सनातन कथा विमर्श
पाण्डवों का स्वर्गारोहण: महाभारत कथा का क्लाईमैक्स
मोनिका त्यागी
सम्पादक सम्पदा न्यूज
-सनातन धर्म में स्वर्ग-नर्क की परिकल्पना हकीकत।
-कर्मों के अनुसार मनुष्य अपने सद्गति को प्राप्त करता है।
महाभारत की घटना अपने आप में हैरान कर देने वाली एक अद्भुत घटना है। कौरव और पाण्डवों के बीच हुयी महाभारत रूपी इस भयंकर युद्ध के लिये बहुत से लोग द्रोपदी को दोष देते हैं तो कुछ लोग कौरवों के अहंकार और लालच को इस युद्ध का कारण मानते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि शकुनि के कारण महाभारत के इस युद्ध के पृष्टभूमि का निर्माण हुआ। इस भयंकर युद्ध में लाखों की संख्या में जानें गयीं और साथ ही लगभग कुरूवंश का विनाश भी हो गया। कहा जाता है कि कुरूक्षेत्र में हुए इस युद्ध में इतने लोगों की जानें गयीं, इतना खून बहा कि यहाॅ की मिट्टी का रंग आज भी लाल है।
महाभारत युद्ध के समय क्या हुआ ये तो सभी को मालूम है लेकिन महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद क्या हुआ, पाण्डवों के विजय के विजय के बाद हालात क्या रहे, हस्तिनापुर के शासन का क्या हुआ, इस बात का जिक्र कम ही मर्मज्ञ करते हैं। हमारा ये सन्दर्भ कौरवों के अन्त और श्री कृष्ण की मृत्यु के बाद पाण्डवों के शासन का क्या हुआ, इसी तथ्य पर केन्द्रित है। श्रीकृष्ण की मृत्यु के बाद पाण्डवों का भी भौतिक जीवन से मोह उठ गया। उन्हे न तो हस्तिनापुर का शासन ही सन्तोष दे पा रहा था न ही युद्ध में प्राप्त जीत की खुशी। ऐसी स्थिति में उन्होने मोक्ष के मार्ग को चुना और इसकी तलाश में सारा राजपाठ त्याग दिया। परीक्षित को शासन की बागडोर सौपकर वे सभी द्रोपदी के साथ हिमालय की ओर निकल गये। एक काला कुत्ता भी इनके साथ इस यात्रा पर निकल गया। सर्व प्रथम पाॅण्डव दक्षिण की ओर गये जहाॅ एक नदी के किनारे अग्निदेव प्रकट हुए। अग्निदेव ने अर्जुन से अपना धनुष सौंप देने को कहा क्योंकि जिस उद्देश्य से धनुष सौंपा गया था वह उद्देश्य अब पूर्ण हो गया था। अर्जुन ने अपना धनुष अग्नि देव को सौप दिया। उसके बाद वे सभी दक्षिण पश्चिम दिशा में गये, जहाॅ उन्हें पानी में डूबी द्वारिका नगरी दिखी। यह भयावह स्थिति को देख पाण्डव अत्यन्त दुखी हो गये। वो ऋषिकेश होते हुये हिमालय की ओर चले गये। हिमालय पार करते ही द्रोपदी ने अपने प्राण त्याग दिये। भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि सभी लोगों में द्रोपदी ने पहले प्राण क्यों छोड़ा? उन्होने कहा पाॅच पतियों की पत्नी होने के बावजूद द्रोपदी अर्जुन को लेकर पक्षपात करती थी। वह अपने सभी पतियों को समान नहीं समझती थी इसलिये वो स्वर्ग की यात्रा पूरी नहीं कर पायी।
स्वर्ग पहुॅचकर युधिष्ठिर ने कौरवों को देखा पर अपने भाई पाण्डवों कही नजर नहीं आये। युधिष्ठिर को पता चला कि उनके सभी भाई इस समय नर्क लोक में हैं। उन्होने उनके नर्क में होने का कारण पूछा तो इन्द्र देव ने कहा कर्ण ने द्रोपदी के प्रति हुए अपमान में भागीदार था इसलिये उसे नर्क भोगना पड़ा। भीम और अर्जुन ने धोखे से दुर्योधन की हत्या में सहयोगी रहे, नकुल और सहदेव ने भी इसमें साथ दिया इस कारण उन्हे भी नर्क में आना पड़ा।
इस बात पर युधिष्ठिर विचलित हो उठे। उन्होने पूछा जिन लोंगों ने पूरी उम्र धर्म का पालन किया वो नर्क में भेज दिये गया तो कौरवों जैसे अत्याचारियों को स्वर्ग में क्यों रखा गया है! ठस पर देवाधिदेव इन्द्र ने उत्तर दिया कि कौरव अपनी मातृभूमि के लिये अन्त समय तक लड़ते रहे और इसी उद्देश्य के तहत एक क्षत्रिय की भाॅति अपने प्राण भी त्याग दिये इसलिये अपने इस उत्तम कर्म के लिये दुर्योधन और उनके सहयोगियों को कुछ समय के लिये स्वर्ग में रखा गया है। युधिष्ठिर के मुख मण्डल पर उदासी के भाव को देख कर इन्द्र ने उनसे कहा कि पाण्डवों का नर्कवास और कौरवों का स्वर्गवास कुछ ही समय के लिये है। यह उनके कर्मों के कारण उनको दिया गया है। कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नर्क भोगकर कौरव नर्क में और द्रोपदी सहित पाण्डव स्वर्ग में चले आयेंगे। मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त करता हैं और शरीर त्यागने के बाद उसे कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क की गति प्राप्त होती है।