कानों में कंगना!
1913 में प्रकाशित यह कहानी हिंदी की एक कालजयी कहानी है। यह कहानी प्रेमचंदकालीन लेखक राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की है। राम रहीम जैसा उपन्यास और दरिद्रनारायण जैसी अमर कहानियां लिखने वाले राजा साहेब को उनके लेखन के लिए पद्म विभूषण सम्मान से भी नवाज़ा गया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कानों में कंगना को भावुकतापूर्ण लेकिन महत्वपूर्ण कहानी कहा है। हिन्दी साहित्य में राजा राधिकरमण प्रसाद सिंह को एक अद्भुत गद्यकार और शैलीकार के रूप में जाना जाता है।
नई धारा लेखकीय आवास योजना के तहत मैं पटना के सूरजपुरा हाउस में ठहरा हुआ हूं। यह विशेष बात कि मुझे सूरजपुर हाउस के इस ऐतिहासिक कक्ष में ठहराया गया जिसमें ख़ुद राजा साहेब रहते थे।
यह कक्ष किताबों से भरा हुआ है। बहुत दुर्लभ और पुरानी किताबें इस कक्ष में करीने से रखी गई हैं। मैं उन्हें छूता हूं देखता हूं और रोमांचित होता हूं।
इस कक्ष में रहता हुआ मैं प्राचीन और अर्वाचीन के बीच जैसे झूला झूल रहा हूं। यह शायद मेरे पुण्यों का फल है।
अविस्मरणीय अनुभव !
कृष्ण कल्पित
#नई_धारा_लेखकीय_आवास ३.