भोजपुरी अश्लील गीतों पर प्रतिबन्ध आवश्यक
अंजनी कुमार उपाध्याय, बरहज, देवरिया।
कभी समय था कि सेंसर और शासन अश्लीलता प्रदर्शन पर इतना कठोर था कि रंच मात्र अश्लीलता दिखाई पड़ते ही कठोर कार्यवाही हो जाती थी। आज अश्लीलता ने गंदगी के सारे रिकार्ड तोड़ दिए है फिर भी शासन का इसके प्रति कोई कठोर कदम नहीं उ ठपा रहा है। फिल्मों में निर्माण के प्रथम चरण में वेश्याओं ने भी अंग प्रदर्शन से इंकार कर दिया था पर आज अपनी नग्नता को चित्रकथा के माध्यम से किसी हद तक उतर जाने के क्या मजबूरी हो सकती है? क्या प्रशासन की अनदेखी या फिर समाज की गंदी मानसिकता?
आज उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल एक भयंकार मानसिक रोग का शिकार बन चुका है और यह रोग अब लाईलाज होता महसूस हो रहा है। यह रोग है भोजपुरी की अश्लील गाने और चित्रपट में नग्नता का खुला प्रदर्शन। गौर से देखा जाय तो आज अधिकांश कम उम्र के बालकों के हाथ में एक मल्टीमीडिया मोबाइल है और उसमें भयंकर गंदे गानों वाला अश्लील भोजपुरी गीत और नग्न चित्रकथा। इन बालकों के मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता होगा? यदि यह एकांतवासी हो तो उनके मस्तिष्क में मानसिक अपराधिक प्रवृत्तियां जन्म ले लेगीं और ये नादान बड़ी और भयंकार वारदात कर बैठेगें फिर बन जायेगें एक अपराधी। एक सर्वेक्षण में पता चला कि अधिकांश बालकों के मोबाइल में गंदे गीत भरे पड़े है। वैसे तो इस अश्लील गाने की एक लम्बी फेहरिस्त है लेकिन कुछ नमूने देखिये ........ शामियाना का चोप ........, रूकल बा महिनवा........, आव तोहार करी........, घचकइनि क ........., बहियां में कस के .........., चुएला ठोपे-ठोप ..........., वोढ़नियां कहाँ बिछाई........... इत्यादि। कहाँ गया वो नारा कि बच्चों की मुस्कान राष्ट्र की शान। क्या हमारे पूर्वज और राष्ट्रनायकों की यह सोच कभी रही होगी कि हमारे आने वाली नस्ले इतनी गंदी और गैरजिम्मेदार हो जायेगी जो अपने नौनिहालों को बिगड़ते हुए देखकर भी विरोध करने का साहस नहीं जुटा पायेगी। यदि अश्लीलता दूर नहीं की गई तो यह मुस्कान एक अपराधिक मुस्कान बनते देर नहीं लगेगी।
कहा गया भोजपुरी का सुन्दर स्वरूप
भोजपुरी में वह मिठास थी कि जिसको याद कर भोजपुरी प्रेमियों की आँखें अब भर आती है। गंगा मईया तोहे पियरी चढ़इबो के सभी गीत, विदेशियां के लोकगीत, हंस-हंस पनवा खियेवले बेईमनवा, गंगा को वह गीत ये चन्दा मामा आरे आव पारे आव, लागी नाही छूटे रामा के गीत पुरानी फिल्म नदिया के पार के गीत भले ही फिल्मी गीत रहे हो लेकिन ये एक आदर्श भोजपुरी गीत थे। इन गीतों की मिठास आज भी अमर है। लोकगीतों में कजरी, सोहर, देवी गीत जैसे निबिया की डाल मईया, का लेके शिव के मनाइब, जगदम्बा घर में दियना बारी अईली हे, जैसे गीतों ने एक मंत्र का रूप समाज में ले लिया। भोजपुरी गीतों का प्रेम तो ऐसा फैला कि सिंगापुर, फिजी और मारीशस में यह एक प्रमुख भाषा का स्थान ले लिया है। साहित्य में तो नीरन, दूधनाथ शर्मा श्याम, अनुरागी, धरीक्षण मिश्र, मोती बी0ए0 इत्यादि न जाने कितने कवियों ने उच्च कोटि की रचनाएं लिखी पर किसी ने उसमें अश्लीलता को बढ़ावा नहीं दिया। क्या गुजरती होगी इनके ऊपर जब वे अपने भोजपुरी भाषा का यह गंदा स्वरूप आज देखते होगें।
प्रशासन उठाये सख्त कदम
किसी को यह अधिकार नहीं बनता कि अपनी मातृ भाषा को नंगा और गंदा करें। यदि ये कार्य प्रशासन या कोई अन्य संस्था करती है तो वह सभी अपराधी है और इन्हें अपराधियों की श्रेणी में होना चाहिए। प्रशासन का ध्यान न जाना ही उसे इस अपराध में भागी बनाता है। सर्वप्रथम तो भारत सरकार और उ0प्र0 सरकार को चाहिए कि अश्लील गीतों के कैसेट और प्रदर्शन पर रोक लगाये। साथ ही साथ अधिकारियों को यह सूचना दे कि इन गानों को बजाने पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगाने में सरकार की मदद करें। सेंसर बोर्ड को भी अश्लीलता के प्रदर्शन पर कैची चलाने की खुली छूट दें। साथ ही यह दबाव बनाया जाय कि ऐसा कोई भी सीन भूल से भी बाहर पर्दे पर न आने पाये। इसके अतिरिक्त बालकों के मल्टीमीडिया मोबाइल को स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा अवश्य चेक किया जाय। यह कार्य विद्यालय से लेकर थाने के अधिकारियों को निर्देश यदि शासन दे तो एक तो अपनी भाषा की इज्जत बरकरार रह जायेगी दूसरे वे बालक अपराधी बनने के लिए एक प्रेरणास्रोत से दूर हो जायेगें।
अगर प्रशासन इन गानों को सुनकर मूकदर्शक बना रहा तो वह समय दूर नहीं जब यह पूरी तरह समाज को गंदा कर चुका होगा तथा अश्लीलता सारी हदों को पार कर घर-घर में पैठ चुकी होगी। यह भोजपुरी गाने बच्चों के मस्तिष्क को दूषित बनाते जा रहे है आज हर व्यक्ति का धर्म यह बनता है कि वह अपने नौनिहालों को जो राष्ट्र के भविष्य सहित उनके भविष्य के सहारे है इस अश्लीलता से दूर हटाने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करें तथा यदि आवश्यक हो तो स्थानीय प्रशासन भी इसमें मदद करें।