महाकवि प. चंद्रशेखर मिश्र : स्मृति शेष
जन्म - 30 जुलाई 1928
मृत्यु - 17 अप्रैल 2008
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के महानायक, महाकवि प. चंद्रशेखर मिसिर जी के पुण्यतिथि प आखर परिवार नमन क रहल बा श्रद्धांजलि दे रहल बा ।
महाकवि चंद्रशेखर मिसिर जी के जनम, 30 जुलाई 1928 के मिश्रधाम ( तिलठी), जिला मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में भइल रहे । अपना गांवे घरे शुरुवे से भोजपुरी लोकगीत, लोकगाथा, कहनी आदि सुन के बड़ भइल रहनी एह से भोजपुरी के प्रभाव इहां प शुरुवे से रहे आ ओहि से साहित्य में कविता/ गीत लिखे के ललक इहां के शुरुवे से परि गइल । आजादी के लड़ाई में शामिल रहनी आ जेल भी गइल रहनी जवना के असर इहां के लेखनी प परल आ शुरुवात वीर रस के रचना सभ से भइल । गते गते इहां के नाव बनारस आ फेरु राष्ट्रीय स्तर प लिआए लागल रहे ।
पं. चंद्रशेखर मिसिर जी के पालन-पोषण उहां के ननिहाल बनारस के जरी परसीपुर गांव में भइल रहे आ ओजुगे पढाई लिखाई खातिर , क्रांतिकारी सन्यासी बाबा गोविन्ददास के स्थापित विद्यालय में कक्षा 5 में हो गइल । एह विद्यालय के असर मिसिर जी प परे लागल रहे । वन्दे मातरम के पाठ आ मामा सत्य नारायण दुबे के क्रांतिकारी सुभाव मिसिर जी प खुब पड़ल । 1942 के आंदोलन में गोविंद जी आ मामा सत्य नरायण दुबे जी के गिरफ्तारी के बाद मिसिरजी अपना साथियन संगे परसीपुर स्टेशन के जरा दिहल लो । ओजुगा से इलाहाबाद फरार हो गइल लो जहाँ गिरफ्तारी भइल आ जेल भइल ।
अनुभव आ संघर्ष देशभक्ति आ क्रांति जइसन रुपक के संगे आजाद भारत में मिसीर जी के लेखनी वीर रस के ओह भाव के एगो नया उंचाई देहलख । बाकिर एह मय के बादो पं. चंद्रशेखर मिसीर जी के पहिला रचना रहे 'दउरी हंकवा' जवन गांव के दलित समाज प सामंती वर्ग के ओर से होखे वाला अत्याचार प रहे । समाचार 'आज' में इ रचना विशेष नोट के संगे प्रकाशित भइल रहे । बाद में आज, उत्तरप्रदेश, सन्मार्ग में इहां के रचना प्रकाशित होखे लागल । आ कुछ समय के बाद बनारस के ' नागरी प्रचारिणी सभा' में इहां के 'संपादन आ शोध कार्य' नियुक्त हो गइनी आ लमहर समय ले एजुगा से जुड़ल रहनी । आकाशवाणी से भी बहुत लम्बा समय ले जुड़ल रहनी ।
पं. चंद्रशेखर मिसीर जी के प्रसिद्धि दिआवे वाला महाकाव्य ह ' कुँअर सिंह' जवना के भूमिका सम्पूर्णानंद जी लिखले बानी आ इ महाकव्य 1966 में प्रकाशित भइल रहे । असल में 1958 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शताब्दी वर्ष मनावल जात रहे । ओहि घरी बाबू रघुबंश नारायण सिंह जी के सम्पादन में प्रकाशित होखे वाली भोजपुरी मासिक पत्रिका में बाबू कुंअर सिंह प एगो बड़हन लेख आइल रहे ' बिहार केशरी बाबू कुंअर सिंह' । एहि लेख के असर पं चंद्रशेखर मिसीर जी प पड़ल आ एह महाकाव्य के सिरजना भइल ।
एह महाकाव्य के बाद पं. चंद्रशेखर मिश्र जी अनेकन गो भोजपुरी आ हिन्दी किताबिन के रचना कइनी जवना में बा - देश के सच्चे सपूत, गाते रुपक, पहला सिपाही, भीषम, जागृत भारत, आलाह ऊदल, लोरक-चन्दा, धीर-पुण्डीर, सीता, रोशनाअरा आदि । जहाँ 'कुँअर सिंह' महाकाव्य वीर रस प्रधान महाकाव्य ह ओजुगे 'द्रौपदी' खण्डकाव्य भोजपुरी में करुण रस के अप्रतीम उदाहरण ह । सीता इहाँ के लिखल खड़ी बोली में बेहतरीन खण्डकाव्य ह जवन देवी सीता के जीवन प आधारित बा । कुँअर सिंह, द्रौपदी, सीता जइसन महान काव्यन के रचना के बाद भोजपुरी में तीसरा आ हिन्दी भोजपुरी के चौथा जवन बेहतरीन खण्डकाव्य इहां के लिखले बानी उ ह ' भीषम' खण्डकाव्य । इ भीष्म ( महाभारत के भीष्म) प आधारित खण्डकाव्य ह । एह में वीर रस आ करुण रस के अदभुत वर्णन बा ।
भोजपुरी के एह अदभुत महान कवि जिनिका के भोजपुरिया समाज महाकवि कहेला, भारत से ले के भोजपुरी भाषा में लिखे बोले वाला हर देश में इहां के भरपूर सम्मान मिलल । मॉरिसस में ओजुगा के प्रधानमंत्री के हाथे सेतु सम्मान, उत्तर प्रदेश सरकार के ओर से 'अवन्ती बाई सम्मान' मिलल । 17 अप्रैल 2008 के हमनी के महाकवि, हमनी के छोड के लमहर यात्रा प चल गइनी बाकिर इहां के रचना इहां लेखनी से निकलल खण्डकाव्य आ महाकाव्य भोजपुरी भाषा के साहित्यिक इतिहास के अमर कइलस, महाकवि के भोजपुरियन के करेजा में बइठा देहलस ।
( चंद्रशेखर मिश्र जी के लिखल कुछ किताब रउवा सभ भोजपुरी साहित्यांगन प पढ सकेनी )
आखर परिवार निर्गुण " झुलनी का रंग सांचा हमार पिया" के संगे अपना महाकवि के बेर बेर नमन क रहल बा श्रद्धांजलि दे रहल बा ।
