1857 के महानायक वीर कुंवर सिंह : डा. विवेकी राय
[ विजयोत्सव प विशेष लेख]
सन्तावन में आगि लागि गइलि. अइसनि आगि कि सगरे हिन्दुस्तान जरे लागल. जरे लागल अंगरेजी राज! अंगरेज लोगन क भागि चांड़ रहे कि जीव बांचि गइल. तबो अइसन लोहा चबाये के परल कि दांत खट्टा हो गइल. एह देस का ओह सुरुमा मरद से पाला परल कि छटक के भागत-भागत सांसत हो गइलि. अरजुन-भीम क नांव सुनि के चिहाये वाला लोग आंखि पसारि के देखल कि पुरुषारथ का कहाला? तोप क मुंह बन कइके अकेले सुरमा फिरंगी जरनइल का छाती पर ओकरा सेना क जकड़ल काई फारि के चढि़ जाला? कुब्बत का कलम से जवन जुझार इतिहास लिखाइल कि अबो पढि़ के छाती फूलि के गजभर हो जाले. ओह बाबू कुंवर सिंह के के नइखे जानत.
गदर के दबावे खातिर चिउंटा माटा अइसन अंगरेज लूझि गइले. इलाहाबाद, दिल्ली, लखनऊ आ अउरी सहरन में ज हु के दुआरि खुल गइलि. दुनिया के इतिहास में अइसन हतियारी क गरम घमासान बजारि कतहीं ना लागलि! गांव क गांव स्वाहा हो गइल. लइका-महतारी क बड़-बड़ दंवरी ओह काली का रंथ में नधा गइलि. दिल्ली में बहादुर साह पकड़ल गइलन. राजबंस बूडि़ गइल. पूरा सहर मुर्दा का मारे बसा गइल. लखनऊ क ईहे हालि भइलि. खून क समुन्दर उमडि़ आइल. महल में रहे वाली बेगम लोग अंगरेजन से लोहा लीहल. बाकी एह पिसाचन का आगा ओह लोग के का चलित? सइ कसाई तहां एगो क का बसाई? एही घरी बिहारी जागल. तीन जुलाई के पटना में गदर भइल. ऊ दबा दिहल गइल. ओकर अगुआ पीर अली फांसी पर लटका दिहल गइले. 25 जुलाई के दानापुर का देसी पलटन क खून खउलि उठल. ऊ झारि-फटकारि के चलि दिहलसि.
सुरुज जइसन जेकर तेज जरत रहे ओ राजा कुंवर सिंह क गढ़ जगदीसपुर अपना ओर ओह पलटनि के खिंचलस. दानापुर क ई बागी पलटनि जब जगदीसपुर चोंहपलि तब कुंवर सिंह महल से निकललन. वीरन क करेजा उछले लागल. मोछ फहराए लागलि. अस्सी बरिस का ओह वीर बाबू का आंखि में ऊ गजब क आगि धधकलि कि जनाइल जे ऊ बड़वानल अइसन सगरे फिरंगिन का समुन्दर के छनछना के सुखा देई. इन्नर का बज्जर नियर बांहि में अरजुन का गाण्डीव नियर ऊ तेगा लउकल जवन गोरन के गोल के पलक मारत खरिहान कइ देवे वाला रहल.
राजा कुंवर सिंह बागी पलटन के अगुआ हो गइले. अब गदर में रंग आ गइल. आरा सहर पर पहिले हाथ फिरल. खजाना आ जेल मु_ी में आ गइल. अंगरेजी दफ्तर माटी में मिलि गइल. किला पर घेरा परि गइल. फिरंगिन के कान खड़ा भइल आ जुझार लड़ाई क सिरीगनेस हो गइल. 29 जुलाई के कप्तान डनबर 300 गोरा आ 115 सिक्खन क सेना लेके आरा चललन. बीचे कुलहरिया का बगइचा में बच्चा गच्चा खा गइलन. ईहे कुंवर सिंह क पहिली लड़ाई रहे. एह दिन से लेके मरे का दम ले माने 9 महीना ले 10 गो लड़ाई खूब जमि के जोम का साथ लड़लन. खाली दू लड़ाई के छोडि़ के हर बेर गोरा लोग धूरि फंकले बा. ओह लोग क खूब सिखावलि-पढ़ावलि पलटनि बाबू साहब का जाल में टप से फंसि जात रहे.
