें अमवाँ
कोमल बदन जब लागल गदाये
सिलवट पर नूने की सँगे पिसाये,
काँचे उमरिया के वैरी बेयरिया
बहुतन के असमय छोड़वलसि जहनवाँ
आइ हो रामा,
निझरि गइलें अमवाँ...
इ लमहर कविता बा। पर, आम के एगो मेटाफर बना के मोती बीए जी दार्शनिक तत्व आ जीवन प्रसंग के बतावे, समझाबे आ बुझावे के कोशिश कइले बानी। इ ऊहाँ के चिंतन के दायरा के बतावे खातिर काफी बा। ऊहाँ के एगो मुक्तक साथे हम एह लेख के समापन करत बानी-
‘चले नइखे देत जब एको डेंग फेमिली
कविता में का करी मेटाकर या सिमिली
जियला में कवनो सवाद जब नाहीं बा
त का केहू आम जानो, का जानो इमिली’
भोजपुरी के विलक्षण गीतकार मोती जी के स्मृतियन के बेर-बेर नमन करत बानी।