Mudra Rakshas

राक्षस सिर्फ़ नाम के राक्षस थे
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(पुण्यतिथि स्मरण)

लेखक का मूलनाम था सुभाष चंद्र गुप्ता, फिर वे मुद्राराक्षस नामधारी कैसे हुए ?

चलिए सनते हैं वरिष्ठ कथाकार और उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक सुधाकर अदीब जी से वह रोचक वाकया :

कहानी मज़ेदार है तब युवा मुद्रा, सुभाष के नाम से ही जाने जाते थे। वे डॉ. देवराज की पत्रिका ‘युगसाक्षी’ के लिए लिखा करते थे। उसी दौर में अज्ञेयजी का 'तार सप्तक' आया था। उसकी खूब धूम थी।
मुद्रा ने 'तार सप्तक' पर एक क्रान्तिकारी लेख लिखा। मुद्रा ने इस लेख में स्थापपित किया था कि अज्ञेय ने जो 'तार सप्तक' की भूमिका में लिखा-हम राहों के अन्वेषी हैं । ये उनकी मौलिक रचना नहीं बल्कि एक विदेशी लेखक शायद टीएस इलियट की किताब से उड़ाया गया अंश है । इसी तरह अन्य कई बिन्दुओ पर मुद्राजी ने अज्ञेय को बेपर्दा किया था ।

लेख पढ़ कर संपादक डॉ. देवराज खुद उछल गए । उन्होंने कहा-

“तुम्हारे नाम से ये लेख छापना ठीक नहीं रहेगा। अज्ञेय कहेगा कि डॉक्टर ने एक लड़के से उन्हें पिटवा दिया। ये लेख हम मुद्राराक्षस के नाम से छापेंगे।…ये राक्षसी काम और नाम तुम्हारे चेहरे-मोहरे पर सूट भी करता है। फिर वह लेख पहली बार मुद्राराक्षस के नाम से छपा । और खूब हंँगामा हुआ। इसके बाद सुभाष खुद यह नाम बदलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।

मैं बता दूँ मुद्राराक्षस संस्कृत का एक ऐतिहासिक नाटक है। जो नंद वंश, चन्द्रगुप्त मौर्य, कौटिल्य और राक्षस की कहानी के इर्द गिर्द घूमता है। राक्षस विद्वान था और चाणक्य का प्रतिद्वंद्वी भी। राक्षस सिर्फ़ नाम के राक्षस थे।
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(फ़ेसबुक ने याद दिलाया)

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