बड़े-बड़े इतिहास क माहिर लोग आजु इतिहास पढ़ेला त कुंवर सिंह क चतुराई देखि के दांते काटि लेला. कुलहरिया का बगइचा में ओने से उखमंजल गोरा पलटन आवत बा. एने गोल फेड़ पर चढि़ के लुकाइलि बा. रात क समय बा. जइसे फउदि नीचे आइलि तइसे कूदि-कूदि के पुरहर पलटनि के दबोचि लिहल जाता. अचके क चोट बहुत कस के घाव करेले. ऊ लोग सम्हरे ना पावल कि खरिहान गो गइले. ईहे हालि अतरौलिया में भइलि. कुंवर सिंह काला कछा के पाछा हटे लगलन. गोरा लोग के खोपड़ा में आइल कि इनकर दम टूटि गइल. ऊ लोग कुछ दूरि तक पीछा कइला के बाद बेफिकिर हो के खाये-पीये आ नाचे-कूदे में बाझि गइले. एने ई सिकारी गोइयां एही घरी का ताक में रहले. बस हल्ला बोला गइल. पूरा पलटन के भागत-भागत नकदम हो गइल आ कतहीं आड़ ना भेंटाइल.
तानू नदी का पुल वाला लड़ाई में ऊ एगो गजबे चाल चललन. बाबू का पाछा लवटे के रहे. एने बैरी कपार पर धमकि आइल. चट से पलटन के दू हिस्सा में बटलन. एगो गोल कले-कले बचाव वाली लड़ाई क टंट-घंट लगवले रहे तवले असली फउदि बहुत लमहरा सरकि गइलि. बाद में ऊहो गोल घात लगाके छटकि आइलि. गोरा लोगन के ई भेद बाद में जनाइल. कवनो दुस्मन के थकाके कइसे गिरावल जाला ई हुनर हम बाबू साहेब का लड़ाई में पावत बानी.
नघई गांव का लड़ाई में डगलस साहेब खूब पाठ पढ़ले बाडऩ. एह लड़ाई में बाबू साहब अपना पलटन के तीन हिस्सा में बांटि देले बाडऩ. एगो गोल लड़ति बा आ दूगो गोल दू ओर से पाछा जात बा. डगलस साहब ओह गोल के कमजोर पाके चारि कोस ले पोंकियावत बाडऩ. असल मतलब थकावल बा. जब खेदत-खेदत थाकि जात बाडऩ तवले एही बीच कुंवर सिंह के दूनो गोल मिलि के पाछा ले छापा मारत बा. अब का होखो? मैदान छोडि़ के साहेब आ उनकर फउदि पेलि पराइलि.
गलत अफवाह उड़ाके कइसे काम निकालल जाला, ई एगो लड़ाई क तरीका ह. बाबू साहेब का गंगा पार करे के बा. पाछा ले छेड़छाड़ करत गोरा कुक्कुर नियर धावत आवत बाडऩ. उहांका गुड्डी उड़ा दिहलीं कि हम बलिया में गंगा पार करबि. अब अंगरेजी सेना बलिया क घाट अगोरले बा. तबले सिवपुर में बाबू साहेब क पलटन गंगा पार कइ लिहलसि. ई कुजोग के बाति रहे कि पता पाके अंगरेजन का धावत-धावत ले एगो आखिरी नाव भेंटा गइलि आ गोली क घाव बाबू साहेब का दाहिनी बांहि में लागल. 'माई बांहि मांगति बाड़ी कहि के बाबू साहेब मरले कि केहुनी पर छप्प से बांहि उतरि गइलि. गंगा माई भेंट ले के लाल हो गइली.
