उसकी आवाज़ का पीछा हिरणों के झुण्ड करते थे
और वह अपने मन ही मन मान लिये गुरु बैजू बावरा का पीछा करता था एक तरुण संगीत-साधक बैजू का दीवाना हो गया था जिस पथ से बैजू गुज़रता था उसके पीछे-पीछे चलता था
गोपाल नायक नामक यह विलक्षण दलित गायक भी संगीत का एकलव्य बन जाता लेकिन बैजू बावरा द्रोणाचार्य नहीं था उसके भीतर एक हृदय धड़कता था और उसने गोपाल को दिल से लगा लिया
बैजू बावरा की देखरेख में
गोपाल नायक की प्रतिभा परवान चढ़ने लगी
और कुछ समय बाद जब गोपाल नायक के सुरालापों से बादल बरसने लगे तो उसे कुछ उन्माद हो गया वह ख़ुद को संगीत-शिरोमणि समझने लगा और एक दिन अहंकार में गुरु से उलझ गया नाराज़ होकर चला गया और विजयनगर दरबार में मुख्य गायक की शोभा बढ़ाने लगा
-तुम्हारा गुरु कौन है, गोपाल एक दिन राजा ने पूछा
-में निगुरा हूँ मेरा कोई गुरु नहीं मैं जन्मजात गायक हूँ गोपाल नायक ने अभिमान भरा उत्तर दिया
-ठीक है गोपाल नायक, हमें तुम्हारी बात का विश्वास है लेकिन जिस दिन तुम्हारे गुरु का पता चलेगा हम तुम्हें फांसी चढ़ा देंगे राजा विजयनगर ने फ़रमान सुनाया
इसके कुछ समय बाद यायावर बैजू बावरा अपनी तान में अपनी शिष्य-मण्डली के साथ विजयनगर की तरफ़ से गुज़रता था तो सोचा गोपाल आजकल यहीं दरबार में है नाहक नाराज़ है मिलता चलूँ
बैजू बावरा दरबार में पहुंचा और अपने शिष्य गोपाल नायक से मिलने की इच्छा जताई तो राजा विजयनगर हैरान हुये और गोपाल को बुलाया तो उसने साफ़ इंकार कर दिया कि बैजू बावरा उसका गुरु है
तो फिर फ़ैसले के लिये दंगल हुआ
गोपाल नायक ने सुर लगाये तो हिरणों का झुंड दौड़ा चला आया और जब गाना बन्द किया तो सारे हिरण लौट गये
-इन हिरणों के झुण्ड को वापस बुलालो तो आप मेरे गुरु ठहरेंगे गोपाल नायक ने बैजू बावरा से कहा
बैजू बावरा सुर लगाने से पहले खंखार ही रहा था तभी वह हिरणों का झुण्ड लौट आया जैसे प्रतीक्षा में ही हो
फ़ैसला हो गया
पत्थर पिघलाने वाले राग भीमपलासी को गाने की ज़रूरत नहीं पड़ी
कहते हैं बैजू बावरा ने फाँसी रुकवाने की बहुत कोशिश की लेकिन राजा विजयनगर ने कहा कि एक कलाकार को झूठ नहीं बोलना चाहिये इसे फाँसी ज़रूर दी जायेगी
जब गोपाल नायक को फाँसी दी जा रही थी तो उसकी हृदयविदारक चीख सुनकर हिरणों के झुण्ड दौड़े चले आये थे
इसके बाद बैजू बावरा के इस प्रिय शिष्य और अद्भुत गायक गोपाल नायक को इस देश के रसिकों ने और भारतीय संगीत के इतिहास ने भुला दिया
यहाँ तक कि १९५२ में विजय भट्ट के निर्देशन में बनी सुपरहिट फ़िल्म 'बैजू बावरा' में भी गोपाल नायक का कोई ज़िक्र नहीं है !
#एक_विस्मृत_गायक_की_कथा १.
कवि कृष्ण कल्पित की लेखनी से