बाबू कुंअर सिंह : पुण्यतिथि प विशेष !
भारत के आजादी के, पहिला गदर, के महानायक ' बाबू कुंअर सिंह' जी के पुण्यतिथि प आखर परिवार बेर बेर नमन क रहल बा श्रद्धांजलि दे रहल बा ।
[ एह लेख में पढीं, बाबु कुंअर सिंह जी के पारिवारिक इतिहास, उहां के निधन के बाद जगदीसपुर के सत्ता, आ 1857 के गदर में बाबु कुंअर सिंह के लिखल दू गो ऐतिहासिक पाती । ]
बाबु कुंअर सिंह के पारिवारिक इतिहास -
अंग्रेज अधिकारी डॉ फ्रांसिस बुकानन, वीर कुंअर सिंह के बाबूजी राजा साहबजादा सिंह के Maverick यानि कि आजाद खयाल के राजा लिखले बाड़े । 1813-14 में जब बुकानन, शाहबाद आ खास क के जगदीसपुर एस्टेट घुमे आइल बाड़े त उनुका के शाहबाद घुमावे वाला अउरी केहू ना कुंअर सिंह रहले ।
1764 में शाहबाद, अंग्रेजन (ईस्ट इंडिया कम्पनी) के कब्जा में आ गइल रहे । मीर कासिम, शुजाउद्दौला आ बादशाह सलामत शाह आलम II के साथ मिल के जवन युद्ध भइल ओह में बंगाल प्रेसिडेंसी के पटना डिविजन के 6वा जिला शाहाबाद शामिल रहे।
असल में स्काटिस, डॉ फ्रांसिस बुकानन के शाहबाद आ आसपास के क्षेत्र के सर्वे करे के दिआइल रहे जवना खातिर उ शाहबाद, जगदीसपुर एस्टेट 1813 में चहुंपल रहले । बुकानन लिखत बाड़े कि 350 से उपर लोगन के रोज के भोजन बनत रहे आ राजा साहबजादा सिंह के लगे एगो हाथी 10 गो घोड़ा आ 8 गो बैलगाड़ी हरदम रहत रहे।
चुकि भूप नारायण सिंह के बाद सत्ता संघर्ष आ कानूनी लड़ाई के बाद मिलल रहे एहि से जगदीसपुर एस्टेट के अधिकतर बड़-बड़ लोगन के संगे ओतना विश्वास वाला बात ना रहे । खास बात कि राजा साहबजादा सिंह के संगे कुर्मी आ दुसाध जाति के सैनिक बेसी रहले आ राजा साहेब के ओह लो प बेसी विश्वासो रहे ।
साहबजादा सिंह के जगदीसपुर के सत्ता आसानी से ना मिलल रहे । भूप नारायण सिंह के निधन के एक दिन पहिले वसीयत प कुछ लोगन के नाव चढावल गइल जवना के कोर्ट में साहबजादा सिंह चैलेंज कइलन । शुरु शुरु में कोर्ट, अंगेज अधिकारी वेल्स के पुरा जगदीसपुर एस्टेट के देख रेख के जिम्मा देहलस काहें कि ईश्वरी प्रसाद जेकरा नावे एह एस्टेट के भूप नरायण सिंह कइले रहले उ अबहीं बच्चा रहले । कोर्ट आ सत्ता के एह लड़ाई में साहजादा सिंह प कर्जा बेसी चढे लागल रहे । एक ओर ईस्ट इंडिया कम्पनी के रेवेन्यू देबे के रहे, दोसरा लंगे सत्ता खातिर लड़ाई ।
साहबजादा सिंह पटना सिटी के नानमोहिया में एगो मजार के सज्जादाब नशीन दाता पीर बक्स कुछ जमीन ( 112 बीगहा ले ) आ बिना किराया ( टैक्स ) वाला गांव बाजुरिया जवन नूनूर परगना में रहे दान में देले रहले ओह मजार के खरचा पानी खातिर । इ कहल जाला कि साहबजादा सिंह जब बहुत बुरा हालत में रहले, उनुका सत्ता ना मिलल रहे आ कर्जा बढत जात रहे ओह समय उनुका के दाता पीर बक्स से बहुत समर्थन आ सुझाव मिलल रहे जवना के आधार प साहबजादा सिंह आपन आगे के लड़ाई लड़ले ।