आसमान खिलि उठल बाकी जमीन क भागि मुरझा गइलि. कुंवर सिंह आगी का साथ खेलवाड़ करे में अइसन हाथ देखवलें कि इतिहास बिना एह बात के खोज-पूछ कइले कि के जीतल आ के हारल अघा गइल. दहिना हाथ गंगा माई के भेंट चढि़ गइल बा. 8 महीना बाद जगदीसपुर से आजमगढ़ आ गाजीपुर आ बलिया का बीचे करीब डेढ़ सौ मील का भीतर घमासान मोर्चा कइ-कइ बेर लेके सिंह अब अपना मानि में लवटल बा.
बहादुर के सिपाही लोग थाकि के चूर-चूर हो गइल बाड़े. एकहू तोपखाना संगे नइखे. अइसना घरी में मौका देखी के बैरी फेरु चढि़ आइल. ई बाबू साहब के जिनिगी के आखिरी लड़ाई रहलि. नया जोम से बाबू साहब खेत में उतरलन. उनका सोझा दुस्मन के तमाम जरत तोप-गोला बुता गइल. कुल्ही बल-बूता धूस हो गइल. संगीन भांजत, कासन पर बिगुल बजावत ली ग्रैंड साहब क सेना आइलि, बाकिर ओकर कुल्ही चउकड़ी ओह घरी भुला गइलि जब छछात काल अइसन हरहरात सफेद घोड़ी उड़ावत सिंह नियर सिंह पहुंचल. पिआदा-पतुका दइब-दइब गोहरावे लगलन. इज्जति बढि़ गइलि.
सांच पूछी त सन् संतावन वाला गदर में बाबू कुंअर सिंह एगो हउआ बनि के, आ एगो मउवति क पैगाम बनि के अंग्रेजन का उपर छा गइले. मेम लोगन क रोअत लइका कुंअर सिंह क नांव सुनि के सट्ट लगा जासु. लार्ड कैनिंग सुतला में चिहुंकि के उठि जासु. ओकर कहनाम रहे कि हमनी क ई बडि़ भागि बा कि कुंवर सिंह अस्सी बरिस क बा. ई जवान रहित तब त एह मुलुक में गोड़ ना थेघाइत. एगो अंग्रेजी सेना क सिपाही जवन जगदीसपुर का आखिरी लड़ाई में रहे अपना डायरी में हारि के बयान लिखले बा. ऊ लिखले बा कि 'लड़ाई के हाल लिखत बहुत लाज लागति बा. हमनी का लड़ाई क मैदान छोडि़ के जंगल का ओर सरपट भगलीं जा. पाछा से बाबू साहब क सिपाही कोंचत आवत रहलन स. भूखन, पियासन परान गरदन में टंगा गइल रहे.
एगो भइंसि-लोट क डबरा देखि के जइसे मुंह लगावत चहलीं. तइसे जमदूत नियर पाछा से चहटले सिपाही पहुंचलें. भुलाइल गदहा नियर गोरा पलटनि पिटाये लागलि. जेकरा जेने घात लागल ऊ ओने भागल. तराहि-तराहि मचि गइल. गोल क गोल गरती का मारे टें बोलि गइल. जे बचल ओके तरुआरि का घाटे उतारि दिहल गइल. जनरल ली ग्रैंड का छाती में गोली लागल आ परान उडि़ गइल. 199 गोरन में 80 गो बचि गइलन. एह जंगल में हमनी क ऊ हालि भइल जवन कसाई खाना में पसुन क होला.'
