Jebun Nisha Daughter of Aurangjeb

आज के दिन ही, 26 मई 1702 ई. में 64 साल की उम्र में सलीमगढ़ किले में उम्रकैद की सजा काट रही मुगल बादशाह औरंगजेब आलमगीर की सबसे बड़ी बेटी जेब उन निसा की मौत हो गयी थी। मौत के बाद उन्हें कश्मीरी दरवाजे के बाहर तीस हजारी बगीचे में दफन किया गया था लेकिन जब दिल्ली में रेलवे लाइन बिछाई गयी तो उनकी कब्र को उनके नक्शो-निगार के साथ सिकंदरा में अकबर के मकबरे में मुंतकिल कर दिया गया था।
शहज़ादी ज़ेब-उन-निसा बेगम मुग़ल बादशाह औरंगजेब की सबसे बड़ी बेटी थीं और उनके तमाम बच्चों में सबसे पसंदीदा थीं। जैसा की उस दौर में शाही ख़्वातीन का रिवाज़ था, उनकी तालीम का खास ख्याल रखा जाता था। वह सूफियाना ज़ेहनियत रखती थीं और अक्सर फ़ारसी में काफी खूबसूरत अशआर लिखा करती थीं, अब चूंकि उनके वालिद औरंगज़ेब को मौसिकी और शायरी का शौक नहीं था, तो अक्सर उन्हें छिप-छिपाकर लिखना पड़ता था।

ज़िन्दगी के शुरूआती मरहले में तो वह अपने वालिद के लिए बेहद अज़ीज़ थीं, उनके वालिद औरंगज़ेब हर ज़रूरी मुआमलात में उनसे राय जरूर लिया करते थे, लेकिन वक्त के साथ-साथ उनके ख्यालात बदलने लगे और ज़िन्दगी के 40वें दशक में वो कुछ ऐसा कर गुजरीं जो उनके वालिद जिल्ले सुब्हानी को रास न आया वो इतने खफा हुए की अपनी हरदिलअजीज बेटी को ताउम्र कैद में रखने का फरमान जारी कर दिया था।

उनकी खता क्या थी ये तो वाजेह नहीं है लेकिन तारीखदानों का कहना है की किसी के साथ उनका अफेयर था जो की उनके वालिद को नागवार गुजरा। जबकि कुछ इस बात से इत्तेफाक रखते हैं की शहजादी ने औरंगज़ेब के बागी बेटे शहजादा अकबर से उसकी बगावत के दौरान खतो-किताबत की थी। वजह जो भी रही हो औरंगज़ेब ने उसके बाद उनकी सारी दौलत जब्त कर ली और उनकी 4 लाख की सालाना पेंशन भी मंसूख कर दिया।

शहजादी को तारीख में एक शायरा के तौर पर याद किया जाता है। उनकी तहरीरें बाद-ए-अज़मर्ग दीवान-ए-मख़फ़ी के नाम से जमा की गयीं थीं।

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