गांधी की माउंटबेटन से पहली मुलाकात और चोरी हुई घड़ी का मार्मिक विवरण
ईश्वर से आक्रांत देश भारत में लोगों ने गांधी के रूप में एक अत्यंत सरल किन्तु प्रभावी उपायों से एक अलौकिक महात्मा के दर्शन किये थे। गांधी जहां भी जाते जनता उनके पीछे रहती। वह अपनी शताब्दी के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति थे।अनुयायियों के लिए वे महात्मा थे, अंग्रेजों के लिए एक अड़ंगेवाज राजनीतिज्ञ एवम बोगस मसीहा थे।
वे अपनी पदयात्रा में मात्र चार अनुयायी लेकर प्रातःकाल निकल पड़ते थे।उनके बक्से में कागज, कलम, धागा, सुई, एक लकड़ी का चम्मच, मिट्टी का कुल्हड़, बुरा मत देखो, मत सुनो, मत बोलो का उपदेश देते बंदरों की नन्नी मूर्ति, गीता, कुरान, बाइबिल, यहूदी विचारों की एक पुस्तक सदैव उनकी पूंजी की तरह बक्से में रहती।
वे जहां भी रुकते उनके बगल में सावधानी से पालिश किये हुए नकली दाँत रखे रहते। इस्पाती फ्रेम का चश्मा भी रखा रहता जिसके आरपार उनकी अनुभवी बूढ़ी आंखें इस नादान दुनिया का निरीक्षण करतीं। उनका कद मुश्किल से पांच फीट, बजन केवल 114 पाउंड। हाथ पैर आवश्यकता से अधिक लम्बे थे। ईश्वर ने चाहा था कि गांधी का चेहरा सुंदर न हो। काफी बड़ा सिर, उंसके दोनों तरफ बड़े बड़े कान कुछ इस प्रकार निकले हुए मानों कप के हैण्डिल, मोटे नथुने के सहारे टिकी नाक, नीचे विरल सफेद मूंछे और नकली दाँत न होने पर पिलपिलाता मुंह।
लेकिन इसके बावजूद- गांधीजी के चेहरे से सादगी, ईमानदारी और भलमनसाहत की जो किरणें निरंतर फूटती रहती थीं उन्होंने इस चेहरे को निहायत प्यारा बना दिया था। उनकी इंसानियत, उनकी जिद, उनकी मसखरी आंखों को व्यक्त करने की अलौकिक क्षमता, उनकी नारी सुलभ स्नेहशीलता.... ।
उस असुंदर चेहरे में सौंदर्य का सागर लहराता था।
इस बूढ़े व्यक्ति का सामना करने के लिए इंग्लैंड की महारानी का प्रपौत्र वाइसराय के रूप में भारत आया। उसका नाम था लार्ड माउंटबेटन।
इस बूढ़े महापुरुष से अपनी पहली मुलाकात को महत्वपूर्ण बनाने के लिए माउंटबेटन अपनी पत्नी, अपने सहायक अफसर और वाइसराय भवन के स्टाफ सहित मौजूद था। जब माउंटबेटन के सामने की कुर्सी पर हड्डियों का प्रसिद्ध ढांचा आ बैठा तो वाइसराय को लगा कि कोई ऐसी बात जरूर है जो इस महात्मा के दिल को खाये जा रही है।
'मुझसे कोई गलती हुई ' अनायास माउंटबेटन के मुंह से निकला।
धीमे, दर्दभरे, नि:श्वास के साथ गांधी ने कहा '' दक्षिण अफ्रीका में जब मैंने नया जीवन शुरू किया तब से आज तक हमेशा यही कोशिश की कि भौतिक चीजों का स्वामी न बनूं। मेरे पास है ही क्या? गीता है, कुछेक और किताबें हैं। टिन के एक दो टूटे फूटे बर्तन हैं जिन्हें मैं यरवदा जेल से लेकर आया हूँ। एक पुरानी घड़ी है जो हमेशा मेरी कमर से बंधी रहकर टिक टिक करती रहती है। मुश्किल से आठ शिलिंग की। एक एक क्षण भगवान का दिया हुआ है। घड़ी तो हमेशा पास होनी ही चाहिये ताकि पता चलता रहे कि भगवान का दिया कौन सा क्षण कब बीत गया।
जानते हो आज क्या हुआ? महात्मा ने कहा मेरी घड़ी चोरी चली गयी।आपसे मिलने के लिये मैं बिहार से रवाना हुआ। तीसरे दर्जे के डिब्बे में बैठा। भीड़ बहुत थी। कब किसने घड़ी चुरा ली पता न चल सका।
लार्ड माउंटबेटन का भी दिल दहल गया। वे तुरंत समझ गए कि गांधीजी का दुख यह नहीं है कि घड़ी चोरी हो गयी। उनका दुख यह है कि लोगों ने उनकी बात को समझा नहीं है। किसी नादान अजनबी ने घड़ी क्या चुराई थी उनके सिद्धांतों और विश्वास का एक हिस्सा ही चुरा लिया।
लगभग छः माह बाद सितम्बर 1947 में जब गांधी दिल्ली के बिड़ला हॉउस में ठहरे थे झुकती दोपहरी को एक आदमी आया और कहने लगा कि महात्मा जी से मिलना है।उसने अपना नाम बताने से इंकार कर दिया। और बोला कि मुझे अकेले में महात्मा जी से मिलना है।
जब वह व्यक्ति गांधीजी के सामने पहुंचा वह गांधीजी के चरण छूकर बैठ गया। और गांधीजी को उनकी घड़ी देकर बोला कि महात्मा जी मुझे माफ़ कर दें। घड़ी मैंने ही चुराई थी। गांधजी ऐसे हंसते जा रहे थे जैसे किसी बच्चे का खोया हुआ खिलौना वापस मिल गया हो।
गांधीजी ने उसे बांहों में भर लिया और कहा कि तुमने मेरी खोई घड़ी नहीं मेरे सिद्धांत और विश्वास लौटाए हैं।
संदर्भ- आधी रात की आजादी
Gandhi Darshan - गांधी दर्शन
8 मई 2025