आखिर जगदीसपुर आजाद हो के रहल. बाही का घाव से बाबू साहेब सरग सिधारि गइलीं. ऊ दिन 26 अप्रैल सन् 1858 रहे. ओह घरि जगदीसपुर क गढ़ पर आजाद हरियर झंडा फरफर-फरफर उड़त रहे. ओह घरी कवनो अंग्रेजन आ कंपनी क उहां कवनो बसाव ना रहि गइल. परजा का सांसि-सांसि में आजादी लहराति रहे. हवा का लहरि-लहरि पर भारत माता क जय-जय-कार पंवरत रहे. जमीन का कन-कन में वीरता क गमक समाइल रहे. औरंगजेब क दीहल 'राजा' क पगरी अंगरेज छीनल चहलें बाकी उनकर मनोरथ धूरि में मिलि गइल. सिंह का जिनिगी में भला ओकरा मानि पर केहू ताल ठोकी सकेला? बाद क बाति के चलावे? मुअला पर डोम राजा!
ई संतावन क सिंह तब जगदीसपुर पर राज करत रहे, अब सगरे देस का मन का सिंहासन पर बिराजे लागल. सूरमा लोगन के हिया में दीया जइसे जरे लागल. वीर क लगावलि ऊ आगि का अकारथ गइलि? ना. आजु ओही का समाधि का नीचे बइठि के आजादी क ताल ठोकात बा. भारत क इतिहास बीरन क बयान से भरल बा. एक से एक लोहा चबाये वाला सुरमा भइले. एक से एक खडग़ का धार पर धावे वाला माई क लाल जनमले. वेद-पुरान क बात छोड़ीं आ द्वापर-त्रेता क बाति अगर हिरदै में ना धसति होखे त कलजुग में आई. चन्द्रगुप्त आ विक्रमादित्य के ढेर दिन हो गइल होखे त राना परताप आ सिवाजी क इतिहास क त अभी सिअहियों नइखे सुखाइलि. सान आ आजादी कारन तिनका जइसे परान के बूझल आ ओह परान का बान से धरती आसमान के हिला दिहल त एह देस खातिर मामूली बाति ह.
ई देस रहि-रहि के जागेला. ई एक बेर जागल त राना परताप आ सिवाजी जइसन कडुआ- जबरजंग बीर दिहलसि. आ एक बेर जागल त लक्ष्मीबाई आ कुवंर सिंह जइसन बागी आ बरिआर परान के सिरजन कइलसि. परताप, सिवाजी, तेग बहादुर, लक्ष्मीबाई, नानाजी, तांत्या टोपे आ आल्हा-ऊदल आदि नियर बीरन क जब हम इयाद करत बानी त ओहमें कुवंर सिंह क नांव एगो अजबे सान से आवत बा आ नसा नियर छा जात बा. एगो दूसरे किसिम क बीरता क मोलायम सुगंध से मन भरि देत बा. सांच बाति ई बा कि एतहत बैरी से केहू ना रारि बेसाहल, जेकरा राज में सुरुज-चान ना अथवसु, जेकरा पंजा का नीचे सगरे दुनियां के भुंइया-भूपाल, नामीगरामी राजा नाकि रगरसु. दूसर बाति ई रहे कि आजादी क ई नकसा एगो दूसरे किसिम क रहे.
बिदेसी ताकत का खिलाफ सवाल देस क रहे. तीसर बात ई रहे कि जगदीसपुर एगो छोट रियासत रहे. ओकरा पास फउदि-पलटन कमे रहे. ईहे कुल्हि कारन बा कि भोजपुर का इलाका में आजुओ बाबू कुंवर सिंह का नांव पर लोग अघा जाला, धधा जाला. जगदीसपुर में जाई त आजुओ जनाला जइसे तेगा-सिरोही लेले बाबू गढ़ क रखवारी करत बाडऩ. घर-घाट जहां जाई बाबू साहब जागत बाडऩ. थाल-चौपाल जहां देखीं, बाबू साहेब उगल बाडऩ. भीर-अबीर जहां देखीं बाबू साहेब गवात बाडऩ-'बाबू कुंवर सिंह तेगवा बहादुर बंगला पर उड़ेला अबीर.'
- डॉ. विवेकी राय