" धनि पीर अली धनि तोर महतरिया "
बाबू बीर कुंअर सिंह जी के साथी पीर अली : विजयोत्सव प विशेष
पीर अली के शहादत के चर्चा बहुत कम होला । मूल रुप से लखनउ ( कुछ लो आजमगढ कहेला) के रहनिहार बाकिर पटना में रहत रहले । असल में कुंअर सिंह के 1857 के बिहार के सिपाही विद्रोह के नेतृत्व करे के एगो वजह पीर अली रहले । पीर अली के नेतृत्व में पटना में विरोध शुरु हो गइल रहे, अफीम के अंग्रेज मजिस्ट्रेट के भीड़ हत्या क देहलस । पटना के गली-गली में डग बाजे लागल । डुग्गी पिटाए लागल अंग्रेजन के विरोध खातिर ।
5 जुलाई 1857 के पीर अली गिरफ्तार भइले, 6 के कोर्ट में सुनवाई भइल । फैसला, फांसी के भइल आ जज इहो आदेस देहलस कि 3 घंटा के भीतर फांसी होखे आ पीर अली के 6 जुलाई 1857 के फांसी दे दिहल गइल । विजयोत्सव प पीर अली के बात कइल जरुरी बा ।
चंद्रशेखर मिसिर जी के कुंअर सिंह खंड-काव्य मे पीर अली के बारे कइ गो पाना लिखाईल बा ओहि मे से दु लाईन -
भारत माता के जय कहिके ,
हंसी पीर अली चढलै फंसिया ।
जे हंसत रहल छन भर पहिले ,
ओकर अब सेस रहलि लसिया ।
फेरि एक अउर बलिदान बढल ,
फेरि एक अउर शहीद जूझल ।
फेरि मुंडमलिका कि माला मे ,
एक मूड़ टटका गूहल ।
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चम चम चमकलि लासि प लपकल ,
एक गरदनवा अनेकन कटरिया ।
सीनवा संगीनवा के निकिया मुड़न लागि ,
गरवा प मुड़ल कटरिया क धरिया ।।
लखि नाहि सकल अकसवा अनीति अस ,
ढकेलसि मोहवाँ बदरिया चदरिया ।
तड़पलि बिजुरि ठठाई धन बोलल जे ,
धनि पीर अली धनि तोर महतरिया ।।
साभार - कुअर सिंह खंड काव्य , भोजपुरी के महाकवि चंद्रशेखर मिसिर किताब से
