इतिहासकार विसेंट स्मिथ ने अपनी पुस्तक में बैरम खान की मौत से अकबर की धाय मां माहम अनगा की मौत के बीच के शासन काल को "स्त्रैण शासन" बताते हुए लिखा है कि इस दौर में अकबर बादशाह की हुकूमत में हरम का प्रभाव बढ़ गया था, राज काज महम अनगा के इशारे पर चलने लगा था। बाद में स्मिथ के इसी कोट को उठाकर भारतीय इतिहासकारों ने स्त्रैण शब्द की जगह पेटीकोट शासन लिखना शुरू कर दिया और भारत के दक्षिणपंथी इतिहासकारों ने इसी को जोर शोर से आगे बढ़ाया। स्मिथ ने ब्रिटिश होने के कारण उस काल पर आवश्यकतानुसार शोध नहीं किया और भारतीय इतिहासकारों में भी शोध की लालसा थोड़ी देर से आई। तो आइए समझते हैं कि क्या अकबर का बैरम खान के बाद से माहम अनगा की मौत के बीच का कल वास्तव में पेटीकोट शासन का दौर था?
ज़रा याद कीजिए बैरम खान की मौत 31जनवरो 1560 को गुजरात के अन्हिलवाड़ा में हुई थी। उनकी हत्या उनके एक शत्रु के पठान बेटे ने की थी। इसके अलावा मांहम अनगा की स्वाभाविक मौत 25 जून 1562 में हुई थी। यानी इस बीच लगभग 17 महीने का करकल रहा। इन 17 महीनों में अकबर ने बेराम खान के बाद सबसे बादशाहत का सबसे शक्तिशाली पद "वकील ए सल्तनत" का पद शमसुद्दीन अतका को दिया। महम अनगा चाह कर भी ये पद अपने बेटे अदहम खान को नहीं दिला सकी। यदि अकबर पर मांहम अनगा का प्रभाव होता तो वह पद जरूर उसके बेटे अदहम को मिलता, आखिर वह अकबर की धाय मां जो थी। इसी साल 1561 में मांडू पर हमला किया गया, जिसकी कमान अदहम खान को दी गई। लेकिन जीत का मांल हड़पने वो दुराचारक आरोप के कारण उसे मालवा का गवर्नर पद देने का वादा भी तोड़ दिया गया। यही नहीं उसे जो जागीर दी जानी थी, अकबर ने उसे भी नहीं दिया। ये वाक्या अकबरनामा में साफ दर्ज है। यहां भी वही सवाल है कि अगर दिल्ली की हुकूमत पर महम का आदेश चलता था तो महम के बेटे को कुछ क्यों नहीं मिल सका?
1562 आते आते अपनी उपेक्षा से अदहम खान अपना धैर्य खो चुका था। तीसरा वाकया ये हुआ कि अदहम खान ने 1562 के मार्च,अप्रैल में शमसुद्दीन अतका की हत्या महल में कर दी। अकबर ने जब उसे डांटा तो उसने अकबर का हाथ पकड़ लिया। इस पर अकबर ने रक्षकों से अदहम को किले से नीचे फेंक कर मार डालने का हुक्म दिया।
आनन फानन में अदहम खान मार डाला गया। इसके बाद अकबर ने यह खबर महम अनगा को बताई, इतिहासकार बताते हैं कि इस पर महम अनगा ने कहा, बादशाह सलामत अपने ठीक किया। इस घटना के मात्र 40 दिन बाद 25 फरवरी 1562 को महम अनगा की भी मौत हो गई।
दो साल के इस काल में जितनी भी घटनाएं हुईं, उसका परीक्षण करने पर पता चलता है कि यदि अकबर पर अपनी धाय मां का प्रभाव होता तो सारे काम उसके खिलाफ न होते। यहां तक कि उसका बेटा अदहम न मारा जाता, जबकि वह महम अनगा का बेटा होने के अलावा अकबर का दूध भाई था। अब आप सोच सकते हैं कि अकबर का ये दो साल का काल पेटीकोट शासन था या अकबर का अपना शासन?