साहबजादा सिंह के चार गो लइका रहे लो । सबसे बड़ कुंअर सिंह, दुसरा दयाल सिंह , तीसरा राजपति सिंह आ चौथा अमर सिंह । कुंअर सिंह आ दयाल सिंह के जनम, साहबजादा सिंह के जमींदार बने से पहिले भइल रहे । कुंअर सिंह आ दयाल सिंह के बिआह, राजा फतेह नरायण सिंह के बेटियन से भइल रहे । असल में एह बिआह के पाछे के वजह रहे कि साहबजादा सिंह के दुनो बेटन के , देव-मुंगा एस्टेट के राजा फतेह नरायण के बेटियन से बिआह के बाद अच्छा खासा पइसा दहेज में मिले वाला रहे । इहाँ ले कि बिआह के पुरा खरचा राजा फतेह नारायण सिंह उठवले रहले । एह पुरा घटना के अगुवाई कइले रहले एगो चिकनदाज ( कारीगर जे कपडा प फूल पतई बनावे के काम करेला) नागाचंद ।
कुंअर सिंह अपना चारो भाई में सबसे बड़ रहले, अइसे त दयाल सिंह, जगदीसपुर एस्टेट के जमीन जायदाद के काम देखत रहले बाकिर कुंअर सिंह शुरुवे से साहसी आ बहादुर रहले । शुरुवाती शिक्षा सही से ना हो पावल काहें कि ओह घरी साहबजादा सिंह exile ( क जगह पढे के मिलत बा कि साहबजादा सिंह, भूप नरायण सिंह के समय गाजीपुर में रहत रहले) में रहले, एह वजह से कुंअर सिंह आ दयाल सिंह के उ सुविधा ना मिल पावल जवन राजपति आ अमर सिंह के मिलल रहे । साहबजादा सिंह के जमींदार बनला के बादो कुंअर सिंह महल में ना रहत रहले । उ अपना खातिर एगो अलग से जिताउरा के जंगल में बंगला बना के रहत रहले जवन कुंअर धीर के जरिए रहे । एहिजे रहि के उ शिकार आ बाकि के काम करत रहले । तकरीबन 100 के करीब आपन लोगन के संगे उ एह जंगलन में हरदम घुमत रहले शिकार करत रहले ।
23 अप्रैल 1858 के, जगदीशपुर रियासत प बाबू कुंअर सिंह के फेरु से कब्जा भइल रहे जवना के विजयोत्सव के रुप में मनावल जाला । 23 अप्रैल के 1858 के ठीक दु दिन पहिले बलिया से आरा आवत घरी अंग्रेजन संगे युद्ध में, बांहि में गोली लाग गइला से आ सही से इलाज ना भइला के वजह से ओह बांहि के काटे के पड़ल आ उहे बांहि काटि के गंगाजी में दिआइल । तबो, गोली के जहर आपन काम क देले रहे आ 26 अप्रैल 1858 के बीर बांकुड़ा कुंअर सिंह के निधन हो गइल ।
26 अप्रैल 1858 के जगदीसपुर में बाबू कुंअर सिंह जी के जब निधन भइल त ओह समय जगदीसपुर से युनियन जैक उतर चुकल रहे । कुंअर सिंह के अंतिम संस्कार जगदीसपुर में अजायब सिंह के बगइचा में भइल । मुहे आगि, छोट भाई अमर सिंह देले रहले ।
कुंअर सिंह के निधन के बाद, छोट भाई अमर सिंह, जगदीशपुर के गद्दी प बइठले आ लगभग 6 -7 महीना ले जगदीशपुर के गद्दी प अमर सिंह के शासन रहे कि फेरु अंग्रेजन संगे युद्ध भइल जवना में अमर सिंह के, जगदीशपुर के गद्दी छोड़े के पड़ल ।
कुँअर सिंह के दू गो पत्र -
बाबू वीर कुंवर सिंह के कैथी लिपि, हिंदुस्तानी भाषा में लिखल दू गो पत्र जवन 1856 में लिखाइल रहे ।
इ दुनो पत्र खुदा बक्श लाइब्रेरी के आर्काइव से अहमद मतलूब जी के माध्यम से आखर के मिलल ह, हाजीपुर के ध्रुव कुमार जी एह पत्र के कैथी से देवनागरी लिप्यांतरण कइले बानी। लिप्यांतरण के बेवस्था आखर के वरिष्ठ सदस्य यशवंत मिश्र जी कइनी ह ।
आखर परिवार अपना महानायक के बेरि बेरि नमन क रहल बा श्रद्धांजलि दे रहल बा ।